मधेपुरा/बिहार : मधेपुरा, बिहार का एक ऐसा जिला जिसकी सरजमीं, समाजवाद के लिए जरखेज रही है। इस धरती ने अनेक नायकों, सामाजिक चिंतकों और जननेताओं को जन्म दिया और इसी सरजमीं के बदौलत लालू यादव, शरद यादव जैसे कई दिग्गज नेताओं ने ना सिर्फ बिहार बल्कि देश का भी नेतृत्व किया। इसी उर्वर भूमि के नव रत्नों में से एक प्रखर समाजवादी नेता थे हाजी मो. कुदरतउल्लाह काज़मी, जिसे आज सभी ने भुला दिया, आलम यह है कि अब उनका नाम तक कोई नहीं लेता, इतना ही नहीं बल्कि उनके नाम पर बना यूनानी दवाखाना, जिसे कुदरतउल्लाह काज़मी ने समाज हित में दान कर दिया था वो लापरवाही का शिकार हो कर रह गया है।

बता दें कि मधेपुरा नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड संख्या 10 (पुरानी बाजार) स्थित ऐतिहासिक यूनानी दवाखाना आज ना सिर्फ प्रशासनिक उपेक्षा और लापरवाही का प्रतीक बन गया है बल्कि सरकार और यहाँ के जनप्रतिनिधियों ने भी इस तरफ ध्यान देना उचित नहीं समझा, नतीजा मशहूर समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हाजी मो. कुदरतउल्लाह द्वारा वैकल्पिक चिकित्सा व्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 71 वर्ष पूर्व दान की गई यह भूमि और यूनानी दवाखाना आज अतिक्रमण और नशेड़ियों का अड्डा बन चुका है।

दान की गई जमीन का हो रहा है दुरुपयोग
स्थानीय लोगों के अनुसार हाजी मो. कुदरतउल्लाह ने 1954 ई में जिला मुख्यालय के पुरानी बाजार स्थित जमीन और भवन यूनानी चिकित्सा के विस्तार के लिए दान दिया था, ताकि मधेपुरा में बेहतर वैकल्पिक चिकित्सा व्यवस्था स्थापित हो सके. लेकिन वर्षों की विभागीय और प्रशासनिक उदासीनता ने इस धरोहर को धीरे-धीरे खंडहर में बदल दिया। वर्तमान स्थिति यह है कि यूनानी दवाखाना परिसर चारों ओर से अतिक्रमण में घिरा है. जर्जर भवन में नशेड़ियों का जमावड़ा रहता है, जिससे स्थानीय लोग भय और आक्रोश में हैं. स्थिति इतनी बदहाल है कि लोग शाम ढलते ही इस क्षेत्र से गुजरने से कतराते हैं।

धरोहर को बचाए प्रशासन
स्थानीय लोगों का कहना है कि 71 साल पुरानी यह धरोहर सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि मधेपुरा की सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान है. यदि सरकार और प्रशासन इच्छाशक्ति दिखाए तो यहां यूनानी और होमियोपैथिक चिकित्सा केंद्र, सामुदायिक सुविधाएं, गर्ल्स हाई स्कूल सहित और कई जनहितकारी योजनाएं शुरू की जा सकती हैं. लेकिन फिलहाल यह परिसर उपेक्षा, अतिक्रमण और असुरक्षा का केंद्र बन गया है. लोगों ने मांग की है कि तत्काल अतिक्रमण हटाया जाए, परिसर की सफाई कराई जाए और वर्षों से लंबित स्वास्थ्य केंद्र के प्रस्ताव को लागू कर धरोहर का जीर्णोद्धार सुनिश्चित किया जाए।

