मधेपुरा/बिहार : महात्मा गांधी ने व्यक्ति- समाज, राष्ट्र एवं विश्व की छोटी-बड़ी सभी समस्याओं पर विचार किया है। हम उनके विचारों से आज भी मदद ले सकते हैं। देश-दुनिया की समस्याओं के समाधान हेतु हमारे सामने कई विचार हैं, जिनमें गांधी-विचार भी एक है।
यह बात महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति डॉ. मनोज कुमार ने कही। वे शनिवार को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली की स्टडी सर्कल योजना अंतर्गत गांधीवाद सिद्धांत एवं प्रयोग विषय पर बोल रहे थे, इस कार्यक्रम का आयोजन ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय मधेपुरा में ऑनलाइन ऑफलाइन मोड में किया गया।
उन्होंने कहा कि गाँधी ने कभी भी संत-महात्मा या दार्शनिक होने का दावा नहीं किया है। लेकिन गांधी के विचारों एवं कार्यों ने दुनिया के लाखों लोगों को प्रभावित किया है और वो न केवल भारत, बल्कि पुरी दुनिया में समादृत हैं। गांधी के विचारों एवं कार्यों में आस्था रखने वाले ऐसे लोगों को गांधीवादी कहा जा सकता है। उन्होंने बताया कि स्वयं गांधी ने अपने जीवन को सत्य का प्रयोग कहा है। वे किसी वाद को खड़ा करने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने स्वयं कहा है कि ‘गांधीवाद’ जैसी कोई चीज नहीं है और मैं अपने बाद कोई संप्रदाय नहीं छोड़ना चाहता हूं। मैं किसी नए सिद्धांत या सिद्धांत की उत्पत्ति का दावा नहीं करता हूं। मैंने अपने तरीके से शाश्वत सत्य को हमारे लिए लागू करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने अंतिम व्यक्ति के हित को मानव-जीवन की कसौटी मानी है। वे अपने सिद्धांतों को प्रयोग में उतारते हैं और उसे इस कसौटी पर कहते हैं।
सुप्रसिद्ध दार्शनिक एवं आईसीपीआर (नई दिल्ली) के पूर्व अध्यक्ष प्रो (डॉ.) रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि समकालीन भारतीय दार्शनिकों में महात्मा गांधी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने जीवन एवं जगत के सभी आयामों पर अपने विचार व्यक्त किया है। हम विभिन्न संदर्भों में उनके विचारों से सहमति एवं असहमति रख सकते हैं, लेकिन गांधी को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है।
गांधीवाद का मूल आधार है अहिंसा एवं सत्य : उन्होंने कहा कि अहिंसा एवं सत्य गांधीवाद का मूल आधार है। ये दोनों विचार सदियों से भारत एवं पूरी दुनिया में व्यक्तिगत मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं। लेकिन गांधी ने अहिंसा एवं सत्य को सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन का भी आधार बनाया। डॉ. आलोक टंडन (उत्तर प्रदेश) ने कहा कि गांधी के विचारों का निरंतर विकास होता रहा है। अतः हमें गांधी को समग्रता में समझने की जरूरत है। हम उनका मूल्यांकन समसामयिक संदर्भों में करें और ऐसा करते हुए उनकी कमियों एवं असफलताओं को भी रेखांकित करें।
उन्होंने प्रश्न उठता कि गांधी हिंदू-मुस्लिम झगड़े और दलित-समस्या का समाधान क्यों नहीं कर पाए ? गांधी के तकनीकी संबंधी विचारों की वर्तमान परिदृश्य से संगति कैसे होगी और आज भारतीय राष्ट्रीयता का स्वरूप क्या होगा? डॉ. राजकुमार चौबे ने प्रश्न उठाया कि गांधी अपने पुत्रों और राजनीतिक उत्तराधिकारियों पर क्यों प्रभाव नहीं डाल पाए? आजादी के बाद सत्ता में आए गांधी के अनुयायीयों ने गांधीवादी परिकल्पनाओं को क्यों स्वीकार नहीं किया? डॉ. नुतन कुमारी ने मुख्य वक्ता से जानना चाहा कि गांधी के विचारों की अंतरराष्ट्रीय संबंधों के संदर्भ में क्या प्रासंगिकता है?
कार्यक्रम की अध्यक्षता ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के प्रधानाचार्य डॉ. कैलाश प्रसाद यादव ने की।अतिथियों का स्वागत गणित विभागाध्यक्ष ले. गुड्डु कुमार ने की। संचालन दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने किया। धन्यवाद ज्ञापन मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र ने की।
इस अवसर पर शोधार्थी सारंग तनय, गौरव कुमार सिंह, डॉ. सुनील सिंह, डॉ. अजीत कुमार ठाकुर, डॉ. प्रभाष कुमार, डॉ. मिथिलेश कुमार, डॉ. श्रवण कुमार, डॉ. शंभु पासवान, डॉ. जुली सिंह, चंदन कर्ण, गौरव कुमार सिंह, शीतल, सुजीत कुमार, विवेक कुमार, दिलीप यादव, चांदनी राय, डेविड यादव, विवेकानंद, अशोक, श्याम प्रिया, अनामिका, अर्चना, राहत परवीन, विवेक कुमार, डॉ. जुली सिंह, हर्ष सागर, पल्लवी राय, जागृति राय, अशोक, यशवंत कुमार, अमित आनंद आदि उपस्थित थे।
आगे के व्याख्यानों के विषय भी निर्धारित : डॉ. शेखर ने बताया कि डॉ. शेखर ने बताया कि स्टडी सर्कल (अध्ययन मंडल) लोगों का एक छोटा समूह होता है, जो नियमित रूप से विभिन्न विषयों पर संवाद करते हैं। आईसीपीआर की यह योजना देश के कुछ गिने-चुने संस्थानों में चल रही है। बीएनएमयू में इसके तहत अप्रैल 2022 से मार्च 2823 तक प्रत्येक माह एक पूर्व निर्धारित विषय पर संवाद एवं प्रश्नोत्तर होना है। अब तक नियमित रूप से सात संवाद आयोजित किया जा चुका है। आगे वेदांत दर्शन : एक विमर्श (डाॅ. राजकुमारी सिन्हा, रांची), बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. वैद्यनाथ लाभ), नव वेदांत की प्रासंगिकता (स्वामी भवात्मानंद महाराज), राष्ट्र-निर्माण में आधुनिक भारतीय चिंतकों का योगदान (डॉ. नरेश कुमार अम्बष्ट), टैगौर का मानववाद (डॉ. सिराजुल इस्लाम) एवं सर्वोदय-दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. विजय कुमार) विषयक व्याख्यान भी आयोजित किए जाएंगे।