धर्मनिरपेक्षता पर ख़रोंच

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लेखक : दिनेश चौधरी
सुरजापुर, सुपौल
बिहार

         सबेरा तब ही होता हैं जब सूर्योदय होता हैं, उसके लिए आंख भी खोलनी पड़ती हैं। महात्मा गाँधी ने 20 मार्च 1930 को नवजीवन में स्वराज्य और रामराज्य के बारे कुछ लिखे थे जिसका कुछ अंश हैं, “स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न निकाला जाएं, तो भी मेरे नजदीक उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है और वह हैं रामराज्य।

          रामराज्य शब्द का भावर्थ यह हैं कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा।” अगर हम ‘राम ‘के अर्थ का बात करे तो सब अपने-अपने अनुसार राम का अर्थ बताते हैं, लेकिन मोटे तौर पर राम के कुछ अर्थ है जो वास्तविक हैं, जैसे शासन रामराज्य शासन की आदर्श संकल्पना है। एक ऐसी राज व्यवस्था जहाँ न कोई दुखी हो और न हो कोई अभावों से ग्रस्त हो। जहाँ जन जन भय मुक्त हो और चारों तरफ शांति हो। जहां का शासन सभी के लिए मंगलकारी हो। ऐसे ही मर्यादा, नेतृत्व, शौर्य और लोकतंत्र।

            लेकिन सवाल ये उठता हैं कि भारत विश्व का जो सबसे बड़ा लोकतंत्र का पुजारी हैं, क्या इस राम भूमि पूजन से लोकतंत्र को खरोच भी आया है? क्योंकि जिस तरीके से बाबरी मस्जिद के ढांचा का गिरना और जिस तरह से उस समय अयोध्या में तांडव होना ये राम के मंदिर बनाने वाले नहीं कर सकते।

         खैर अब तो कोर्ट ने भी माना कि ढांचा गिरना बेहद शर्मनाक था, जो ढांचा गिराने में संलिप्त था उस सभी का जो जिंदा हैं, सब का बयान भी दर्ज हुआ और सबने अपने आपको बेकुसर भी बताया। आगे सुप्रीम कोर्ट इस सब पर क्या निर्णय लेती है ये तो वक्त ही बताएगा। इस विवाद का जो सुप्रीम कोर्ट फैसला दिया वो 130 करोड़ लोगों को मान्य हैं तभी तो 5 अगस्त को रामजन्म भूमि पूजन हुआ। ये धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का 5 अगस्त को काला दिन भी कहा जा सकता हैं। जिस तरीके से प्रधनमंत्री जी ने 5 अगस्त को 15 अगस्त आजादी  के दिन से तुलना किया वह बहुत ही आपत्तिजनक तुलना हैं। राम मंदिर के लिये जो संघर्ष हुआ उस का तुलना आजादी की लड़ाई से तुलना, या 5 अगस्त को 15 अगस्त के समतुल्य खड़ा करने की जो कोशिश की गई  हैं तो इसमें चिंताए भी निहित हैं ओर ये चिन्ताएं इसलिए भी निहित है कि भारत में वो सब भी लोग हैं जो आपके धर्म से नहीं जुड़े हैं। क्योंकि राजा का धर्म एक धर्म है तो वो राजधर्म नहीं हैं, क्योंकि राजा का प्रजा हर धर्म के लोग होते हैं उस राज्य में। ये किस तरह का भारत है मुझे ये पहचानने में नहीं आ रहा हैं। जैसे पिछले 7 साल से अपनी धर्मनिरपेक्षता पहचान को उतारने की कोशिश हो रही हैं।

        मैं ये नहीं कहता कि राम मंदिर नहीं बनना चाहिए, बिल्कुल बनाना चाहिए। लेकिन देश के प्रधनमंत्री को किसी खास समुदाय के नेता के तौर पर अपने आपको प्रकट करना ये  धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के लिए घातक हैं। राम का दूसरा अर्थ है मर्यादा, राम इसलिए मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये, क्योकि उन्होंने हर हाल में अपने प्रजा के प्रति सत्यनिष्ठ, कर्मनिष्ठ, और धर्मनिष्ठ रहे। यही गांधी के रामराज्य का भी कल्पना था। तीसरा अर्थ नेतृत्व, जो सबको साथ लेकर चलने के मामले में अद्वितीय हो। चौथा अर्थ लोकतंत्र, गांधी कहते है प्रजा की अनुमति हो तो कुछ कहूँ ओर यदि मेरे कहे में कुछ अनुचित देखे तो मुझे टोक दे, मैं सुधार कर लूंगा, किसी भी व्यक्ति की राय के आधर पर फैसले लेने में हिचकते नहीं। ये जो राम के अर्थ हैं और गाँधी के रामराज्य हैं। काश ऐसा ही गाँधी का रामराज्य आए।

     हालाकि उस दिन प्रधानमंत्री ने जय श्री राम नहीं बोले हैं जो उग्र हिंदुत्व को प्रेरित करते है बल्कि’ जय सियाराम ‘बोले हैं, जो बचपन से सिखाया जाता हैं। जब जय सियाराम बोले हैं तो ‘हे राम’भी जरूर याद होगा। और एक राम घुन भी याद आया होगा “रघुपति राघव राजाराम, पतिसे पावन सीताराम, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सममति दे भगवान”। काश ऐसा ही हो जिससे लहूलुहान भारत का लोकतंत्र बचाया जा सके।

     ये कहाँ आ गए है, जो आज भारत मुझे पहचान में नहीं आ रहा है, शायद वो तो नहीं ही हैं जो कभी हम सबो की पूरखों ने मिल कर अपनी बलिदान दे कर आज़ादी हांसिल की थी।


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