छात्र जीवन से लेकर राजनीति तक जानें कैसा रहा अरुण जेटली का सफर

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अनूप ना. सिंह
स्थानीय संपादक

बीजेपी के दिग्गज नेता और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज एम्स में आखिरी सांस ली। उनका जीवन विलक्षण उपलब्धियों से भरा रहा। राज्यसभा में बतौर नेता विपक्ष जेटली के तार्किक और अचूक तर्क सत्ता पक्ष के लिए अबूझ चुनौती की तरह रहे। बतौर नेता सदन रहते हुए भी उन्होंने उसी तार्किकता से मोदी सरकार को घेरने के विपक्ष के प्रयासों को बेदम करते रहे।

छात्र राजनीति से शुरू हुआ जेटली का सफर बीजेपी के अग्रणी नेता बनने से लेकर वित्त मंत्री की कुर्सी तक पहुंचकर खत्म हुआ। जेटली का राजनीतिक सफर एक विजेता योद्धा जैसा है जिसमें उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अभाविप से शुरू हुआ था अरुण जेटली के राजनीतिक जीवन की शुरुआत : एबीवीपी से हुई और वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र संघ अध्यक्ष भी चुने गए। 1977 में जेटली छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए और उसी साल उन्हें एबीवीपी का राष्ट्रीय सचिव भी बनाया गया। 1980 में उन्हें बीजेपी के यूथ विंग का प्रभार भी सौंपा गया। कॉलेज के दिनों से जेटली को करीब से जाननेवालों का कहना है कि बतौर छात्र जेटली अपनी भाषण शैली के कारण बेहद लोकप्रिय थे। श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रैजुएट और लॉ फैकल्टी से कानून की पढ़ाई करनेवाले जेटली की गिनती प्रतिभाशाली छात्रों के तौर पर होती थी। देश में जब आपातकाल लगाया गया तो जेटली भी जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में शामिल हो गए। युवा जेटली इस दौरान जेल भी गए और वहीं उनकी मुलाकात उस वक्त के वरिष्ठ नेताओं से हुई। जेल से छूटने के बाद भी उनका जनसंघ से संपर्क बना रहा और 1980 में उन्हें बीजेपी की यूथ विंग का प्रभार दिया गया। बीजेपी उस दौर में अटल-आडवाणी के नेतृत्व में आगे बढ़ रही थी और इसके साथ ही जेटली का कद भी लगातार बढ़ता चला गया। अरुण जेटली की गिनती देश के बेहतरीन वकीलों के तौर पर होती है। 80 के दशक में ही जेटली ने सुप्रीम कोर्ट और देश के कई हाई कोर्ट में महत्वपूर्ण केस लड़े। 1990 में उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट ने सीनियर वकील का दर्जा दिया। वी.पी. सिंह की सरकार में उन्हें अडिशनल सलिसिटर जनरल का पद मिला। बोफोर्स घोटाला जिसमें पूर्व पीएम राजीव गांधी का भी नाम था उन्होंने 1989 में उस केस से संबंधित पेपरवर्क किया था। पेप्सीको बनाम कोका कोला केस में जेटली ने पेप्सी की तरफ से केस लड़ा था। बीजेपी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अरुण जेटली ने ही सोहराबुद्दीन एनकाउंटर में अमित शाह के केस और 2002 गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की तरफ से केस लड़ रहे वकीलों का मार्गदर्शन किया था। हालांकि, 2009 में उन्होंने वकालत का पेशा छोड़ दिया।

अटल सरकार में बने केंद्रीय मंत्री : अरुण जेटली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी कई पदों पर रहे। जेटली को पहले आडवाणी के खास लोगों में शुमार किया जाता था। साल 1999 में वाजपेयी सरकार में उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, एक साल के भीतर ही कैबिनेट में जगह दे दी गई। उन्हें कानून मंत्रालय के साथ ही विनिवेश मंत्रालय का भी जिम्मा सौंपा गया।

2009 में बने राज्यसभा में बीजेपी के नेता : 2009 में अरुण जेटली को राज्यसभा में नेता विपक्ष बनाया गया। राज्यसभा में बतौर नेता विपक्ष जेटली बहुत तैयारी के साथ सरकार को घेरते थे। सदन के अंदर ही नहीं बाहर मीडिया में जेटली का जलवा था और वह अपने इंटरव्यू और प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूपीए की सरकार पर हमला बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ते।

मोदी के सबसे करीबी सहयोगी बने जेटली : बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाए जाने के मजबूत समर्थक के तौर पर जेटली उभरे। कहा जाता है कि उनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लंबे समय से अच्छे संबंध रहे थे और वह गुजरात से चुनकर राज्यसभा भी पहुंचे थे। मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी नाराज भी हुए। जेटली ऐसे मौके पर भी मजबूती के साथ खड़े रहे और प्रधानमंत्री मोदी के सबसे करीबी सहयोगी बन गए।

2014 में अमृतसर चुनाव हारे, लेकिन सरकार में कद बढ़ा : 2014 में अरुण जेटली ने अपने राजनीतिक करियर में पहली बार लोकसभा का चुनाव अमृतसर से लड़ा। इस चुनाव में उन्हें कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हरा दिया। इस हार से जेटली के कद पर कोई असर नहीं पड़ा और मोदी कैबिनेट में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। वित्त मंत्री के तौर पर पीएम मोदी ने अरुण जेटली का ही चयन किया और राज्यसभा में भी उन्हें ही नेता सदन बनाया गया। हालांकि, 2017 से ही जेटली लगातार स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे। 2018 में उनकी किडनी का भी ट्रांसप्लांट किया गया और मोदी सरकार की ओर से 2019 में वह अंतरिम बजट पेश नहीं कर सके। उस दौरान वह इलाज के लिए अमेरिका में थे।

2019 में मोदी सरकार में नहीं हुए शामिल, सोशल मीडिया पर संभाला मोर्चा : अरुण जेटली ने 2019 में मोदी सरकार में शामिल नहीं होने का ऐलान ट्विटर पर किया था। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इसके बावजूद जेटली सरकार की तरफ से लगातार सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे। उन्होंने कई बार विपक्ष के आरोपों का जवाब देने के लिए लंबे ब्लॉग भी लिखे।


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