मधेपुरा : सूअरबाड़े में तब्दील गांधी पुस्तकालय, चौसा

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आरिफ आलम
संवाददाता  चौसा, मधेपुरा

चौसा /मधेपुरा /बिहार : प्रखंड मुख्यालय स्थित गांधी पुस्तकालय सूअरबाड़े में तब्दील हो गया है । पुस्तकालय प्रबंधन समिति की लापरवाही के कारण केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना “स्वच्छता अभियान” की धज्जियां उडाते आवारा सूअरों ने पुस्तकालय पर कब्जा कर रखा है । राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के मूलमंत्र “स्वच्छता” को उनके नाम पर संचालित संस्था में बदनाम किया जा रहा है । बावजूद इसके सरकार, प्रशासन, जनप्रतिनिधि और बुद्धिजीवीगण मौन हैं।

कुछ वर्ष पहले तक इसमें कई दुर्लभ पुस्तकें मौजूद थी। पाठकों को पत्र – पत्रिकाएं भी पढ़ने को मिल जाता था और गांधी जयंती भी धूम – धाम से मनाया जाता था ,लेकिन अभी उनकी तस्वीर पर कोई एक माला पहनाने को तैयार नहीं है।
ज्ञातव्य है कि मधेपुरा जिला के कोसी के कछार पर बसे चौसा प्रखंड लोक देवता बाबा विशु और महान स्वतंत्रता सेनानी तनुकलाल यादव की धरती के रूप में पहचानी जाती है। कोसी के अमर सेनानी तनुकलाल बाबू इस क्षेत्र के प्रथम विधायक थे । उनके द्वारा चौसा की जनता को समर्पित कई अमूल्य धरोहर वर्तमान समय में अपनी बदहाली का रोना रोने को मजबूर है। तनुकलाल बाबू के उन्हीं अमूल्य धरोहरों में से एक गांधी पुस्तकालय भी है जो आज अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है।
बात तब की है जब एक तरफ पूरा देश अश्रुपूर्ण अवस्था में बापू के अस्थि कलश को गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम (इलाहाबाद) में प्रवाहित करने में लगा हुआ था,वहीं आजादी के दीवाने तनुकलाल बाबू के नेतृत्व में चौसा की धरती पर 12फरवरी1948 को गांधी पुस्कालय का स्थापना किया गया। चौसा के स्वर्णिम भविष्य को लेकर चिंतित टोलियों द्वारा बापू को सच्ची श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से ही गांधी पुस्तकालय की नींव रखी गई थी ।इस पुस्तकालय के गठन करने में शिव प्र० सिंह, डा० खोखन प्र० सिंह, विष्णुदेव सिंह, रामजी साह, जगदीश प्र० मेहता, डा० जनार्दन मिश्र, गणेश भगत, जमील अहमद, कुलदीप भगत, नबी बख्श, लक्खी राम आदि का अमूल्य योगदान रहा। उद्देश्य था कि ग्रामीण इलाके के गरीब, मेधावी बच्चों एवं पाठकों को सुगमता से पुस्तक उपलब्ध हो सके, जनजागरूकता, स्वरोजगार, सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित किया जा सके।परन्तु वर्तमान परिस्थियाँ तो बिल्कुल ही विपरीत प्रतीत होता है। पुस्तकालय कार्य समिति में नेतृत्व का अभाव तथा झूठी प्रतिस्पर्धा के कारण, इन दिनों गांधी पुस्तकालय चौसा के पाठकों को समुचित पुस्तक की उपलब्धता तो दूर एक दैनिक अखबार तक नसीब नहीं है।

पुस्तकालय के पूर्व सचिव सह अधिवक्ता विनोद आजाद के पहल पर स्थानीय विधायक नरेन्द्र ना० यादव के द्वारा करीब साढ़े पाँच लाख की राशि से दो कमरा का भवन निर्माण तो करवाया गया परंतु आजतक नये भवन का उद्घाटन भी नहीं हो पाया है। लिहाजा गैर राजनीतिक पाठक वर्ग, बुद्धिजीवियों तथा निस्वार्थ लेखकों,पत्रकारों में घोर निराशा की स्थिति बनी हुई है।
सनद रहे कि वर्ष 1995 में चौसा के तत्कालीन उत्साही युवक संजय कुमार सुमन, यहिया सिद्दीकी , विनोद आजाद आदि ने खुद के संसाधन से संचालित “तिलक पुस्तकालय” का विलय “गांधी पुस्तकालय ” कर इसके संचालन की जिम्मेदारी संभाली थी । इस त्रिमूर्ति के बदौलत इस पुस्तकालय का पंजीकरण बिहार सरकार से संभव हो सका था और प्रतिवर्ष हजारों रूपए की पुस्तकें अनुदान के रूप में उपलब्ध भी होने लगी थी, लेकिन आज इस पुस्तकालय को देखने वाला कोई नही है।आज इस पुस्तकालय में आवारा सुअरों ने का कब्जा कर रखा है।
यूं इस पुस्तकालय को अपनी निबंधित जमीन है जिसके परिसर में निर्मित दुकानों से भाड़ा के रूप में करीब 70 हजार रुपये वार्षिक आय हो जाती है। इस राशि से पुस्तकालय का बेहतर रख रखाव और उद्धार संभव है, किंतु प्रशासनिक उदासीनता और पुस्तकालय प्रबंधन समिति की उपेक्षा के कारण यह वर्षों बंद पड़ा है । प्रबंधन समिति की निष्क्रियता और अपारदर्शिता के कारण यह भी पता नहीं चल पा रहा है कि भाड़े की राशि का क्या हो रहा है?
बहरहाल स्थिति यह है कि परिसर के आस-पास गंदगी का अंबार लगा रहता है । लिहाजा सूअरों ने परिसर को सूअरबाड़े में तब्दील कर दिया है । लिहाजा 70 साल पुराना यह अमूल्य धरोहर अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है।


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