नारियों का सम्मान एवं उनके हितों की रक्षा करना भारतीय समाज की प्राचीन संस्कृति रही है। “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” और “माँ के पैरों तले जन्नत है ” जैसी सुक्तियों के द्वारा उन्हें महिमामंडित किया जाता है। यहाँ की बेटियाँ खेतों में काम करने से लेकर अंतरिक्ष यात्रा का मुकाम तय कर चूकी है!
राजनीति, शिक्षा व अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी धाक जमाने के साथ ही विश्व सुंदरी का ताज भी पहन चूकी है। देश की रक्षा से लेकर प्रशासनिक व्यवस्था हो या फिर राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों से लेकर ओलम्पिक तक में भारत के लिए सोना, चांदी और कांसे के तमगे बटोर कर लाती है। बाबजूद इसके आधी आबादी मानी जाने वाली शक्ति स्वरूपा नारी प्रतिदिन मानवीय क्रुरता , अत्याचार, सामुहिक बलात्कार और शोषण का शिकार हो रही हैं।उनके मजबुत इरादों, हौसलों और सपनों को बल प्रदान करने की अपेक्षा कुचलने का प्रयास किया जा रहा है।नित प्रति दिन अखबारों और टीवी चैनल्स पर सामुहिक बलात्कार, छेड़छाड़ की घटनाओं की खबरें देखकर ग्लानि होती है। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए और सत्तारुढ़ सरकार अपने दायित्वों से मुख मोड़ ले तो फिर सुरक्षा की क्या गारंटी?
समाज में चहुँओर बेटियों की असुरक्षा की ब्यार चल पड़ी है, ऐसे में जहाँ “बेटी पढ़ाओ” एक चुनौती तो ” बेटी बचाओ ” एक चेतावनी सा प्रतीत होता है। नारी सुरक्षा के लोकलुभावन नारे के सहारे सत्ता के शीर्ष तक पहूंचने वाली सरकारें अपने दावों और वादों में पूर्णतः विफल रही है। न सिर्फ हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश की माएं पूछ रही हैं कि आखिरकार वह कब तक सामंती सोच वाले घुंघट से बाहर निकलने का खामियाजा भुगतती रहेंगी? व्यवस्थागत चुप्पी पर हर माँ का सवाल कि “कैसे पढ़ाऊँ और बचाऊँ अपने बेटियों को? ” झकझोर कर रख देने वाला है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि असहाय बालिकाओं की सुरक्षा के नाम पर सरकार व एनजीओ की सहायता से संचालित बालिका गृह भी उनके लिए सुरक्षित नहीं है। बिहार की चर्चित मुजफ्फरपुर बालिका गृह की घिनौनी कृत्य के उजागर होने के बाद तो अन्य जगहों से ऐसी शर्मनाक खबरें सामने आने लगी हैं। निकट चुनाव में बिहार की जनता को नारी सुरक्षा के मुद्दे पर भी राजनीति दलों से सवाल अवश्य पूछने चाहिए । उन पीड़ित बेटियों को इंसाफ दिलाना और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों इसके लिए हमसबों को सजग रहना होगा।
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं के सम्मान में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होगा! मीडिया और सोशल मीडिया पर उनकी उपलब्धियों के कसीदे गढ़े जाएंगे।निःसंदेह महिलाओं के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता है परंतु हमसबों को गंभीरता से सोचना होगा कि क्या हम सब अपने घरों में, समाज में उन्हें वह सम्मान दे पा रहे हैं जिनकी वह हकदार हैं। निश्चय ही जब तक हमारी मांसिकता नहीं बदलेगी तब तक व्यापक बदलाव संभव नहीं है।
मंजर आलम (एम०ए०, बी०एड०) नालंदा खुला विश्वविद्यालय पटना