दफ्री सिप्ला की जन सेवा पहल है। सिप्ला ने हाल में दमा ;ऐज्मद्ध से जुड़े कलंक को मिटाने के लिए अपने राष्ट्रव्यापी प्रचार अभियान के तहत देश के विभिन्न हिस्सों में बेरोक जिंदगी यात्रा का आयोजन किया है। महीने भर के इस अभियान की शुरुआत 15 दिसम्बर 2018 को की गयी। यात्रा का उद्देश्य भय और संकोच के मुक्त होकर इनहलेशन थेरेपी, श्वसन उपचारद्ध को समझाना और स्वीकार्य बनाना है।
ग्लोबल डिजीज बर्डन 2016 के अनुसार दमा की व्यापकता, संख्या में और दमा के कारण मृत्यु संख्या में के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर भारत का नाम है। इसे देखते हुए इस क्षेत्र में बेरोक जिंदगी यात्रा का महत्व और बढ़ जाता है।
डॉ. अशोक शंकर सिंह, विभागाध्यक्ष, छाती, पीएमसीएच पटना के अनुसार दमा जैसे चिरस्थायी रोगों के मामले में लोगों को लगातार शिक्षित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ठीक इसी उद्देश्य से बेरोक जिंदगी यात्रा मरीजों को भागीदार बनाकर उन्हें खुद के उपचार में अधिक प्रभावकारी भूमिका निभाने को तैयार करती है, ताकि वे इनहेलर का इष्टतम प्रयोग और रोग नियंत्रण के लिए डॉक्टरों के साथ सहयोग कर सकें और अपना जीवन भरपूर जी सकें। दमा के नियंत्रण के लिए संवाद बढ़ाने का प्रयास करते हुए यह अभियान दमाग्रस्त लोगों को उनके दैनिक जीवन में अधिक सक्रिय बनाने की हमारी कोशिशों का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
अब समय आ गया है जब बाधाओं को दूर किया जाए और इनहलेशन थेरेपी का महत्व स्वीकार करते हुए इसका पालन किया जाए। दमा इस चिरस्थायी रोग है जिसमे लम्बे समय तक इलाज की ज़रुरत होती है। अनेक मरीज एक बार अच्छा महसूस करने पर इनहेलर लेना बंद कर देते हैं। यह खतरनाक हो सकता है, क्योंकि उपचार बांड करने का अर्थ उनके चुस्त और स्वस्थ रखने वाली चीज को ही बंद कर देने के समान है। मरीजों को अपने डॉक्टर से वैसी हर बात पर सलाह लेनी चाहिए जिसके कारण वे इनहेलर का प्रयोग छोड़ देते हैं। इस मामले में खुद फैसला नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है।
डॉ. सुजीत कुमार मधुकर,चेस्ट फिजिशियन, मधुकर क्लिनिक ने आगे कहा कि दमा और इनहलेशन थेरेपी के प्रति लोगों की धारणा बदलना वेहद ज़रूरी है। इनहलेशन थेरेपी लोगों के जीवन पर दमा का प्रभाव कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए इसका अनुपालन महत्वपूर्ण है। सांस के माध्यम से औषधिया लेने से वे सीधी फेफड़ों में पहुंचतीं हैं, लेकिन मरीजों को पूरा लाभ पाने के लिए लिखे गए उपचार को अपनानी की ज़रुरत है। इनहलेशन थेरेपी लक्षणों से राहत देकर और उन्हें भड़कने से रोककर दमा को नियंत्रित करता हैए किन्तु उनका असर तभी होगा जब मरीज अपने डॉक्टर के साथ सहयोग करे और बतायी गयी विधि के अनुसार उपचार का प्रयोग करे। इस स्थिति के बारे में लोगों की जानकारी बढ़ाना ज़रूरी है, क्योंकि भारत में मरीज बीच में ही इनलालेषण थेरेपी बंद कर देते हैं जिसके कारण रोग पर नियंत्रण मुश्किल हो जाता है।
हालांकि दमा पूरी तरह ठीक नहीं होता, तो भी इस पर पूरा नियंत्रण करना और सामान्य सक्रिय जीवन जीना संभव है। बाज़ार में दमा के लिए अनेक उपचार और उपचार की अनेक विधियाँ उपलब्ध हैं। किन्तु आज दुनिया भर में यह स्वीकार कर लिया गया है दमा की दवा लेने का सबसे बढ़िया और सुरक्षित तरीका इनहलेशन सांस के सहारे ही है, क्योंकि यह सीधे आपके फेफड़ों में पहुँचती है तुरंत असर डालती है। लेकिन आप अगर गोली या सीरप ले रहे हैं, तो दवा को असर करने में समय लगेगा। क्योंकि दवा पहले पेट में घुलकर खून में मिलेगी और तब अंत में फेफड़ों में पहुंचेगी। इसके अनेक साइड इफ़ेक्ट भी हो सकते हैं। याद रखें कि इनहलेशन थेरेपी में दवा की अपेक्षित खुराक सीरप या गोली से 20 गुणा तक कम होती है और असर ज्यादा होता है।
बेरोक जिंदगी यात्रा का लक्ष्य लाखों लोगों को खुलकर सांस लेने में मदद पहुंचाना है और यह दमा के शिकार लोगों को इनहलेशन थेरेपी अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। लक्षण को छिपाने से जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं होगाए इसे स्वीकार करने से होगाण् दमा को दवाओं से नियंत्रित किया जा।