बिहार में शिक्षा की स्थिति-चिंतनीय और विचारणीय

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प्रसन्ना सिंह राठौर
अतिथि संपादक

बिहार : शिक्षा का अभिप्राय अंधकार से उजाले का मार्ग स्पष्ट करना होता है। यह किसी भी प्रांत की मेरुदंड होती है । शिक्षा के स्तर में वहां के समाज की पहचान छिपी होती है। ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक, पौराणिक रूप से समृद्ध बिहार भी इससे अछूता नहीं है। इतिहास के पन्ने आज भी इस बात की जीवंत गवाही देते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में बिहार कभी का सिरमौर रहा ।

लेकिन आज हालात सर्वथा विपरीत है। आज हमारी पहचान सिरमौर के रूप में नहीं वरन अनेकानेक नकारात्मक बिंदुओं को लेकर है। खासकर परीक्षा में कदाचार बिहार का मानो पर्यायवाची बन हमारे सवर्निम इतिहास पर एक बदनुमा दाग बन चिढ़ाने का काम कर रहा है। इसके कई कारण हैं जिसपर मंथन जरूरी है। इस हालात का जिम्मेदार कोई एक नहीं होकर सभी हैं। चाहे वो शिक्षक – छात्र हों या अभिभावक। वर्तमान दौर में जहां शिक्षकों की गुणवत्ता में ह्रास हुआ है, वहीं छात्र – छात्राओं के आचरण में बड़े स्तर पर कमी अाई है, साथ ही अभिभावकों की भूमिका का स्तर भी गिरावट का शिकार हुआ है और सरकार की लचर व्यवस्था रही सही कसर को पूरा करने को मानो आतुर नजर आ रहा है। वर्तमान व्यवस्था में ऊंची इमारतें तो ढेरो बनी लेकिन छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या स्तरीय नहीं है और जो कुछ हैं भी तो उन्हें इस प्रकार की कई जिम्मेदारियों में बांध दिया गया है की वो हर काम करते हैं सिर्फ पढ़ाते नहीं हैं।

विगत कुछ वर्षों के हालात खासकर दो वर्षों के काफी दुखद हैं गुजरे सत्रों ने आगाज से अंत को पा लिया लेकिन छात्र – छात्राओं को पुस्तके सरकार द्वारा नसीब नहीं हुई, आफत यह रही कि सरकारी विद्यालयों की किताबें बाजारों में उपलब्ध नहीं होती । ऐसे हालातो में बच्चों को बिना पढ़े ही परीक्षा का सामना करना पड़ा। इस प्रकार के दौर में बिहार बोर्ड और सरकारी तंत्र द्वारा कड़ाई से पेश आते हुए सख्ती से कैमरे की निगरानी में परीक्षा लेना अमानवीय प्रतीत होता है। जरूरत कैमरे की नजर में परीक्षा की नहीं बल्कि पढ़ाई की है। आज के अभिभावक पहले के दौर के बनिस्पत ज्यादे खर्च करते हुए अन्य सुविधा मुहैया कराने को सक्षम नजर आते हैं लेकिन अपनी योग्य भूमिका प्रदान नहीं कर पाते।

वहीं विगत दौर में घटी शिक्षक और छात्र – छात्राओं के बीच घटी कई अकल्पनीय घटनाओं ने सर्वोच्च पवित्र रिश्ते को भी दागदार बना कर रख दिया है। ऐसे हालात या दौर में हमारी समृद्ध और परिपक्व समाज की कल्पना किसी बड़ी बेईमानी से कम नहीं। क्योंकि जबतक शिक्षा का माहौल सही नहीं होगा तबतक समाज में योग्य नागरिकों का निर्माण सम्भव नहीं और जबतक योग्य नागरिक नहीं होगें तबतक समाज को सही दिशा सम्भव नहीं।

आज बिहार नालंदा विश्वविद्यालय से निकले किरणों या आर्यभट्ट जैसी प्रतिभा से अपनी पहचान नहीं बना रहा वरन रूबी राय या गणेश जैसों के कदाचार या भ्रष्टाचार के सहारे टॉपर बनने की खबरों से जाना जा रहा है। बिहार में शिक्षा का स्तर जहां सोचनीय है वहीं विचारणीय भी। आज इस पहचान को बदलने की जरूरत है और यह किसी एक के सहारे सम्भव नहीं इसके लिए जहां सरकार को अपनी भूमिका समझनी होगी वहीं शिक्षक,छात्र – छात्राओं सहित अभिभावकों को अपना शत प्रतिशत देना होगा।

अन्यथा शिक्षा के क्षेत्र में अपना गौरवशाली इतिहास रखने वाला बिहार अपने भावी कल को मुंह भी दिखाने योग्य नहीं रह पाएगा।


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