मधेपुरा/बिहार : भारतीय दर्शन में आत्मवत् सर्वभूतेषू, सर्व खलु इदं ब्रह्म और सर्वे भवंतु सुखिनः का आदर्श प्रस्तुत किया गया है । यह मानता है कि संपूर्ण चराचर जगत में ईश्वरीय चेतना का वास है । मानव से लेकर पत्थर तक सभी में चेतना का वास है, इसमें न केवल सभी मनुष्यों, वरन् समस्त चराचर जगत की चिंता है ।
यह बात बीएनएमयू कुलपति प्रो डा ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही । वे ज्ञानभूमि फेसबुक पेज पर आधुनिक समाज में भारतीय दर्शन की उपयोगिता विषय पर व्याख्यान दे रहे थे । कुलपति ने कहा कि भारतीय संस्कृति संपूर्ण चराचर जगत को एक मानती है । हमारी यह मान्यता है कि मनुष्य, मनुष्येतर प्राणी एवं चराचर जगत एक है । भारतीय दर्शन सबों के विकास एवं कल्याण के लिये प्रार्थना करते हैं । भारतीय दर्शन में सभी मनुष्यों, पशु-पक्षियों एवं संपूर्ण चराचर जगत को एक माना गया है, इसमें सर्वोदय अर्थात् सबों के उदय या विकास की कामना की गई है । हमारी यह मान्यता है कि समाज की उन्नति में ही हमारी व्यक्तिगत उन्नति निहित है ।
कुलपति ने कहा कि भारतीय दर्शन आध्यात्मवादी है । यह सत्य एवं अहिंसा पर आधारित है । इसमें त्याग, तपस्या एवं सेवा की प्रधानता है । इसके विपरीत पाश्चात्य संस्कृति भोगवादी है । उसमें भौतिक उन्नति को प्राथमिकता दिया जाता है, इसके कारण आज मानव अपने को प्रकृति का मालिक एवं प्रकृति को अपनी दासी समझने लगा है । कुलपति ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि हम अपने को भूल गये हैं एवं अपनी संस्कृति को भूल गये हैं । हम भारतीय दर्शन को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर भाग रहे हैं, इसके कारण मानव एवं मानव के बीच विभेद बढ़ा है एवं आपसी वैमनस्यता बढ़ती जा रही है । मानवीय मूल्यों, नैतिक संस्कारों अतः सामाजिक सरोकारों का ह्रास हो रहा है ।
कुलपति ने कहा कि भारतीय दर्शन में प्रकृति-पर्यावरण एवं संपूर्ण चराचर जगत के साथ सहयोग एवं सहकार का आदर्श प्रस्तुत किया गया है । भारतीय दर्शन ने जो रास्ता दिखाया है, यही वह रास्ता है, जिस पर चलकर दुनिया को विनाश से बचाया जा सकता है । हम भारतीय दर्शन की ओर लौटें, भारतीय दर्शन की शरण में जायें, तभी हम बचेंगे ।