मधेपुरा/बिहार : राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अवसर पर स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री, ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के मौके पर वाम छात्र संगठन एआईएसएफ के राष्ट्रीय परिषद् सदस्य राज्य उपाध्यक्ष सह बीएनएमयू प्रभारी हर्ष वर्धन सिंह राठौर के नेतृत्व में छात्र छात्राओं द्वारा उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए याद किया गया।
इस अवसर पर वृक्षारोपण कर एक पखवाड़ा तक चलने वाले संगठन के कार्यक्रम कि शुरुआत भी की गई। राष्ट्र के प्रथम शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए छात्र नेता राठौर ने कहा कि राष्ट्रपिता गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले विपुल प्रतिभा के धनी मौलाना अबुल कलाम आजाद राष्ट्र के सच्चे सपूत थे, उन्होंने ताउम्र भारत के बंटवारे के मुखर विरोधी रहे और प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने अमिट छाप छोड़ी। उच्च शिक्षा के उत्थान में उनके द्वारा लिए गए फैसले आज भी अपनी उपयोगिता दर्ज करा रहे हैं। अल हिलाल जैसी चर्चित पत्रिका के संपादक रहे अबुल कलाम आजाद ने यूजीसी की नींव रखी। राठौर ने कहा कि विश्व के हर क्षेत्र में शिक्षा समाज में क्रांति व बदलाव की बाहक रही है लेकिन दुखद है कि अबुल कलाम के देश में आज शिक्षा के मायने बदल गए हैं। कभी के विश्व गुरु रहे भारत में आज आलम यह है कि छात्रों द्वारा शिक्षक खोजने के बजाय शिक्षकों द्वारा छात्रों को विभिन्न प्रकार से तलाशा जा रहा है। आज शिक्षा पूर्ण रूप से बाजार कि वस्तु सी बन गई है। उन्होंने कहा कि संगठन का प्रयास है कि शिक्षा की लौ समाज के आखिरी पायदान तक पहुंचे। आज के दौर में शिक्षा में खर्च बहुत बढ़ा है, लेकिन स्तर उतना ही गिरा है, इसको सुधारने की जरूरत है और यह तभी संभव है, जब केंद्र व राज्य सरकार इसे अपने सर्वोच्च प्राथमिकता में लेगी। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि वाम छात्र संगठन एआईएसएफ राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर एक पखवाड़ा तक अलग अलग रूपों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करेगा ।
मौके पर घनश्याम, रूपेश, काजल, अजय, मौसम, आशा, नेहा, प्रीति, अंशु, सत्यम, संजय, पिंकी आदि ने वृक्षारोपण कर राष्ट्र के प्रथम शिक्षा मंत्री को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आजादी के आंदोलन, साहित्य सेवा व आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण में शिक्षा के क्षेत्र में उनकी भूमिका सदैव याद की जाएगी। शिक्षा व्यवस्था को सुधार के ही राष्ट्रीय शिक्षा दिवस की सार्थकता सिद्ध की जा सकती है।