मधेपुरा/बिहार : लोक आस्था का महापर्व चार दिवसीय छठ पूजा शुरू हो चुका है, लेकिन अभी भी कई छठ घाट नगर परिषद के अधिकारियों की उदासीनता के कारण घाट तैयार नहीं हो पाया है. हर वर्ष के तरह इस वर्ष भी नगर परिषद अपने नीति के अनुसार काम किया और छठ जैसे महापर्व के दो दिन पूर्व घाटों की सफाई शुरू की. जबकि इसकी सफाई दीपावली से पूर्व ही शुरू हो जानी चाहिये. जिला मुख्यालय स्थित सुखासन नदी छठ घाट पर कचरों का ढेर लगा हुआ था. जिसपर सोमवार को नगर परिषद के कर्मियों के द्वारा मिट्टी डालना शुरू किया गया. इस घाट पर दूर दूर तक कचरा फैला हुआ है और बड़े बड़े गड्ढे बने हुये है. जिसमें शहर का सारा कचरा सफाई कर्मियों द्वारा फैंका जाता है. गड्ढे में कचरा उपर से मिट्टी डाल देने से कचरा तो जरूर ढक रहा है लेकिन यह कहीं घटना का कारण न बन जाये.
पर्व के दो दिन पहले सफाई के नाम पर की जा रही है खानापूर्ति : महापर्व के सिर्फ दो दिन पहले कचरा पर मिट्टी डाल देने से वह ढ़क तो गया है लेकिन लोगों के आवागमन के दौरान मिट्टी के धंसने से छठ व्रतियों एवं लोगों के साथ घटना घटित होने की आशंका बनी हुई है. साथ ही जहां जहां मिट्टी डाला गया है उसे सही तरीके से दबाया नहीं गया है. जिसके कारण घाट उबड़ खाबड़ है. कुछ दिन पूर्व नगर परिषद के कर्मचारियों द्वारा पहल की जाती तो ऐसी स्थिति नहीं रहती. मिट्टी अच्छे से दबाया जा सकता था और घाट को बेहतर तरीके से साज सज्जा हो सकती थी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. अंत में साफ सफाई के नाम पर खानापूर्ति कर जा रही है.
पहुंच पथ पर बिखरा है शीशा, जख्मी हो सकती है व्रति महिलाएं : शहर से लाये गये कचरे में कई तरह की अपशिष्ट पदार्थ होते है. जो लोगों के लिये हर दृष्टि से हानिकारक होता है. जिसमें आग लगने के बाद उठने वाला धुंआ लोगों के लिये बीमारी का कारण बन सकता है. इस सभी बातों की जानकारी होने के बावजूद सफाई कर्मियों के द्वारा आग लगा दिया गया. इस कारण घाट बनाने पहुंचे लोगों एवं मजदूरों को काफी परेशानी हुई. लोगों ने नगर परिषद के इस कार्यशैली पर आक्रोश भी व्यक्त किया. साथ ही इन कचरों में शीशे की बोलते एवं टूटा शीशा भी रहता है, जो रास्तों पर बिखरा पड़ा है. छठ घाट पर डाला लेकर पहुंचने वाले श्रद्धालु एवं व्रति महिलाएं घाट पर पहुंचती है. रास्ते में शीशा होने से उनके जख्मी होने का डर बना हुआ है.
प्रकृति से जुड़े रहने का प्रेरणा देता है छठ पर्व : लोक आस्था का महापर्व छठ धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ आमजनों को पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ प्रकृति से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है. यह पर्व धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ हमें कई चीजों की अहमियत सिखाता है. जिसमें वर्तमान स्थिति में सुखती नदियों को लेकर भी यह पर्व मायने रखता है. यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हमारे जीवन में नदियों की कितनी अहमियत है, लेकिन नगर परिषद के अधिकारियों को नदी के गंदा होने एवं घाट पर फैली गंदगी से कोई मतलब नहीं है. नदी किनारे शहर का कचरा फेंकने से सिर्फ छठ पूजा में परेशानी नहीं होती है बल्कि नदी भी गंदा होता है.