“खुदी को कर बलंद इतना के हर तकदीर से पहले, खुदा बन्दों से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है? “
यह सिर्फ एक साहित्यिक शेर नहीं बल्कि उन तमाम लोगों के लिए एक मंत्र है जो सफलता के लिए संघर्षरत हैं । लक्ष्य भेदने के लिए प्रयासरत हैं। कदाचित् यदि लक्ष्य के प्रति दिल में अटूट विश्वास, पक्का इरादा और दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो फिर खुदा को भी अपने बंदे की बात माननी ही पड़ती है । यह सौ प्रतिशत सच है और इस सच को साबित कर दिखाया है बिहार के मधेपुरा जिला अंतर्गत चौसा प्रखंड के दो होनहार सपूतों ने । चौसा प्रखंडान्तर्गत चिरौरी गाँव के किसान विजय प्रसाद भगत के पुत्र शशि कुमार भगत और चौसा बस्ती के मजदूर पिता स्वर्गीय कैलू पासवान के पुत्र घनश्याम पासवान ने नौ वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दारोगा बनकर प्रखंड का नाम रौशन किया है । लिहाजा संपूर्ण क्षेत्र गौरवान्वित महसूस कर रहा है ।
सनद रहे कि बिहार में वर्ष 2008 में बिहार कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से पुलिस विभाग में दारोगा पद पर बहाली के लिए प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया गया था। परीक्षा परिणाम के बाद सरकार ने जो नियुक्ति प्रक्रिया सम्पन्न कराई उससे सैकड़ों अभ्यर्थी असंतुष्ट हो गए और कई समूहों ने उच्च न्यायालय पटना में न्याय की गुहार लगाया। हालांकि बाद में न्यायालय के आदेश पर सैकडों लोगों को नियुक्त किया भी गया फिर भी 133 अभ्यर्थी वैसे थे जिन्हें अब भी इंसाफ का इंतजार था । उन्होंने भी न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और नौ वर्षों तक लंबी कानूनी लड़ने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से नियुक्ति पाने में सफल रहे । उन्हीं चौसा के सपूत शशि कुमार भगत और घनश्याम पासवान भी शामिल हैं।
उक्त बाबत नवनियुक्त दारोगा शशि कुमार भगत और घनश्याम पासवान ने बताया कि वर्ष 2008 में बिहार अवर निरीक्षक के प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया गया था । उन्होंने बताया कि परीक्षा परिणाम में कई विसंगतियां थीं। कुल 31 माॅडल आंसर गलत था । लिहाजा आयोग की गलती के कारण हम जैसे सैकडों अभ्यर्थी सही उत्तर लिखने के बावजूद असफल हो गए ।
श्री भगत और श्री पासवान ने बताया कि परिणाम से असंतुष्ट सैकड़ों अभ्यर्थियों ने परीक्षा परिणाम को उच्च न्यायालय में चुनौति दिया और नियुक्ति पाने में सफल रहे ,लेकिन हम जैसे 133 अभ्यर्थी ऐसे थे जिन्हें अब भी इंसाफ का इंतजार था । शशि कुमार भगत ने बताया कि हमने इंसाफ के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और नौ वर्षों लंबी लड़ाई के बाद अक्टूबर 2018 में हमें जीत मिली और सभी 133 अभ्यर्थियों को अंततः 31 अक्टूबर 2018 को नियुक्ति पत्र प्रदान कर पुलिस अकादमी पटना में योगदान कराया गया । श्री भगत और श्री पासवान ने कहा कि हमें शुरुआत से ही न्यायालय पर पूरा भरोसा था । हमें सच को साबित करने में देर जरूर लगा लेकिन अंततः हमें न्याय जरूर मिला । उन्होंने देर से नियुक्ति के बावजूद वर्ष 2009 के प्रभाव से ही वरीयता का लाभ देने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आभार प्रकट करते हुए कहा कि इस फैसले से न्यायपालिका का इकबाल बुलंद हुआ है।
बहरहाल श्री भगत और श्री पासवान अब दारोगा बन चुके हैं । लेकिन इस सफलता के पीछे उनके संघर्ष की जो कहानी है वह आज के युवा वर्ग के लिए अनुकरणीय है । चौसा क्षेत्र अपने इन दो सपूतों की सफलता पर गौरवान्वित है।