किशनगंज/बिहार : उर्दू को अपने दिल और सीने में जगह देने वाले किशनगंज के एस.पी. कुमार आशीष ने फरोग -ए -उर्दू के रास्ते में मील का पत्थर लगाया है। फरोग ए उर्दू के एक सेमिनार में एस.पी. श्री आशीष ने कहा था कि “उर्दू को तो मैं सीने से लगाये रखता हूं और अपने इस अल्फाज पर कायम रहकर उन्होंने महज कुछ ही दिनों में अपने मातहतों के सीनों में भी उर्दू की छापें छोड़ दी है ।
जैसा कि जिले के कई जगहों पर घोषित उर्दू के द्वितीय भाषा होने की कई मिसालें देखने को मिल जाती थी, पर पिछले कुछ दिनों में जिले के हर सरकारी महकमों में “मां और मौसी ” को मुकम्मल जगहें दे दी गई हैं । यह एक सरकारी फरमान की पहल थी, जिसे जिले के डी.एम. और एस.पी. ने अपने गले लगाकर इसे अमल में लाना भी सिखा दिया । वाकई फरोग-ए-उर्दू का सेमिनार और एस.पी. श्री आशीष के उर्दू तलफ्फूज इनके उर्दू से मोहब्बतों का एकरार कर रहे थे । उर्दू की अहमियत, इसकी मीठी जुवान जिसकी ये तारीफें कर रहे थे, उससे तो ऐसा लग रहा था कि मुकामी तहरीक-ए-उर्दू के सारे ख्वाब फरोग-ए-उर्दू के जरिये पूरे हो रहे हों ।
बिहार के वजीर-ए-आला जब जगन्नाथ मिश्रा थे, तब मदरसे अपनी-अपनी शक्लें अख्तियार की, जुवान ऐ उर्दू ने करवटें बदली और रियासते बिहार ने उर्दू को दूसरी जुवान का दर्जा दिया और तब से अब तक अगर किसी ने उर्दू जूवान को हरकत में लाने की अहद इस जिले में की तो वाकई वह वाहिद शख्स किशनगंज के एस.पी. माने जा सकते हैं । जिन्होने उर्दू के अदब व तहजी़ब को अपना मानकर इसकी ताईद की । जिससे जिले के हर महकमें “मां और मौसी” के रिस्तों को बेहतर निभाने की पुरजोर कोशिशों में लगी है ।
कहना लाजमी होगा कि, “खुदा भी आसमां से जब जमीं परदेखता होगा-मेरे महबूब को किसने बनाया सोचता होगा” और वहीं प्रिय प्राणेवरी, हृदेश्वरी, यदि आप हमें आदेश करें तो प्रेम का हम श्रीगणेश करें, और दोनो का मिलन, दूध और जोड़न (दही जमाने के लिए) लिए अतुलनीय और पानी में डंडा मारकर पानी को अलग करने की कोशिशें भर होगी ।