वर्तमान समय में पुलिस के रूप – कार्य – दायित्व को परिभाषित करना काफ़ी कठिन है । वैसे पुलिस शब्द बोध से आरक्षी पुलिस से पुलिस महानिदेशक तक पुलिस का पूरा रूप – स्वरूप है । पुलिस में थाना स्तर पर क़ानून की रक्षा जनता की सुरक्षा का मुख्य दायित्व है । उसके ऊपर के पदाधिकारी एवं कार्यालय उनके कार्यों की समीक्षा , निर्देश एवं सहयोग के लिए है । बिहार के थाना में पुलिस की पोस्टिंग एवं कार्यपद्धति की समीक्षा, क़ानून की राज की मज़बूती एवं जनता की हित के लिय ज़रूरी है । वरीय अधिकारीयो द्वारा सकारात्मक सोच के साथ समीक्षात्मक – निगरानी लगातार होती रहनी चाहिए । आज एक बहुत ही बड़ा प्रश्न देखने को मिल रहा है जो मीडिया समाज एवं पुलिस विभाग में कौतुहल के साथ चर्चा का विषय बना हूवा है।
वो प्रश्न है : पुलिस महानिदेशक (DGP) महोदय का थाना भ्रमण पुलिस विभाग का सर्वोच्च पद पर पदस्थापित अधिकारी जिसके नीचे राज्य की सारी पुलिस कार्यरत है वो लगातार जिले में थाने का भ्रमण करे । इससे तो एक बात निश्चित रूप से दृष्टिगोचर हो रही है की जिले के पुलिसिंग में, पुलिस की कार्यप्रणाली में ख़ामी है । क्या केवल थाने के अधिकारी ख़ामी या पुलिसिंग में गिरावट के लिए जीमेवार है या पुलिस अधीक्षक स्तर तक के अधिकारी भी जीमेवार है? सरकार एवं पुलिस मुख्यालय हाल में कुछ घटित घटनाओं पर चिंतित है होना भी लाज़मी है । लगातार सरकार स्तर पर , पुलिस मुख्यालय स्तर पर समीक्षा कर दिशा – निर्देश दी जा रही है । कनीय स्तर के पुलिसपदाधिकारियों पर शख़्त निर्देश नित्य सप्ताह जारी हो रहे है । होना भी चाहिए । पर इससे सुधार कितना हो पा रहा है इसकी गहन समीक्षा की ज़रूरत है ।
पुलिस थाने के कार्यपद्धति के व्यवहारिकता को समीक्षा उपरांत एवं उनकी कुछ मूलभूत परेशानी को ईमानदारी से निदान करते हुवे यदि शख़्ति थाने , अनुमंडल , ज़िला स्तर के सभी पुलिस अधिकारियों पर एकरूपता के साथ हो तो बेहतर पुलिसिंग मज़बूती के साथ दिखेगी । कारण, ख़ामी जिले में पुलिस के सभी कार्यालयों में है । बिहार की पुलिस आज भी देश के अन्य राज्यों की पुलिस से अपने सीमित संसाधन के बावजूद बेहतर कार्य कर रही है । पुलिस विभाग के मूलभूत समस्यावो में सुधार (बदलाव ) के लिय एक कमिटी का गठन हो जिसने बिहार पुलिस एसोंसीएशन के पधारक उसमें शामिल हो । क्यों की एसों के पद्धधारक पुलिस के समस्यावो की भली – भाती जानकारी रखते है । केन्द्र सरकार को भी अलग से अन्य भिभाग जैसा राज्यों में पुलिस कमियों के मूलभूत समस्या सुधार हेतु एक निश्चित बजट आम बजट में पास कर आंतरिक लोकतंत्र को मज़बूत करने एवं क़ानून के राज को मज़बूत करने के दिशा में सकारात्मक पहल की ज़रूरत है। अगर इस पर ध्यान नही दिया गया तो जनता को न्याय हेतु परेशानी उठानी पड़ेगी । जिसमें ग़रीब और सामान्य जनता को काफ़ी परेशानी उठाती पड़ेगी। आज के तारीख़ में देखा जाता है की थाना के थानाप्रभारी