पटना/बिहार : छोटे आकार और अपने अनूठे स्वाद के कारण पूरी दुनिया में एक विशिष्ट पहचान बनाने वाला हाजीपुर का चिनिया केला उचित संरक्षण के अभाव में अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। कभी हजारों एकड़ में हाजीपुर में इसकी खेती होती थी जो अब सिमटकर रह गया है। बाजारवाद के इस दौर में उचित मार्केटिंग के अभाव में किसानों ने चीनिया केला की खेती करनी छोड़ दी।
एक जमाना था जब आप पटना के महात्मा गांधी सेतु पुल होते हाजीपुर जाते थे तो दूर-दूर तक हजारों एकड़ में आपको केले की खेती नजर आती थी, अब पूरा इलाका वीरान नजर आता है। महात्मा गांधी सेतु के निर्माण होने के बाद सबसे ज्यादा कर फायदा किसी को हुआ था तो वह था हाजीपुर के केला और केला व्यवसायीयों को। उनके टोल प्लाजा के पास आते-जाते रूकते वाहनों के यात्रियों के रूप में चीनिया केला को बाजार मिल गया था। वैसे चीनी अकेला की डिमांड देश ही नहीं विदेशों तक में थी। महात्मा गांधी पुल की बदहाली के साथ केला व्यवसायियों की बदहाली भी शूरू हुई खासकर चिनिया केला बाजार में गुम होने लगा। छोटे साइज और सस्ता दर होने के कारण किसानों ने भी चिनिया केला के खेती से मुंह मोड़ना शुरू किया। हाजीपुर का नाम सुनते ही सहसा एक नाम उभरकर जुबान पर आता है..यानि केला।
इस क्षेत्र का मालभोग हो या अलपान या फिर चीनिया। इन सभी केलों का अपना स्वाद और अपनी विशेषता है। इस क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति केले के बगानों की स्थिति पर ही निर्भर करती है। केले की खेती किसानों की आर्थिक व सामाजिक दशा सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परंतु समय-समय पर आई कई प्राकृतिक आपदाओं ने केले के फसल उत्पादकों की कमर ही तोड़ दी है। सरकार द्वारा केला फसल को फसल बीमा में शामिल नहीं किए जाने के कारण क्षेत्र के किसानों को प्रति वर्ष भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। वर्तमान में जिले के जढुआ, सहदुल्लहपुर, सैदपुर गणेश, पानापुर धर्मपुर, कंचनपुर, रजासन, पकौली, भैरोपुर, माइल, दाउद नगर, खिलवत, बिदुपुर, रामदौली, शीतलपुर कमालपुर, अमेर, कर्मोपुर, मधुरापुर, मथुरा, गोखुला, मजलिसपुर, चेचर, कुतुबपुर, मनियापुर आदि गांवों के हजारों हेक्टेयर भूमि पर केले की फसल लहलहाती है।
जानकारी के अनुसार वर्तमान समय में 3250 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती है। फसल उत्पादन लागत में हो रही निरंतर वृद्धि, कीट व्याधि का प्रकोप एवं बाजार की समस्या ने किसानों को.प्राकृतिक आपदा के समय भी केला उत्पादक किसानों को सरकार से किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं मिलती। ¨सचाई की कोई कारगर व्यवस्था नहीं होने से किसान निजी पंप सेट से ¨सचाई करने को बाध्य हैं। जो काफी महंगा पड़ता है। उत्पादन लागत अधिक होने के कारण भी किसान परेशान हैं। केले से बनने वाले उत्पादों के संयत्र भी यहां नहीं हैं। इस क्षेत्र में केला पकाने की न तो कोई व्यवस्था है और न ही केले से बने चिप्स एवं अन्य सामग्री के निर्माण हेतु कोई उद्योग। जबकि हाजीपुर के ही हरिहरपुर में ही स्थापित केला अनुसंधान केंद्र केले के थम के रेसे से बनी वस्तुओं के निर्माण की तकनीक विकसित हो पाई है। वर्तमान में केला उत्पादक किसान परेशान हैं।