गवर्नर एडवियर और जनरल डायर से टकराने वाले को इतिहास ने भुला दिया
लुधियाना/पंजाब : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जलियांवाला बाग में शहीद हुए लोगों की कुर्बानी को हमेशा ही याद किया गया है लेकिन इस बाग में देश की आजादी के लिए खामोशी से अपने जीवन की कुर्बानी देने वाले एस.पी.खान अहमद जान लुधियानवी को इतिहासकार और देशवासी दोनों ही भूल गए।
उक्त बातें आज यहां जामा मस्जिद लुधियाना में बुलाये गए पत्रकार सम्मेलन में महान स्वतंत्रता सैनानी परिवार के सदस्य व पंजाब के शाही इमाम मौलाना हबीब उर रहमान सानी लुधियानवी ने कही। मौलाना हबीब ने बताया कि लुधियाना का होनहार पुत्र खान अहमद जान जब लंदन से उच्च शिक्षा हासिल करके भारत लौटा तो भारत के तत्कालीन वायसराय चामस फोर्ड से लंदन में जान पहचान होने की वजह से खान अहमद जान को सीधा अमृतसर का पुलिस कप्तान लगा दिया गया और इस तरह लुधियाना का यह पठान पुत्र एस.पी खान अहमद जान के नाम से मशहूर हुआ।
शाही इमाम मौलाना हबीब उर रहमान ने बताया कि 12 अप्रैल की शाम को पंजाब का गवर्नर एडवॉयर जलियांवाला बाग में चल रहे संघर्ष को खत्म करवाने के लिए खुद अमृतसर पहुंच गया और फिर उसी रात को अमृतसर के डी.सी हाउस में गवर्नर एडवॉयर और जनरल डायर ने एस.पी खान अहमद जान को बुलाया कि सुबह को जलियांवाला बाग में धरना प्रदर्शन कर रहे स्वतंत्रता सैनानियों पर गोली चलानी है। एस.पी खान अहमद ने निहत्थों पर गोली चलाए जाने का विरोध करते हुए यह काम करने से इंकार कर दिया तो जनरल डायर आग बबूला हो गया और उसने कहा कि हम तुम्हें एस.पी से सिपाही बना देंगे। खान ने गवर्नर के सामने जनरल डायर को एक बार फिर इनकार करते हुए अपनी पेटी उतार कर उन्हे दी और कहा कि निहत्थों पर गोली चलाना कायरता है और मैं ऐसी नीच हरकत नहीं कर सकता, खान की इस गुस्ताखी पर गवर्नर पंजाब ने कहा कि अगर तुम वायसराय के मित्र ना होते तो मैं तुम्हें अभी गोली मार देता।
शाही इमाम ने बताया कि इस वाक्य के बाद खान साहिब को फौरन एस.पी के पद से हटाया गया। खान साहिब उसी रात लुधियाना लौट आए, खान ने जनरल डायर का हुक्म मानने से इंकार करके इतिहास में दर्ज इस नरसंहार में किसी भारतीय एस.पी का नाम आने से बचा लिया। शाही इमाम ने बताया कि एस.पी खान अहमद जान इस घटना के बाद 1944 तक जीवित रहे। आप लुधियाना में महान स्वतंत्रता सैनानी मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवीं (प्रथम) के पड़ोसी थे, हर महीने ब्रिटिश सरकार की तरफ से सिपाही कि पेंशन और माफी नामा आता था कि माफी मांगो और एस.पी बन जाओ लेकिन खान अहमद जान ने ना पेंशन ली और ना ही अंग्रेज़ से माफी मांगी, बल्कि सारा जीवन देश के लिए लड़ रहे स्वतंत्रता सैनानियों के नाम कर दिया। शाही इमाम ने कहा कि खान साहिब हमारे देश के उन महान क्रांतिकारियों में से एक हैं जो खामोशी के साथ अपनी कुर्बानी दे गए। शाही इमान ने मांग कि इस महान सपूत का जिक्र जलियांवाला बाग में होना चाहिए।