जन्म दिवस विशेष :- जानिए ज्ञान विज्ञान की कई विधाओं के जनक “इब्नख़ाल्दून” जैसे महान व्यक्तित्व को

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       क्या आप किसी ऐसे महान व्यक्तित्व को जानते हैं जो एक साथ ज्ञान विज्ञान की कई विधाओं का न सिर्फ ज्ञाता हो बल्कि जनक (Founder/Father) भी हो। आइए इतिहास लेखन, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और जनसांख्यिकी शिक्षाविज्ञान के इस सुल्तान को आज उसकी यौमे पैदाइश पर उसे न सिर्फ याद करते हैं बल्कि उसे शुक्रिया और जज़ाक़ अल्लाह ख़ैर कहते हैं। क्योंकि इंसानी तारीख़ ओ तवारीख़ हमेशा इब्नख़ाल्दून की कर्ज़दार रहेगी।

अब्द अल-रहमान इब्न मोहम्मद को आम तौर पर “इब्नख़ाल्दुन” के नाम से जाना जाता है। उनके माता-पिता, मूल रूप से यमनी अरबी थे, जो स्पेन में बस गए थे, लेकिन सेविल के पतन के बाद, ट्यूनीशिया चले गए थे। उनकी पैदाइश ट्यूनीशिया में 27 मई, 1332 C.E. में हुई थी, जहाँ उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और किशोरावस्था मे मिस्र के शासक सुल्तान बराक की सेवा मंडल में रहे।

बेहतर व तरतीबी तालीम को हासिल करने की पुख़्ता इरादे के मद्देनज़र जल्द ही सुल्तान की ख़िदमात की ज़िम्मेदारी को छोड़ दिया और फ़ेज़ में सैटल हो गए। रियासतों की आपसी सियासी उठापटक के मद्देनज़र अल्जीरिया के एक छोटे से गांव कलात इब्न सलाम में तीन साल की मुहाजिर की ज़िंदगी भी गुज़ारी, और इसी छोटे से गाँव कलात इब्न सलाम में ही उन्हें अपने बेनज़ीर बेमिसाल किताब ‘अलमुक़द्दमा’ के पहले खंड (Prolegomena) को लिखने का मौक़ा मिला। जिसने उन्हें इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों और दार्शनिकों, डेमोग्राफर्स, एंथ्रोपोलॉजर्स के बीच अमर बना दिया। 

आगे चल कर मिस्र में तशरीफ़ फ़रमा हुए और मिस्र ही उनका निवास स्थान बन गय, जहां उन्होंने अपने ज़िंदगी के 24 साल बिताए। यहाँ उन्होंने प्रसिद्धि और सम्मान का जीवन जिया, जामिआ अल-अज़हर  में अपनी ख़िदमात जारी रखी। आगे चल कर जज भी बने और डिप्लोमेट भी, और अकादमिक अध्ययन की ज़िम्मेदारियों के साथ साथ उन्होंने अपने शोध व लेखन को जारी रखा, और अपने विश्व इतिहास को “बुक ऑफ़ द लेसन्स” और “आर्काइव ऑफ़ अर्ली एंड सब्सकुएन्ट हिस्ट्री” लिखा।  जो आगे चल कर यह अल मुकद्दिमह या द इंट्रोडक्शन ऑफ हिस्ट्री के नाम से मशहूर हुई।

