खुद के प्रतिभा के दम पर भोजपुरी व हिंदी सिनेमा उद्योग में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली अभिनेत्री संगीता तिवारी की सहजता उन्हें भीड़ से अलग करती है।
संगीता तिवारी 15 अगस्त के दिन मुम्बई के गोरेगांव में पैदा हुईं। उनके पापा बॉलीवुड फिल्मों में ही सिनेमेटोग्राफर थे। बचपन से ही घर पर फिल्मी माहौल था। जब बड़ी हुईं तो कत्थक सीखने लगीं और कत्थक में विशारद कर लिया। मुम्बई विश्वविद्यालय से बीए किया। उन्होंने देशभर में कत्थक के शो किये। भोजपुरी सिनेमा से उनका खास कनेक्शन है। दरसअल, उनके पापा पूर्वी चंपारण से थे और मां वाराणसी से। पांच भाई-बहनों में एक संगीता के परिवार में उनके बड़े भईया मराठी और भोजपुरी फिल्मों के निर्देशक हैं।
उन्होंने बताया कि उनके पिता के एक मित्र अमरजीत सिंह घर आते-जाते रहते थे, वह टैलेंट कोऑर्डिनेटर थे। उन्होंने ही मुझे अभिनय में करियर बनाने को प्रेरित किया, मैं कत्थक में ट्रेंड तो थी ही।उन्होंने फिर मेरे फोटोज डायरेक्टर्स को देने शुरू किए और मुझे एक तेलुगू फिल्म लीड रोल के लिए मिल गयी। वह फिल्म मैं कर रही थी उसी दरम्यान अमरजीत जी के साथ मेरा कमालिस्तान जाना हुआ। वहां एक भोजपुरी फिल्म की शूटिंग चल रही थी, रविकिशन और नगमा शूट कर रहे थे। अमरजीत जी ने रविकिशन से मेरी मुलाकात कराई। रवि जी ने मुझे प्रोड्यूसर मोहन जी प्रसाद से मेरा नाम रिकमेंड किया और फिर दूसरे दिन ही मुझे एक भोजपुरी फ़िल्म मिल गयी। मोहन जी प्रसाद वह फ़िल्म निर्देशित भी कर रहे थे यही फिल्म ‘ए बलम परदेसी’ थी। 2007 में रिलीज हुई यह फिल्म सुपरहिट थी फिर मैंने रवि जी के साथ लगातार 7 फिल्में की।उनकी पांच सुपरहिट फिल्मों में रविकिशन के साथ फ़िल्म रामपुर के लक्ष्मण और धुरंधर, मनोज तिवारी जी के साथ इंसाफ, पवन सिंह के साथ रंगबाज़ राजा, विनय आनंद के साथ पागल प्रेमी हैं।
संगीता अब भोजपुरी फिल्मों से अपना ध्यान हटाकर हिंदी फिल्मों की तरफ कर रही हैं। उन्होंने हाल ही में राजू सुब्रमण्यम के निर्देशन में हिंदी फिल्म ‘तेरे मेरे दरम्यान’ की है, यह फ़िल्म जल्दी ही रिलीज होगी। उनकी एक और फिल्म इसी डायरेक्टर के साथ फ्लोर पर है।