बिहार के औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर देव स्थित सूर्य मंदिर करीब एक सौ फीट ऊंचा है। यहां संस्कृति के प्रतीक सूर्यकुंड को गवाह मानकर व्रती जब छठ मैया और सूर्यदेव की आराधना करते हैं, तो उनकी भक्ति देखते ही बनती है। छठ मेले में यहां जाति, संप्रदाय एवं शास्त्रीय कर्मकांड के बंधन समाप्त हो जाते हैं।
कहा जाता है कि कुष्ठ रोग ठीक होने के कारण प्रयाग के राजा ऐल ने यहां तालाब एवं मंदिर बनवाया। बाद में उमगा के राजा भैरवेंद्र ने देव, देवकुंड एवं उमगा में विशाल मंदिरों का निर्माण कराया।
हालांकि ज्यादातर लोग देव सूर्य मंदिर को विश्वकर्मा कृत मानते हैं। लोग मानते हैं कि इस मंदिर का निर्माण रात्रि के एक पहर में ही भगवान विश्वकर्मा ने किया था। उन्होंने देवताओं के अनुरोध पर सूर्य उपासना के लिए सूर्य मंदिर का निर्माण किया था। आज भी लोग इस सूर्य मंदिर को बने लाखों वर्ष मानते हैं।
मंदिर के निर्माण को लेकर कई विद्वानों में कई तरह की विचारधाराएं देखी जाती है। पर, यहां सभी विचारधाराओं पर आस्था भारी है। यही कारण है कि लोग सुनी – सुनाई बातों पर ज्यादा यकीन करते हैं।
देव का सूर्य मंदिर काले पत्थरों को तराशकर बनाया गया है। यह अपनी शिल्प कला एवं मनोरम छटा के लिये विख्यात है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान सूर्य (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के रूप में विद्यमान हैं।
मंदिर के गर्भ गृह के मुख्य द्वार पर बायीं ओर भगवान सूर्य की प्रतिमा व दायीं ओर भगवान शंकर के गोद में बैठे मां पार्वती की प्रतिमा है। ऐसी प्रतिमा सूर्य के अन्य मंदिरों में नहीं देखी गयी है। गर्भ गृह में रथ पर बैठे भगवान सूर्य की अद्भुत प्रतिमा है।
देश में स्थित सभी सूर्य मंदिरों का द्वार पूरब दिशा में है, परंतु देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिमाभिमुख है। कहा जाता है कि औरंगजेब अपने शासनकाल में अनेक मूर्तियों एवं मंदिरों को ध्वस्त करता हुआ देव पहुंचा। वह मंदिर तोडऩे की योजना बना रहा था कि वहां भीड़ एकत्रित हो गई। लोगों ने ऐसा करने से मना किया, किंतु वह इससे सहमत नहीं हुआ।
औरंगजेब ने कहा कि अगर देवताओं में इतनी हीं शक्ति होती है तो वे मंदिर का प्रवेश द्वार पूरब से पश्चिम कर दें। ऐसा होने पर उसने मंदिर को छोड़ देने की घोषणा की। कहते हैं कि दूसरे ही दिन पूर्व का द्वार पश्चिमाभिमुख हो गया। इससे डरकर औरंगजेब ने मंदिर तोडऩे का अपना इरादा बदल दिया।
देव में स्थित सूर्यकुंड तालाब का विशेष महता है। छठ मेला के समय देव का कस्बा लघुकुंभ बन जाता है। छठ गीतों से यह छोटा सा कस्बा गूंज उठता है। प्रत्येक वर्ष चैत व कार्तिक माह में यहां छठ करने देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।