 इब्न ख़ाल्दून का मुख्य योगदान इतिहास और समाजशास्त्र, एंथ्रोपोलॉजी, जनसांख्यिकी अर्थशास्त्र के दर्शन में निहित है। उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं के विश्लेषण के उद्देश्य से पहले खंड (Prolegomena) में लिखित विश्व इतिहास आमतौर से अल मुक़द्दमा के नाम से जाना जाने वाला यह मास्टरपीस, इब्न ख़ाल्दून के अद्वितीय दृष्टिकोण और मूल योगदान पर आधारित थी और इतिहास और समाजशास्त्र के दर्शन पर साहित्य में एक उत्कृष्ट कृति (Masterpiece ) बन गई।। इब्न खुल्दून के  “monumental work”  अज़ीम किताब का मुख्य आकर्षण था, इब्न ख़ाल्दून द्वारा उन तमाम मनोवैज्ञानिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक, आर्थिक, जनसांख्यकीय एंथ्रोपोलॉजिकल तथ्यों की पहचान करना, जो मानव सभ्यता की प्रगति और इतिहास की धाराओं में योगदान करते हैं। इसकी ख़ातिर उन तमाम कारणों आंकड़ो का विश्लेषण किया और आंकड़ो और अध्ययन करके बताया कि कैसे मानव समूह के रिश्तों की गतिशीलता (dynamics of groups relationship) और  समूह-भावनाएं, एक नई सभ्यता और राजनीतिक शक्ति की इस्तेमायी ख़्वाहिश को पैदा करती हैं और बाद में, एक अधिक सामान्य सभ्यता में इसका प्रसार कैसे होता है। और इस प्रोसेस को ‘असबियाह’ का नाम दिया “Asabiyya or asabiyyah (Arabic) is a concept of social solidarity with an emphasis on unity, group consciousness and sense of shared purpose, and social cohesion,originally in a context of “tribalism” and “clanism”.

इब्न खल्दून ने यह भी तर्क दिया कि ‘असबिया’ साइक्लिक प्रॉसेस है और सभ्यताओं के उदय और पतन से सीधे जुड़ी है। यह एक सभ्यता की शुरुआत में सबसे मजबूत है, और जब एक हद तक कि विकास के बाद सभ्यता के रूप में जब गिरावट आती है, और फिर एक और नई ‘असबिय्याह’ एक अलग सभ्यता की स्थापना में मदद करने के लिए अंततः अपनी जगह लेती है। यानी किसी सभ्यता का उदय और पतन असम्भावी हैं और हर पतन से एक नईं सभ्यता का जन्म होना निश्चित ही है

इब्न ख़ाल्दून ने अल मुक़द्दमा में मानव सभ्यता में होनेवाले उत्थान और पतन की लगभग लयबद्ध पुनरावृत्ति  इसमें योगदान करने वाले उन कारकों (rhythmic repetition of rise and fall in human civilization, and factors contributing to it) को भी तफ़्सीर से एनालाइज़ किया।

इब्न ख़ाल्दून के इतर (अलावा) इतिहास के अधिकांश लेखकों ने अक्सर इतिहास की व्याख्या राजनीतिक  दृष्टिकोण के बडे पैमाने से ही की थी, जबकि इब्न ख़ाल्दून ने इतिहास को सीधे सीधे को नियंत्रित करने वाले पर्यावरणीय, समाजशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक जनसंख्याकीय मानविकीय एंथ्रोपोलॉजिकल कारकों पर जोर दिया। यही वह साहित्यिक अमल था जिसने मानव इतिहास के विज्ञान को पुनर्जीवित किया और उमरानियत (समाजशास्त्र) की नींव भी रखी। और “Founding, Father of Historiography,  Sociology, Economics, and Demography” इतिहासलेखन, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और जनसांख्यिकी के आधुनिक विषयों के जनक के रूप में वर्णित किया गया है।

अल मुक़द्दिमाह के अलावा इब्न ख़ाल्दून के जीवनकाल के दौरान भी एक दूसरी किताब बहुत महत्वपूर्ण बन गई थी, उनके विश्व इतिहास (World History) के अन्य खंड किताब “Kitab al-I’bar” में अरबों के इतिहास, समकालीन मुस्लिम शासकों, समकालीन यूरोपीय शासकों, अरबों के प्राचीन इतिहास, यहूदियों, यूनानियों, रोमनों, फारसियों के इतिहास के अलावा, इस्लामी इतिहास, मिस्र का इतिहास और उत्तर-अफ्रीकी इतिहास, विशेषकर बरबेर और जनजातियों और आस-पास के क्षेत्रों में रहने वालों के इतिहास को समेटे एक दस्तावेजी किताब मानी जाती है। 

