विश्वविद्यालय को बदनाम करने के बजाय छात्रहित के मुद्दों पर ध्यान दें प्रतिकुलपति : राठौर
मधेपुरा/बिहार : बीएनएमयू में जंतुविज्ञान, इतिहास, हिंदी विषयों में सीट से ज्यादा नामांकन के तथाकथित फर्जीवाड़ा के मामला को एआईएसएफ ने विश्वविद्यालय को बदनाम करने की साज़िश बताया है।
एआईएसएफ के राष्ट्रीय परिषद सदस्य सह विश्वविद्यालय प्रभारी हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है बीएनएमयू में सिर्फ छात्रहित के काम नहीं होते हैं, बाकी सब होता है। पैट पास छात्रों को परीक्षा के आठ माह बाद भी अंकपत्र उपलब्ध नहीं हो पाया, कोर्स वर्क के सेमेस्टर का समय खत्म हो गया, लेकिन पंजीयन की दूर-दूर तक चर्चा नहीं है। दूर-दूर से आने वाली छात्राओं के लिए लंबे ड्रामा के बाद अभी तक गर्ल्स हॉस्टल को शुरू नहीं किया जा सका। 2020 पैट की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकी। लेकिन इन मुद्दों पर जब पहल की मांग तेज हुई तो छात्रहित में काम करने के बजाय मुद्दे से भटकाने के लिए प्रतिकुलपति सीट से ज्यादा नामांकन का राग अलाप रहे हैं, जो किसी स्तर पर सही नहीं है।
उस समय विश्वविद्यालय के आलाधिकारियों यथा कुलपति एवं प्रतिकुलपति सहित अन्य ने ही इसका आदेश दिया था। ऐसे में इसे फर्जीवाड़ा का नाम देना किसी ड्रामा से कम नहीं है। सवालिया लहजे में राठौर ने कहा कि अगर यह फर्जीवाड़ा है तो इतने दिनों तक चर्चा क्यों नहीं हुई. अचानक इतने दिनों बाद बिना किसी शिकायत के विश्वविद्यालय को इसका अहसास कैसे हुआ। छात्रनेता राठौर ने कहा की यह प्रतिकुलपति द्वारा विश्वविद्यालय को बदनाम करने की साज़िश है। जिसको लेकर कुलपति के मुख्यालय आते ही एआईएसएफ उनसे पहल की मांग करेगा. प्रतिकुलपति अभिभावक की भूमिका निभाने के बजाय विश्वविद्यालय की छवि को धूमिल करने पर तुले हैं। एआईएसएफ नेता राठौर ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा कि छात्रहित के मुद्दों पर कारगर पहल करने के बजाय विभाग एवं विभागाध्यक्ष को बदनाम कर अगर छात्रों के भविष्य को दाव पर लगाने की साजिश को अविलंब विराम नहीं दिया गया तो पूरे साक्ष्य के साथ एआईएसएफ छात्र एवं विभाग के समर्थन में आरपार की लड़ाई लडेगा।
नामांकन की प्रक्रिया पूरी तरह विश्वविद्यालय प्रशासन के निर्देशों पर हुई, इसका प्रमाण लगातार बैठकों में लिए गए फैसलों का उस समय में विश्वविद्यालय द्वारा आधिकारिक रूप से जारी विभिन्न दैनिक पत्रों में प्रकाशित ख़बरें बिना आइने को सबकुछ स्पष्ट करती है। छात्रों के भविष्य से खेलने का अधिकार किसी को नहीं है।