सामाजिक मुद्दे व सरोकार हो गये हैं गौण, भ्रष्टाचार व दिशाहीनता ने पकड़ ली है गति

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मधेपुरा/बिहार : हमारा समाज एक ओर जहां पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति की चपेट में है तो दूसरी ओर मानसिक प्रदूषण के कारण हमारे युवा वर्ग दिशाहीन होता जा रहा है. यदि समय रहते हम नहीं चेते तो वो दिन दूर नहीं जब राष्ट्रीय पर्व भी लोग महज औपचारिकता पूरी करने के लिए मनायेंगे.

उक्त बातें “द रिपब्लिकन टाइम्स” से विशेष बातचीत के क्रम में समाज के बुद्धिजीवियों ने कही. उन्होंने गणतंत्र दिवस को लेकर गणतंत्र के सही मायने पर विस्तार से चर्चा की और दिशाहीन हो रहे युवाओं को चेतने की सलाह दी. युवाओं में राष्ट्रीयता की भावना, शिक्षा के प्रति रूझान, सामाजिक सरोकार, परिवार के प्रति दायित्व का बोध एवं टीवी व मोबाइल के माध्यम से हो रहे चारित्रिक पतन के बारे भी विस्तार से चर्चा की.

शिक्षा के क्षेत्र में विकास की जरूरत : गणतंत्र दिवस के अवसर पर शहर के बुद्धिजीवियों, व्यवसाईयों, महिलाओं, छात्रों व युवाओं से बातचीत कर आज के युवा के अंतर तथा समानता को समझने की कोशिश की गयी. उनसे युवाओं में राष्ट्रीयता की भावना, शिक्षा के प्रति रूझान, सामाजिक सरोकार, परिवार के प्रति दायित्व बोध और चरित्र के बारे में बात की गयी. जिसमें अधिकांश युवाओं ने कहा कि आज गण के पास तंत्र नहीं पहुंच पाया है. खास कर शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी विकास की जरूरत है. युवाओं ने कहा कि शिक्षा बढ़ेगा तो देश बढ़ेगा. अब मधेपुरा के युवा जग गये हैं.

सामाजिक मुद्दे व सरोकार हो गये हैं गौण, भ्रष्टाचार व दिशाहीनता ने पकड़ ली है गति : मधेपुरा महिला महाविद्यालय मधेपुरा की प्राचार्य प्रो जूली ज्योति ने कहा कि पहले लोग समाज व देश के बारे सोचते थे और सामाजिक दायित्वों के निर्वहन की बातें करते थे व सोचते थे, लेकिन अब स्थिति बिल्कुल विपरित है. सामाजिक मुद्दे व सरोकार गौण हो गये हैं. यही कारण है कि भ्रष्टाचार व दिशाहीनता ने गति पकड़ ली है. चरित्र ही  युवाओं की मूल पूंजी होती थी और आज भले ही हम तकनीकी रूप से विकसित हो चुके हैं, लेकिन अधिकांश युवाओं में चारित्रिक पतन स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है. साथ ही नशाखोरी तो युवाओं को खोखला करने पर उतारू है. उनमें परिवार के प्रति दायित्व बोध की भी कमी है. भूपेंद्र नारायण मंडल वाणिज्य महाविद्यालय की हिंदी विभाग की सहायक प्राध्यापक प्रो अंजलि पासवान ने कहा कि पहले समाज में शिक्षा का अभाव था, लेकिन चारित्रिक तौर पर हम काफी सशक्त थे. हमें राष्ट्रीयता के बारे किसी क्लास की दरकार नहीं पड़ती थी, लेकिन आज युवाओं को राष्ट्र प्रेम की शिक्षा दी जाती है. उन्होंने कहा कि आज युवा पीढ़ी बेशक ज्यादा समझदार व शैक्षणिक तौर पर सशक्त हैं, लेकिन तकनीकी विकास के साथ उनका नैतिक पतन भी हुआ है.