उनकी अलग किताब ‘Al Tasrif’ काफी हद तक इब्न ख़ाल्दून के अपने ख़ुद के जीवन की घटनाओं से संबंधित है।  जिसे उन्होंने बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से लिखा  था और ऑटोबायोग्राफी लेखन में एक नया तरीका, नई परम्परा, नई कला “एनालिटिकल ऑटोबायोग्राफी” की शुरुआत की। दस्तावेज़ो से पता चलता है कि  इब्न ख़ाल्दून ने गणित पर एक किताब भी लिखी थी।

इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान और शिक्षा के इतिहास और उसके अन्वेषणात्मक अध्ययन व लेखन  पर इब्न खलदुन का प्रभाव उनके जीवनकाल और उस के बाद से ही रहा है। पूर्व व पश्चिम दोनों जगहों पर उनकी पुस्तकों का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है, और इन विज्ञानों के बाद के विकास के लिए माहिरीन को प्रेरित किया है। और आज भी उनके लेखनी के तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं।

Economic growth theory & Supply and demand theory :

इब्न ख़ाल्दून आर्थिक सिद्धांत में भी अपने समय से बहुत आगे थे। एडम स्मिथ (1723-1790, स्कॉटिश इकॉनॉमिस्ट, जिन्हें फ़ादर ऑफ कैप्टिलिज़्म भी कहा जाता है) से चार शताब्दी पहले ही, इब्न ख़ाल्दून ने निष्कर्ष निकाला था कि श्रम (Labor), किसी समुदाय, राज्य की समृद्धि (Prosperity) का स्रोत है।  उन्होंने कृषि, उद्योग और वाणिज्य में आय के प्रत्यक्ष स्रोत( direct source) और सिविल सेवकों और निजी कर्मचारियों की आय के अप्रत्यक्ष स्रोत ( Indirect source) के बीच अंतर किया था।  ये अवधारणाएँ आज हर दूसरे इंसान को पसंद आ सकती हैं, लेकिन सोचिये 700 साल पहले ऐसा सोचना, कहना और लिखना किसी अभूतपूर्व  किसी करिश्मे से कम नही था जिसने खपत, उत्पादन, मांग, लागत और उपयोगिता से संबंधित शास्त्रीय अर्थशास्त्र और मॉडल के लिए बुनियाद रखी और राह हमवार की।

Ibn khul doon about Islaam:

In Ibn khuldoon words “Islaam gave a community a lasting spiritual content, a complete answer to all problems of life; that a furnished the complete answer to his empirical inquiry into the organization of human race”.

यौमे वफात:  17 March 1406, Cairo, Egypt :

नोट: अल मुक़द्दमा का अंग्रेज़ी ट्रांसलेशन येल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमिरेट्स ऑफ अरेबिक स्टडीज़ एंड इस्लाम, प्रो. फ्रांज़ रॉज़न्थल ने किया था। और उर्दू में तर्जुमा यूनिवर्सिटी ऑफ कराची के डिपार्टमेंट ऑफ अरेबिक और डिपार्टमेंट ऑफ उर्दू की दो टीमों ने कुल तेरह जुज़ में किया था।

दोनों ट्रांसलेशन वर्ज़न ऑनलाइन दस्तयाब हैं।

तस्वीर अल्जीरिया के बेजाजिया के एक कस्बे के एंट्रेंस पर लगे स्टेचू की की है जहां कभी इब्न ख़ाल्दून ने ज़िंदगी का अहम वक़्त गुज़ारा था।

KnowYourLegacy

लेखक – काजी मिस्बाह उल इस्लाम  (अलीगढ़ )


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