मधेपुरा : दो दिन बाद शुरू होगी लोक आस्था का महापर्व छठ, बाजार में चढ़ा रंग

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अमित कुमार अंशु
उप संपादक

मधेपुरा(बिहार) : लोक आस्था का महापर्व छठ का अनुष्ठान दो दिन बाद नहाय-खाय के साथ आरंभ हो जायेगा. इस पर्व में उपयोग आने वाली सामग्रियों से पूरा बाजार सज गया है. लोक आस्था का महापर्व छठ को लेकर बाजार पूरे शबाब पर है. दीपावली समाप्त होते ही लोग छठ की तैयारी शुरू कर देते है. खासकर सूप व डाला से सजा बाजार लोगों को छठ की तैयारी से जोड़ रहा है. कर्पूरी चौक, भिरखी, मुख्य बाजार, कॉलेज चौक सहित अन्य चौक -चौराहों पर सूप, दउड़े एवं नारियल का बाजार सज गया है. छठ व्रती अथवा परिवार के सदस्य मोल-भाव कर खरीदारी करने में जुटे हुए हैं. हालांकि अंतिम समय में छठ में उपयोग होने वाले इन सामग्रियों की कीमत आसमान चढ़ी हुई है. लेकिन श्रद्धा व आस्था के सामने कीमत घुटने टेकती नजर आ रही है.
बांस के बरतन का है महत्व
छठ पर्व पर उपयोग में आने वाले बांस से बने सूप व डाला विभिन्न कीमत व विभिन्न साइजों में बिक रहे हैं. सूप की कीमत 30 रुपये से शुरू है जो 40 रुपये प्रति तक के दर से मिल रहा है. वहीं डाला की कीमत 250 से 300 रुपये तक में बिक रहा है. छोटा सूप (सूपती) की कीमत 20 से 25 रुपये है. डगरा 80 से 100 रुपये तक की दर से बिक रहा है. छठ के लिए सूप व दउड़े की खरीदारी कर रही व्रतियों ने बताया कि कीमत अभी सामान्य से अधिक जरूर है, लेकिन छठ के लिए अनिवार्य होने के कारण दर मायने नहीं रखता है. बांस के बर्तन विक्रेता ने बताया कि इस बार बांस से बनी सामग्रियों के निर्माता से ही उन्हें ऊंची कीमतों में सामान मिल रही है. लिहाजा बहुत कम फायदे पर वे इन सामानों को बेच रहे हैं.
नारियल भी कर रहे आकर्षित 
छठ का सर्वप्रमुख फल नारियल और नारियल से सजा बाजार भी छठ पर्व के करीब होने का संकेत दे रहा है. चौक -चौराहे पर इसकी भी दुकानें सजी हुई है. बाजार में नारियल की कीमत भी 40 रुपये पीस से लेकर 70 रुपये जोड़ा तक में बिक रहा है.
छठ मतलब शारदा सिन्हा का गीत 
केलवा के पात पर उगे हो सुरूज देव…, पहिले पहिल हम कएली छठि मैया व्रत तोहार…, रूनकी झूनकी…, जैसे छठ महापर्व को समर्पित गीतों से पूरा माहोल गुंजायमान है. खासकर शारदा सिन्हा के गीत काफी लोकप्रिय है. लोग बताते है कि छठ का मतलब शारदा सिन्हा का गीत होता है. चारों ओर गूंजने लगे छठ गीत माहौल को भक्तिमय बना रहे है.
भिक्षाटन कर अर्घ्य देने की है परंपरा 
लोक आस्था के इस महान पर्व की महिमा का समुचित बखान संभव नहीं है. कहते है कि सूर्य उपासना के दौरान सच्चे मन से जिसने जो मांगा छठ मैया ने देने में कोई कोर कसर नहीं नहीं छोड़ी. मैया के आर्शीवाद से सिंचित भक्त भी इस त्योहार के दौरान आम और खास का फर्क भुल कर श्रद्धा भाव से भक्ति में लीन हो जाता है. आधुनिकता की तरफ अंधी दौड़ लगा रहा हमारा समाज इस त्योहार के समय संयमित और निष्ठा से बंधा हुआ नजर आता है. छठ त्योहार को भिक्षाटन कर मनाने का रिवाज भी मिथिलांचल में सदियों से चलता आ रहा है. व्रतियों ने बताया कि छठ मैया से मांगी गयी मनोती पूरा होने के बाद बांस से बने सूप लेकर भिक्षाटन किया जाता है. भिक्षाटन में मिले वस्तुओं से मैया को भोग लगाया जाता है. लोगों का मानना है कि छठ घाट पर श्रद्धा के साथ मांगी गयी मनोकामना अगले छठ से पहले पूरी हो जाती है.

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