किशनगंज/बिहार : अभी भी जमीन के नीचे जमींदोज अकूत दौलत से मालामाल हो रहे हैं भारत से सटे नेपाली गांव के लोग ।
अंग्रेजों के शासनकाल में जब करेंसी कागजी नोटों के बदले चांदी के सिक्के चलते थे और मोरंग (नेपाल) तथा इससे सटे इलाकों में जब डकैती की घटनाएं आम थी, रोज रात इस तरह की घटना घटती रहती थी तो उस समय पैसे वाले लोग अपने सोने चांदी की दौलतों को जमीन के अंदर या अन्य जगहों पर छुपाकर रख देते थे । जिसे भूल जाने या फिर लावारिश मर जाने के कारण ऐसी सम्पत्तियां ज्यों की त्यों धरी रह जाती थी, जो अब की जुताई या खुदाई में कभी-कभी मिल जाती है । एक प्रत्यक्ष गवाही के तौर पर 1983 के दशक में एन.आर.ई.पी. योजना के अन्तर्गत जनता कुम्हारटोली सड़क निर्माण के समय में दिघलबैंक के इसी कुम्हारटोली (मिरधनडांगी) में मिट्टी काटने के क्रम में चांदी के सिक्कों से भरे कई धातु के कलसी मिले थे ।
मजदूर जब कुदाल चलाते थे तो “झनाक” की आवाजें निकलती थी । इस क्रम में एक कलसी के मिलते हीं लूट मच गई । जिसे जितना हाथ लगा लेकर चलते बने । कहा जाता है कि इसमें कई सोने के सिक्के भी थे।
तत्कालीन थानाप्रभारी साधुशरण पासवान (दिघलबैंक) को सूचना मिलते हीं वे यहाँ आकर इस जमीन की घेराबन्दी कर, लूटे गये चांदी सिक्कों की रिकवरी में लग गये । लगभग 70 सिक्कों की रिकवरी के साथ जमीन की खुदाई प्रशासनिक देख रेख में कराई गयी तो कई कलसी में तीन सौ से अधिक सिक्के मिले, जिसे सरकारी खजाने में जमा करा दिया गया ।
बताते चलें कि उक्त खुदाई वाली जमीन हालामाला स्टेट की निकली। जिसकी तहकीकात एवं उचित कानून के जरिये भोला मास्टर ने इसे प्राप्त कर लिया। राख की कई परतों के बीच छुपे चांदी के सिक्के 1840, 1871 के थे और उसकी चमक नये सिक्कों की तरह मौजूद थे । दूसरी छोटी घटना तुलसिया दक्षिणबस्ती की है, जो मार्च 2019 की है। जबकि यहीं के मोटका गिरि, मकान बनाने के लिए खुदाई करवा रहे थे को जमीन से आठ सिक्के मिले जो बिक्टोरिया, इस्ट इन्डिया जमाने के थे । हलांकि कम सिक्कों की वजह से यह आपसी बंटवारे की भेट चढ़ गया पर ऐसी घटनाएं आज भी लोगों के सामने आती रहती है। जिसमें एक लाल पैसा सहित ईकन्नी, दुअन्नी शामिल होते हैं ।