मधेपुरा : दोबारा नहीं लौटने की कसमें खा रहे हैं प्रवासी मजदूर

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कौनैन बशीर
वरीय उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : महानगरों से कामगारों और मजदूरों का लौटना जारी है। जिले के उदाकिशुनगंज मुख्यालय स्थित फुलौत चोक एनएच 106 मार्ग पर ट्रक में खचाखच लदे कई ऐसे मजदूरों की गाड़ी रेंगते हुए दिख जाएंगी। इसी दौरान महाराष्ट्र से किशनगंज जिले के विभिन्न जगहों के रहने वाले लोगों का जैसे ही ट्रक चोक पर रुका, इतने में ही कुछ लोगों ने चापाकल ढूंढते हुए। कई दिनों से भूखे होने की दस्तान सुनाने लगे।

इनमें से कई मजदूरों का कहना है कि वे कभी दोबारा लौटकर उन शहरों में नहीं जाना चाहते जहां उन्हें भूखा मरने के लिए छोड़ दिया गया ।

मालूम हो कि कोरोना की वजह से जारी देशव्यापी लॉकडाउन होने के कारण जहां सैकड़ों प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गई है वहीं जान के भी लाले पड़ गए हैं। यही वजह है कि मार्च के दूसरे सप्ताह से ही इनकी घरवापसी का सिलसिला शुरू हो गया था।

जिले के उदाकिशुनगंज अनुमंडल के विभिन्न इलाकों से कमाने के लिए दूसरे राज्यों में गए मजदूरों के आने का सिलसिला जारी है। लेकिन अब भी भारी तादाद में ऐसे लोग दिल्ली, मध्यप्रदेश, केरल समेत दूसरे राज्यों में फंसे हुए है। इनमें से कुछ मजदूरों की घरवापसी की राह में पैदा मुसीबतों की दास्तान सुन कर रोंगटे खड़े हो सकते हैं। लेकिन जान हथेली पर लेकर भूख, थकान और जंगली जानवरों के खतरे से जूझते हुए अपने गांव में लौटने वाले ऐसे मजदूर अब दोबारा दूसरे राज्यों में नहीं लौटने की कसमें खा रहे हैं। उनका कहना है कि अपने घर में परिवार के बाकी लोगों के साथ भूखे रहना और मरना भी मंजूर है। लेकिन परदेस में मुसीबतें नहीं सहेंगे।

जबकि बिहार सरकार ने सभी परिवारों को तीन महीने तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए चावल व गेहूं मुफ्त देने का एलान किया है। उन्होंने ऐसे लोगों को आर्थिक सहायता देने का भी भरोसा दिया है। लेकिन बावजूद इसके दूसरे राज्यों से गिरते-पड़ते घर लौटने वाले मजदूरों को भविष्य की चिंता सताए जा रही है। महाराष्ट से यहां लौटे गोपालपुर के प्रकाश दास सवाल करते हैं, “कोरोना तो जैसे-तैसे बीत जाएगा। अगर हम इसमें बच गए तो खाएंगे क्या? घर में रखे थोड़े-बहुत पैसे तेजी से खत्म हो रहे हैं। हम कोरोना से तो भले बच जाएं, लेकिन भूख हमें मार डालेगी” लेकिन उनके इस सवाल का फिलहाल दुनिया भर में किसी के पास शायद ही कोई जवाब है। कोरोना वायरस की वजह से होने वाली उथल-पुथल की वजह से लाखों लोगों और खासकर प्रवासी मजदूरों के सामने यही सवाल मुंह बाए खड़ा है।


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