पहले युवाओं के लिये अहम होते थे सामाजिक मुद्दे और सरोकार : गृहणी मीरा गुप्ता ने बताया कि पहले युवाओं में देशप्रेम का जज्बा कूट-कूट कर भरा होता था और देश की समस्या पर वे तुरंत प्रतिक्रिया करते थे. गांव की मिट्टी की खुशबू वे शहरों तक फैलाते थे. वहीं आज की युवा पीढी शार्ट कट का रास्ता अख्तियार करते हैं और ये दिल मांगे मोर…, की नीति अपनाते हैं. शिक्षिका शबनम आरा ने कहा कि जहां एक ओर युवाओं में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी होनी चाहिये थी. वहीं दूसरी ओर युवाओं में शिक्षा के प्रति रूझान कोई खास नहीं होता दिख रहा है. पहले युवाओं के लिये सामाजिक मुद्दे और सरोकार अहम होते थे और परिवार के प्रति दायित्व बोध गहरा होता था. जो अब नहीं दिख रहा है. चरित्र युवाओं की मूल पूंजी होनी चाहिये थी. अब युवा फास्ट हैं और तकनीक से लैस हो गये हैं. जिसका प्रयोग समाज निर्माण में नहीं बल्कि समाज को गहरे खाई में ले जाने के लिए, प्रयोग किया जा रहा है. छात्रा झूमा कुमारी कहती है कि युवाओं में राष्ट्रीयता की भावना अब भी है, बस उन्हें जगाने एवं याद दिलाने की जरूरत है. शिक्षा के प्रति युवाओं की जागरूकता में काफी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन सामाजिक सरोकार की बातें युवा भूलते जा रहे हैं. नशाखोरी, चरित्रहीनता युवाओं को बरबाद कर रही है. परिवार के प्रति दायित्व बोध में कमी आयी है.

उंचा उठने की चाहत में सामाजिक सरोकार एवं मानवता के प्रति हो जाते हैं गैर जिम्मेदार : गृहणी आशा गुप्ता ने बताया कि पहले शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं थी लेकिन राष्ट्रीयता की भावना जन-जन में फैली थी. सामाजिक सरोकार से हर युवा जुड़ा होता था, जो उन्हें संस्कार में मिलते थे. चरित्र के मामले में पहले युवा बेहतर थे और परिवार से जुड़ाव भी होता था. व्यवसाई सुनील प्रसाद गुप्ता कहते है कि आज की युवा पीढ़ी ज्यादा समझदार है और शिक्षा के प्रति जागरूक भी, लेकिन नैतिक पतन हुआ है. अब संस्कार में सामाजिक सरोकार नहीं मिलते हैं बल्कि स्वार्थ मिलता है. नशाखोरी बड़ी समस्या है. जिसे देख कर दुख होता है. अब युवा निष्ठावान हो रहे हैं. रंगकर्मी बमबम कुमार ने कहा कि पहले युवा जज्बाती थे, जो उन्हें देश से जोड़े रखता था. देश की समस्या पर तुरंत प्रतिक्रिया देते थे. शिक्षा की व्यवस्था नहीं होने के कारण इसके प्रति रूचि नहीं थी, लेकिन गांव की मिट्टी के संस्कार उन्हें शहर तक निर्देशित किया करता था. शर्ट का एक बटन खुला रह जाता तो समाज का हर व्यक्ति उसका अभिभावक बन उसे टोकता था. रंगकर्मी सुमन कुमार कहते है कि अब युवा पीढ़ी जल्दी कामयाबी पाना चाहते हैं. सब अपने अंदर नेतृत्व क्षमता को देखते हैं और संगठित हो कर ज्यादा समय तक नहीं रह सकते हैं. बहुत उंचा उठने की चाहत में सामाजिक सरोकार एवं मानवता के प्रति गैर जिम्मेदार हो जाते हैं.

अमित कुमार अंशु
उप संपादक

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