मधेपुरा/बिहार : कोरोना वायरस से भारत की नहीं बल्कि पूरा विश्व परेशान है. जिले में भी कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या लगभग पांच हजार तक पहुंच चुकी है. जननायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल प्रशासन कोरोना संक्रमण को हल्के में ले रहा है. एक तरफ जहां सरकार एवं जिला प्रशासन कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लगातार कार्य कर रही है. वहीं दूसरी तरफ मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के लापरवाही के कारण जिला खतरे में पड़ सकता है. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल प्रशासन द्वारा मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के पीछे वाले भाग के खुले में कचरा जमा किया जाता है. इस तरह की गंदगी कोई पहली बार नहीं है. यहां रोजाना की स्थिति यही है, या यूं कहें कि मेडिकल कॉलेज के शुरुआत से लेकर अब तक कचरा को लेकर मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने सोचा ही नहीं है. ऐसे में यहां दुर्गंध भी बनी हुई रहती है और संक्रमण का भय भी बना हुआ है.
साफ-सफाई रखने की नसीहत देने वाला मेडिकल कॉलेज परिसर में कचरों का अंबार : कोरोना संक्रमण के दौर में जिले को साफ-सफाई रखने की नसीहत देने वाला मेडिकल कॉलेज परिसर में ही कचरों का अंबार लगा हुआ है. एक सप्ताह पूर्व मेडिकल कॉलेज को सरकार के द्वारा पांच सौ बेड का कोविड डेडीकेटेड अस्पताल घोषित कर दिया गया है. अब यहां सिर्फ कोरोना संक्रमित मरीजों का ही इलाज किया जा रहा है. इस दौरान मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल से मरीजों के द्वारा उपयोग किए गए खाने के प्लेट, पानी की खाली बोतलें, बच्चे हुए खाद्य पदार्थ एवं चिकित्सकों तथा कर्मियों के द्वारा उपयोग किए गए पीपीई किट तथा अन्य मेडिकल कचरा, ज्यादा निकल रहा है. जिसे अस्पताल परिसर के पिछले वाले भाग में खुले में जमा कर दिया जाता है. कचरा में खाद्य पदार्थ होने के कारण उस पर कुत्ते मंडराते रहते हैं, उसे बिखेर देते हैं तथा उन खाद्य पदार्थों को खाते हैं. साथ ही आंधी व तेज हवा के कारण कचरा अस्पताल परिसर के साथ-साथ अस्पताल परिसर के बाहर भी उड़ने लगता है. जिससे कोरोना संक्रमण के फैलने की आशंका बढ़ जाती है.
मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के उदासीनता के कारण संक्रमण को फैलने में मिलेगी मदद : मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल परिसर की सफाई के दौरान सभी कचरों को अस्पताल परिसर में ही जमा कर दिया जाता है. जिस जगह कचरा को जमा किया जाता है, उसके आसपास अस्पताल प्रशासन के कर्मियों का आवास है. जिसमें रहने वाले कर्मियों को कचरा से निकलने वाले बदबू का सामना करना पड़ता है. मेडिकल कचरे के रूप में निष्क्रिय व अपशिष्ट सलाईन की खाली बोतल, रुई, डिस्पोजल, पाईप, दवा की बोतल, प्लास्टिक यत्र-तत्र फेंक दी जाती है. साथ ही अभी कोरोना वायरस के इलाज के दौरान मरीजों एवं चिकित्सकों के उपयोग में लाये जाने वाले कीट एवं अन्य व्यर्थ कचरों को भी अस्पताल परिसर में हीं फेंक दिया जाता है. जिसके बाद वह कचरा सड़-गल जाता है और उसमें से बदबू निकलने लगती है, जहां सांस लेना भी दुश्वार हो जाता है. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल प्रबंधन के उदासीनता के कारण कोरोना संक्रमण को रोकने के बजाय संक्रमण को फैलने में मदद मिलेगी.
मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल को ईलाज की है जरूरत : मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल से निकलने वाला निष्क्रिय व अपशिष्ट कचरा अस्पताल परिसर के वातावरण को दूषित कर रहा है. कचरे से निकलने वाली दुर्गंध से यहां ईलाज कराने पहुंच रहे मरीजों एवं परिसर में रह रहे अधिकारी एवं कर्मियों के परिजनों पर संक्रमित बीमारियों से ग्रस्त होने का खतरा बना रहता है. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही व उदासीनता से मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में इलाजरत मरीजों के जल्द स्वस्थ होने पर प्रश्नचिन्ह लगना लाजमी है. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के सफाई कर्मी मेडिकल कचरे व कूड़े को अस्पताल परिसर में ही फेंक देते हैं. नतीजन वहां गंदगी का अंबार लग गया है. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल परिसर में व्याप्त गंदगी को देख ऐसा लगता है कि मानो मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल को ही ईलाज की जरूरत है.