पंजाब : अहरार पार्टी के 89वें स्थापना दिवस पर विशेष-भारत की जंगे आजादी और मजलिस अहरार इस्लाम पार्टी

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मेराज आलम
ब्यूरो, लुधियाना

लुधियाना/पंजाब : 1857 ई. की जंगे आजादी की नाकामी के बाद अंग्रेज सरकार ने बड़ी कठोरता से आजादी की शमा को ठंडा कर दिया था, लेकिन शम्मा-ए-आजादी के शोले बुझने के बजाए राख के नीचे सुलगते रहे और आखिरकार उन शोलों ने दबी हुई आग को फिर भडक़ा दिया। देश भर में अलग-अलग पार्टियों और अलग-अलग धर्मों के लोगों ने गुलामी की जंजीर तोडऩे का इरादा करते हुए मैदान में कदम रखा।

जंग-ए-आजादी के परवानों की ऐसी ही एक पार्टी का नाम है ‘‘मजलिस अहरार इस्लाम हिंद’’। अहरार पार्टी की स्थापना 29 दिसम्बर 1929 में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सैनानी रईस-उल-अहरार मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी और उनके साथी सय्यद अताउल्लाह शाह बुखारी, चौधरी अफजल हक, हस्सामुद्दीन इत्यादि ने की। मजलिस अहरार इस्लाम हिंद ने आजादी की लड़ाई में कई कुर्बानियां दी।

प्रसिद्ध इतिहासकार मास्टर तारा सिंह ने अपनी किताब ‘‘हिस्ट्री फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया’’ के पृश्ठ नं. 282 पर अहरार पार्टी का जिक्र करते हुए लिखा ‘‘मजलिस अहरार इस्लाम हिंद के नेताओं खासकर रईस-उल-अहरार मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने अंग्रेज सरकार के विरूद्ध बगावत का आगाज करते हुए सबसे पहले बिना किसी शर्त पर देश को आजाद कराने का फैसला किया’’। वर्णन योग है कि मजलिस अहरार इस्लाम हिंद चाहे स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की पार्टी के तौर पर जानी जाती थी, लेकिन अहरार के नेताओं ने देश की आजादी की लड़ाई में सभी धर्मों के नेताओं के साथ मिलकर काम किया। मजलिस अहरार इस्लाम हिंद ने अपनी स्थापना के सिर्फ दो साल में ही अंग्रेज सरकार से अपना वजूद मनवा लिया।

अहरार का मतलब है हुर-यानी आजादी यानी आजाद लोगों की आजाद पार्टी। जिसे सिवाए आजादी के कोई शर्त मंजूर न थी। 1929 का दौर था आजादी की लड़ाई में अहरार पार्टी के कार्यकत्र्ताओं ने खुल्लम-खुल्ला अंग्रेज का विरोध शुरू कर दिया। अहरार के संस्थापक रईस-उल-अहरार मौलाना हबीब-उर- रहमान लुधियानवी को अंग्रेज ने गिरफ्तार कर लिया और जब आपको अदालत में पेश किया गया तो मौलाना लुधियानवी ने बड़ी हिम्मत का प्रदर्शन करते हुए कहा कि अंग्रेज सरकार जालिम है और जुल्म के खिलाफ अगर लडऩा जुर्म है तो मैं अपना जुर्म कुबूल करता हूं। 1929 ई. से लेकर अब तक अहरार पार्टी ने जितने भी आंदोलन चलाएं, उनमें अहरार के हजारों कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए और शहीद भी हुए। सिविल नाफरमानी के आंदोलन में अहरार पार्टी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। देश भर में 70 हजार कार्यकत्र्ता गिरफ्तार हुए। 1931 ई. में जब महाराजा कश्मीर ने यूनियन जैक उतरवा दिया और फिर अंग्रेज ने कश्मीरी जनता को गुमराह करने की कोशिश की तो अहरार पार्टी के हजारों कार्यकत्र्ता कश्मीर पहुंच गए। जेलें भर दी गईं आखिरकार अहरार की मांग मंजूर हुई और कश्मीर में एक जिम्मेदार सरकार की मांग मान ली गई। 1939 ई. में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत हुई और अंग्रेज ने देश भर में फौजी भर्ती शुरू कर दी तो मजलिस अहरार इस्लाम हिंद ने न सिर्फ अंग्रेज फौज में भर्ती का बायकॉट का ऐलान किया, बल्कि अंग्रेज सरकार के विरूद्ध आंदोलन शुरू कर दिया। सीनियर अहरारी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन अहरार पार्टी का यह आंदोलन कमजोर न हो सका।