कौन थे हाजी मो. कुदरतउल्लाह काज़मी
चुस्त पाजामा, घुटने तक कुर्ता या शेरवानी, सिर पर गांधी टोपी, गौर वर्ण, स्वस्थ शरीर, मुख पर मुस्कान यही पहचान थी सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी एवं प्रखर स्वतंत्रता सेनानी मोहम्मद कुदरतुल्लाह काजमी की। इनका जन्म मधेपुरा में 27 अगस्त 1895 को हुआ था। इनके पिता काजीम अली का अपना स्वतंत्र व्यवसाय था। मधेपुरा के अतिरिक्त अन्य कई स्थानो में इनकी ताड़ी की दुकाने थी। माँ फतिमा एक धार्मिक महिला थी। कुदरतुल्लाह काज़मी अपने छात्र जीवन में फुटबॉल के अच्छे खेलाड़ी थे। कई बार अन्तर्प्रान्तीय स्तर पर भी उन्होंने खेल में भाग लेकर पदक और यश अर्जित किया था। वे मधेपुरा के सिरीज इन्सटीच्यूसन के एक मेधावी छात्र थे, जहाँ बाबू शिवननदन प्रसाद मंडल तथा प्रसिद्ध गणितज्ञ पण्डित बलदेव मिश्र के घनिष्ट मित्र के रूप में जाने जाते थे। कुदरत साहव ने लगभग 1922 ई. में मंडल जी के साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की तथा राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय हो गये।
असहयोग आन्दोलन में वे गिरफ्तार हुए किन्तु साक्ष्य के अभाव में तुरत छोड़ भी दिये गये। 1942 की अगस्त क्रांति में उनकी सक्रियता देखते बनती थी। नशाबंदी आन्दोलन को लेकर अपने पिता से ही उन्हें अनेक बार गहरा विरोध मोल लेना पड़ा, तथा अपनी ही दुकान पर उन्होंने स्वयंसेवकों के साथ प्रदर्शन किया और धरने पर बैठ गये। इनके व्यवसायी पिता को कई दुकानें बन्द कर देनी पड़ी। उन्होंने अपने ही कई ताड़ और खजूर के पेड़ों को कटवा कर नशा बन्दी आन्दोलन का श्री गणेश किया।
मधेपुरा के इतिहास में 17 अगस्त 1942 अविस्मरणीय दिन था। स्वतंत्रता सेनानियो एवं क्रांतिकारियों ने पहले फौजदारी कचहरी, फिर थाना और रजिस्ट्री ऑफिस आकर इन्हें बन्द करवा दिया। इस जुलूस के नेतृत्व महताव लाल यादव ने किया था। मधेपुरा के दारोगा अर्जुन प्रसाद सिंह ने महताव लाल यादव, कुंज बिहारी लाल दास, देवदत्त खवास, कुतरतउल्लाह, भूपेन्द्र नारायण मंडल और अयोध्या प्रसाद को गिरफ्तार कर एस. डी. ओ. राजेश्वर प्रसाद सिंह के कोर्ट में भा० दण्ड संहिता की धारा-143/448 तथा 144/363 के अन्र्तगत अभियोग पत्र के साथ मामला दायर किया। अभियुक्त सरयुग प्रसाद सिंह, कार्तिक प्रसाद सिंह, महावीर प्रसाद सिंह, नुनु प्रसाद सिंह, रामबहादुर सिंह, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल, वैधनाथ घर मोजुमदार तथा प्रेम नारायण मिश्र को फरार घोषित किया गया।
इसी मुकदमे के अभिलेख संख्या 597/42 के अनुसार दिनांक 13.11.1942 को एस. डी. ओ ने मुकदमे के अभिलेख को जिला दण्डाधिकारी भागलपुर को भेज दिया। दिनांक 26. 6 43 को भागलपुर के विशेष दण्डाधिकारी आर. एस. पाण्डेय ने महताव लाल यादव को पांच वर्षों के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। भूपेन्द्र नारायण मंडल, देवदत्त खवास और कमलेश्वरी प्रसाद मंडल को उसी धारा के अन्र्तगत 4-4 वर्षों के सश्रम कारावास की सजा दी गयी। अभियुक्त कुदरउल्लाह, सरयुग प्रसाद, अधिक लाल तथा कुंज बिहारी लाल दास को तीन-तीन वर्षों के सश्रम कारावास की सजा मिली। ये लोग भागलपुर सेन्ट्रल जेल भेजे गये। यह थी उनकी जेल यात्रा की कथा।
कुदरत साहब अद्भुत जीवट के इंसान थे। वे कोसी अंचल के लोकप्रिय नेता थे और प्रखर राष्ट्रवादी मुसलमान। उन्होंने जीवन भर मुस्लिम लीग का तीव्र विरोध किया। वे अनेकानेक सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े रहे। वे मधेपुरा-सुपौल सहकारी बैंक निर्देशक मंडल के सम्मानित सदस्य थे। इसके साथ ही वे बिहार राज्य हज समिति तथा मुस्लिम धार्मिक न्यास समिति के सदस्य भी रहे। वे स्वयं 1962 ई. में हज करके लौटे थे। ललित नारायण मिश्र ने बिहार राज्य कांग्रेस समिति में कोसी प्रकोष्ठ की स्थापना की थी-कुदरतउल्लाह इसके आजीवन सक्रिय सदस्य रहे।
इनकी पत्नी बीबी कनीज फातिमा इनके सामाजिक कार्यों में इनका साथ देती रही। कुदरत साहब 1947 ई. में बाबू नागेश्वर सिंह जैसे दवंग व्यक्ति को हरा कर भागलपुर जिला बोर्ड के सदस्य निर्वाचित हुए। इस अवधि में इन्होंने मधेपुरा क्षेत्र में कई सड़कें और पुल बनवाये ।
राज्य कांग्रेस के आदेश पर इन्होंने राज्य के अनेक भागों में गहन दौरा कर मुसलमानों के बीच कांग्रेस के कार्यक्रमों को समझाया। इसके साथ ही राज्य मुस्लिम सेल के अध्यक्ष पद पर ये दीर्घ काल तक कार्यरत रहे। इन्हें हिन्दी और मैथिली के प्रति अगाध प्रेम था। ये बारह वर्षों तक बिहार राज्य हिन्दी प्रगति समिति के सक्रिय सदस्य रहे। इस समिति के अध्यक्ष प्रखर साहित्यकार डा. लक्ष्मी नारायण सुधांशु थे। कुदरत साहब बिहार मैथिली महासंघ के उपाध्यक्ष भी थे। वे अपने घर में तथा जनता के बीच मैथिली में बोलना अधिक पसन्द करते थे। इसके साथ ही वे 1952 से 1964 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य भी रहे। कोसी अंचल के राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में इनका योगदान अविस्मरणीय है। मधेपुरा में इनके नाम पर एक यूनानी दवाखाना स्थापित है जो-सरकारी मदद के अभाव में जर्जर अवस्था में है। इस महान राष्ट्र भक्त ने अपने लाखों प्रशंसकों को छोड़ कर 14 दिसम्बर 1968 को इस फ़ानी दुनियाँ को अलविदा कह दिया।
रजिउर रहमान
प्रधान संपादक
द रिपब्लिकन टाइम्स