अपने थाना क्षेत्र में अनुमन 500/ 600 लोगों से जुड़े रहते है जिनमे से कई लोगों की छवि अच्छी नही होती है । जबकि थाना क्षेत्र में आम जनता की आबादी लगभग 70000 / 1,00000 के बीच होती है । आम जनता में अधिकतर लोग उन चिन्हित लोगों के माध्यम से थाना आते है । आम लोग जो आज भी पुलिसके पास आने से डरती है, पुलिस को उनके बीच जाकर उनकी समस्या सुन कर समधान करे । अक्सर देखा जाता की पुलिस किसी गाँव में जाती है तो ग़रीब या आम जनता केबीच न जाकर गाँव के मज़बूत या अमीर व्यक्ति के दरवाज़े पर बैठती है । इसमें बदलाव की ज़रूरत है । थाना में सभी पदाधिकारी में आपसी तालमेल के साथ सभी की जबाबदेंहीं निर्धारित हो । आम जनता चाहे वो ग़रीब हो , चाहे वो आमिर हो , चाहे वो राजनीतिज्ञ हो सभी के साथ थाना में व्यवहार एक जैसा हो।
उद्धरण स्वरूप जैसे कोई एक आम इंसान का मोबाइल कही खो जाता है वो थाना जाता है तो वो आम व्यक्ति को थाना में हीं भटकना पड़ता है । उसी काम से अमीर व्यक्ति या ऊँची पहुँच वाला व्यक्ति थाना जाता है तो उसे कम परेशानी उठाते है या बिना परेशानी के हीं उनका सनहाँ दर्ज हो जाता है । थाना प्रभारी यदि थाना में नही रहते है तो थाना के अन्य पदाधिकारी का बर्ताव या बोलचाल आम जनता से अनुमन कभी कभी अच्छा नही होता है । कारण की जबाबदेही थाना प्रभारी की निर्धारित होती है ।जिससे आम जनता का विश्वास पुलिस के प्रति कमज़ोर होता है । जो कभी भी पुलिस के विरोध आंदोलन में भुगतना पड़ता है । थाना में पोस्टिंग में कही – कही महसूस होता है या विभिन जिलो में पुलिस में आम चर्चा दबी ज़ुबान में सुनने में आता है की थाना प्रभारी की पोस्टिंग योग्यता, दक्षता, कर्मठता, अनुभव को नज़र अन्दाज़ किया जा रहा है जिसका ख़ामियाज़ा या परेशानी आम जनता को होता है । पुलिस एक्ट 2007 के सेक्शन 10 में स्पष्ट अंकित है की दो वर्ष तक किसी भी पुलिस कर्मी को कही से तबादला नही किया जा सकता है ।प्रशासनिक रूप से छोड़ कर । पर कभी – कभी देखा जाता है की थाना प्रभारी की पोस्टिंग समया अवधि के पहले बिना वजह के एक थाने से दूसरे थाने कर दिया जाता है जो ग़लत होता है । यदि थाना प्रभारी अच्छा कार्य नही करता है या अपने कार्य में रुचि नही लेता है तो पुलिस लाइन या कई ओफिस है जहाँ पोस्टिंग की जा सकती है । कई ज़िला के SP का व्यवहार अपने नीचे के अधिकारी के साथ भाषा उचारन अच्छा नही होता है । पारिवारिक / निजी कार्य हेतु छूटी के लिय काफ़ी परेशानी होती है । साथ हीं पुलिस विभाग में वर्तमान चुनौती को देखते हुवे पुलिस बल की कमी है । पुलिस काम के दबाव से दबी है । तथा पुलिस कई बीमारियों से गर्शित हो रही है । बेहतर पुलिसिंग एवं आम जनता के हित तथा क़ानून के राज की मज़बूती हेतु इस में बदलाव की ज़रूरत है बिहार हीं नही पूरे देश में उपरोक्त समस्या पुलिस विभाग में व्याप्त है। मृत्युंजय कु सिंह ✍? अध्यक्ष बिहार पुलिस एसोसीएशन