इस आंदोलन में पंजाब में अहरार के तीन हजार कार्यकत्र्ता और 45 नेता, सूबा सरहद में एक हजार कार्यकर्ता 10 नेता, यूपी में पांच हजार कार्यकत्र्ता, बंगाल में पांच हजार कार्यकत्र्ता, मुम्बई में एक हजार कार्यकत्र्ता, और बिहार में दो हजार कार्यकत्र्ता व कई नेता गिरफ्तार हुए और उन्हें इस जुर्म में सजा भी दी गई। रईस-उल-अहरार मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी को कई मौकों पर अपने भाशण के दौरान यह कहते हुए सुना गया कि ‘‘मेरे पास 50 हजार कार्यकत्र्ता हैं जो देश की किसी भी सियासी पार्टी से बड़ी ताकत है’’। अंग्रेज सरकार के अनुमान के अनुसार सभी अहरारी नेताओं ने 10-10 साल का समय देश की आजादी के लिए अंग्रेज की जेलों में गुजारा है जब अंग्रेज ने रेलवे स्टेशनों पर हिंदू पानी और मुसलमान पानी की आवाज लगवानी शुरू की तो अहरार पार्टी ने इस साजिश को भांपा और एक पानी पीने का ऐलान कर दिया और 1947 ई. में देश आजाद हो गया लेकिन अहरार के विरोध के बावजूद पाकिस्तान बना तो देश की आजादी का एक हिस्सा फसाद की भेंट चढ़ गया। आजादी की खुशियों में एक बड़ा सदमा अहरार पार्टी के नेताओं को सहन करना पड़ा क्योंकि ज्यादातर अहरार पार्टी के नेता पंजाब से संबंध रखते थे।

बंटवारे के बाद रईस उल अहरार मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी दिल्ली में रहने लगे। पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी को मंत्री मंडल में आने की पेशकश की लेकिन मौलाना ने यह कह कर इंकार कर दिया की अहरार आजादी की कीमत नहीं लेते, सारी जिंदगी अहरार के संस्थापक से पंडित जवाहर लाल नेहरू जी मश्विरे लेते रहे। 1956 ई. में रईस उल अहरार मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी का दिल्ली में निधन हो गया। दिल्ली के जामा मस्जिद के कब्रिस्तान में मौलाना लुधियानवी को दफन किया गया जिसके बाद अहरार देश की सियासत से रूपोश होने लगी। ऐसे में अहरार के संस्थापक मौलाना लुधियानवी के पोते मुफ्ती-ए-आजम पंजाब मौलाना मुहम्मद अहमद रहमानी के सपुत्र पंजाब के शाही इमाम मौलाना हबीब-उर-रहमान सानी लुधियानवी ने अहरार पार्टी की कमान संभाली। अपने दादा के हमनाम शाही इमाम पंजाब ने अहरार पार्टी को तेजी से फैलाना शुरू कर दिया, जिसका नतीजा है कि आज अहरार पार्टी देश के कई हिस्सों में दोबारा अपना वजूद कायम कर चुकी है, जिसका काम देश के गद्दारों को बेनकाब करना है। आज अहरार पार्टी को स्थापित हुए 89 साल पूरे हो चुके हैं।


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