किशनगंज /बिहार में लागू अवैध उत्तखनन से यहाँ के खरीददार होते हैं हलाल, तो इन्ट्री माफिया हो रहे हैं मालामाल ऐसे कहीं जाकर एन.एच . की कौन कहे ,अब तो ग्रामीण सड़कें भी अछूते नहीं रह गये हैं । जहां किसी ना किसी तरह इस कथित अवैध धंधों में संलिप्तों की बल्ले बल्ले होती जा रही है । जबकि खनन विभाग खर्राटे भर रही है तो पुलिस विभाग बदनाम होकर भी इसकी पहरेदारियों में लगी रहती है ।
सरजमीन-ए-दास्तांओं की अगर मानी जाय तो कारण कोई भी हो,जहां ओवर लोडेड ट्रकों की धर पकड़ होती हीं रहती है ।पुलिस ऐसे वाहनों को पकड़ कर खनन एवं भूतत्व विभाग को सूचित करती है । तब कहीं जाकर विभाग अपनी कार्यवाहियां शुरु करती है । जहां ट्रक ऑनर या चालक आवश्यक प्रक्रियाओं को पूरा कर ट्रकों को कई दिनों बाद रिलीज करा पाते हैं ।अगर छोटे छोटे ट्रेक्टर मालिकों की मानी जाय तो अपने खेतों से भी थोड़ा बालू उठाकर अपने कामों में लगाने के लिए ले जाने की सजा फौरन मिल जाती है । पूंजी के अभाव में इनके ट्रेक्टर थानाओं में पड़ी धूल चाटती नजर आऐगी । बेचारे ट्रेक्टर मालिकों के सामने “राधा को नौ मन घी होगी ना राधा नाच पायेगी ।
कुल मिलाकर समस्या “लाईन”पर आ रुक जाती है । लोग अब मिट्टी काटने और भरने के नाम पर भी कांप जाते हैं । वहीं कथित ओवर लोडेड ट्रक मालिक 15 से 50हजार का दंड देकर भी खुलेआम मनमानी से नही चूकते । अगर इन्ट्री माफिया शब्दों का विश्लेषण किया जाय तो, ट्रक ड्राईवरों के जानिव से कहा जाता है कि – खेल की शुरुआत चक्करमारी के चक्करों से शुरु होती है । जहां बांगलादेश भेजे जानेवाले पशुओं पर लगने वाले निशान की तरह ट्रकों में भी संकेत चिन्ह मिल जाते है ।जिस संकेत के मुताविक खनन विभाग हो या पुलिस अपनी हिस्सेदारियों का निर्वहन कर लाईन क्लियर कर देने के किस्से यहां चटखारे लेकर सुनाई जाती है । चिल पौं और रोविन हुड की तर्ज पर इन्ट्री की खिलाफत करने वाले तथाकथितों के जुवानों पर ताले जड़े जा चुके हैं । जिसके कारण कोई जेल गये तो किसी को निलंवित किया गया, पर दशा जस की तस , इन्ट्री का खेल बदस्तुर जारी रहने की बातें जुमले की तरह सुनी जा सकती है ।
आज के हालात जो सुने जा सकते हैं ,रसूखवाले भी इस धंधे में अपने लोगों को रोजगार दे रखे हैं । जहां उनकी तूती बजती देखी जा सकती है । ऐसे रसूखदारों के रसूख के पीछे आखिर किसे नोकरी प्यारी नहीँ है । सो जैसे तैसे कथित धंधों को चलने चलाने से इन्कार नहीं किया जा सकता है । फलतः बेरोजगार और चार पैसे कमाने की जुगत में भिड़े अब धंधेबाज के नामों से मशहूर है । जहाँ नौ की लकड़ी के लिए नब्बे खर्च करना खर्च करने वाले ओवर लोडिंग के धंधेबाज सरकार को राजस्व का चूना लगाने से नहीं चूकते हैं ।
कुल मिलाकर ढाक के वही तीन पात बाली कहावत जीओ और जीने दो । जिसके दायरों में कौन कौन उसकी पहचान बड़े काम की परिभाषा साबित हो रही है । इस तरह बड़े बड़े, छोटों को जमींदोज करने से जरा भी परहेज नहीं करते । चाहे वह पब्लिक हो ,पुलिस हो ,रसूखदार या फिर बालू , बेडमिशाली ढोनेबाले ओवरलोड वाहन सभी नीचले पायदान वालों को हीं जमींदोज करने में लगे रहते हैं । आगे ईश्वर तेरा सहारा ……।