कहा गया है कि जनतंत्र में जनता ही मालिक है और जनता जिसे चाहे शासक बनाये और जिसे चाहे कुर्सी से उतार कर नीचे जमीन पर पटक दे। इस वर्ष बिहार में विधानसभा का चुनाव होने हैं, ऐसे में कई सारे नए-नए जातिगत और सामाजिक समीकरण तलाशे जा रहे है।
इसी बीच बिहार में ऐसी नेत्री का उदय हुआ है जो खुद को स्वघोषित मुख्यमंत्री बताकर बिहार में युवा क्रांति लाने का सपना दिखा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ बिहार के तीन ऐसे युवाओं की कहानी भी हम आपको बताने जा रहे हैं जो विगत एक दशक से बिहार के गांव-गांव में रोजगार क्रांति का अलख जगा रहे है ।
हम आपको बता रहे हैं कि किस प्रकार हवा-हवाई लोग बिहार के लोगों को सपना दिखाकर वास्तविकता के धरातल पर काम करने वाले युवाओं से खुद की तुलना कर रहे हैं। एक तरफ अमेरिका में जाकर अपना सुनहरा भविष्य बनाने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी है, तो दूसरी तरफ बिहार के गांव में अंडा उत्पादन, बकरी पालन, औषधीय, पौधों की खेती, मछली पालन जैसे कृषिगत स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाले तीन युवा है, कर्नल सुधीर कुमार सिंह, मार्कोस कमांडो राकेश रंजन व युवा उत्प्रेरक व समाजसेवी संजीव कुमार श्रीवास्तव।
सुधीर बिहार के सीतामढ़ी जिले के रहने वाले हैं, जबकि राकेश रंजन खगड़िया के और संजीव श्रीवास्तव बिहार के सीवान जिले के रहने वाले। इन तीनों की चर्चा इसलिए यह तीनों युवा बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में विगत 1 दशकों से ईमानदारी पूर्वक किसी गत स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए निस्वार्थ भावना से काम कर रहे हैं, या लोगों को केला की खेती औषधीय पौधों की खेती अंडा उत्पादन बकरी पालन मछली पालन की विधिवत ट्रेनिंग तो देते ही देते हैं। लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में भी बताते हैं तथा उन्हें बैंकों के द्वारा दिए जाने वाले लोन अन्य कृषि गैस सब्सिडी को दिलवाने में भी मदद करते हैं। इनके द्वारा किए जा रहे कार्यों से प्रेरित होकर बिहार के हजारों ग्रामीण युवा कृषि स्वरोजगार के क्षेत्र में सक्रिय भी हुआ ऐसे कर्मठ लोग अगर बिहार की राजनीति में आगे बढ़ते हैं तो बिहार का भाग्य और भविष्य बदल सकता है, पर पुष्पम प्रिया चौधरी जैसे स्वघोषित मुख्यमंत्री उम्मीदवार आकर बिहार में युवाओं को दिग्भ्रमित कर रही हैं। युवाओं को सुनहले सपने दिखाया जा रहा है पर वास्तविकता के धरातल पर कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
कोरोना संकट में जहां संजीव श्रीवास्तव के नेतृत्व में ये युवा राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक से अंडा और मछली उत्पादकों की समस्याओं को लेकर आंदोलन छेड़े हुए हैं, वहीं पुष्पम प्रिया चौधरी सोशल मीडिया और अखबारों से बाहर नहीं निकल पा रही है। बिहार को बिहार में काम करने वाले जुझारू कर्मठ और इमानदार युवाओं की जरूरत है न कि पुष्पम प्रिया चौधरी जैसी हवाई नेताओं की। जानकार बताते हैं कि उत्तम प्रिया चौधरी बिहार में युवाओं को दिग्भ्रमित करने के लिए ही चुनावी समर में उतरने की तैयारी में है ।
बिहार में एक तरफ कन्हैया कुमार जैसे नए उभरते राजनेता हैं, तो दूसरी तरफ संजीव कुमार श्रीवास्तव सुधीर कुमार व राकेश रंजन जैसे जमीन से जुड़े लोकप्रिय युवा, वही पुष्पम प्रिया चौधरी धनबल के माध्यम से सोशल मीडिया के भ्रम जाल के आधार पर बिहार के लोगों को सिर्फ और सिर्फ सपना दिखाने में लगी हुई है। कोरोना के कहर के बीच पुष्पम प्रिया चौधरी की पार्टी और उनके कार्यकर्ता कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। जबकि बिहार के कृषि क्रांति के अग्रदूत संजीव कुमार श्रीवास्तव की टीम बिहार के गांव-गांव में नजर आ रही है। स्थानीय स्तर पर लोगों से सामान संग्रहित करके लाचार व जरूरतमंद लोगों तक खाने-पीने की वस्तुएं भी पहुंचा रही है।
पुष्पम प्रिया चौधरी का नाम लिए बगैर संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि यह बिहार के ही कुछ एक राजनेताओं के दिमाग की उपज है कि एक ऐसे व्यक्ति या दल को बिहार में चुनावी समर में उतारा जाए जो लोगों को इस मायाजाल में डालकर रखें कि युवाओं के भाग्य विधाता है और दूसरी तरफ कोई बड़ा खेल हो जाए अखबारों में खुद को मुख्यमंत्री घोषित कर लेने से कोई मुख्यमंत्री नहीं होता या देश की जनता भी जानती है और प्रदेश की जनता भी जानती है कि बहुमत में चुने गए जनप्रतिनिधियों के द्वारा मुख्यमंत्री का चुनाव होता है ।जिन लोगों को वार्ड में मुखिया का चुनाव जीतने की हैसियत नहीं बिहार के माहौल को गंदा कर रहे हैं अगर उनमें बिहार में बदलाव लाने की कोई मंशा है तो उन्हें कोरोना संकट काल में भी बिहार के लोगों की सेवा के लिए आगे आना चाहिए। पर वे लोग सिर्फ बैठकर बिहार के गरीबी का मजाक उड़ा रहे हैं।
संजीव श्रीवास्तव बताते हैं कि उन लोगों का विजन है कि बिहार में अंडा प्रचुरता करके रोजगार पैदा करना ताकि पंजाब से अंडा आना बंद हो, तीन साल की मेहनत में वह हो गया और अंडा बिहार से सिलीगुड़ी कोलकाता जाने लगा। अब IIM Kolkata innovation park साथ मिलकर मछली बकरी और दूसरे चीजों पर काम हो रहा है। मार्च 15 2016 मे बिहार में मुर्गी की जनसंख्या 2.26 लाख थी प्रोजेक्ट शुरु हुआ तो 4फरवरी 2019 को बिहार में मुर्गी की जनसंख्या 54 लाख थी। बिहार के 38 जिले में यह लोग पूरी ईमानदारी के संग ग्रास रूट लेवल पर काम कर रहे हैं। अब इन लोगो का लक्ष्य है बिहार से मछली का विदेशों में जाना एवं बकरे के मीट को विदेश भेजना जबकी पं प्रियम चौधरी का ऐसा कोई रिकॉर्ड या विजन नहीं है।