मुरलीगंज/मधेपुरा/बिहार : डॉ. भीमराव अंबेडकर आवासीय विद्यालय में चौथी कक्षा की छात्रा सपना कुमारी (8 वर्ष) की सोमवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में इलाज के दौरान मौत हो गई। इस घटना ने विद्यालय की स्वास्थ्य और पोषण व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। करीब एक माह पहले, 15 जनवरी को सीएचसी मुरलीगंज द्वारा विद्यालय में बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया था। इस परीक्षण में चौकाने वाले आंकड़े सामने आए। 51 छात्राएँ एनीमिया (अल्परक्तता) से पीड़ित पाई गईं। इनमें से कई बच्चियों का हीमोग्लोबिन स्तर 10 ग्राम प्रति डेसीलीटर से भी कम था, जिसे चिकित्सकीय भाषा में ‘सीवियर एनीमिया’ कहा जाता है। वहीं, बड़ी संख्या में बच्चियों का हीमोग्लोबिन 11 ग्राम से कम था, जो ‘मॉडरेट एनीमिया’ की श्रेणी में आता है।
सपना की बिगड़ती सेहत और मौत : स्थानीय सूत्रों के अनुसार, सपना कुमारी की तबीयत पिछले कुछ दिनों से ठीक नहीं थी। उसे विद्यालय प्रशासन द्वारा सीएचसी मुरलीगंज में भर्ती कराया गया। उपचार के दौरान उसकी हालत बिगड़ती चली गई और अंततः सोमवार को उसने दम तोड़ दिया। सपना की मौत के पीछे एनीमिया और कुपोषण को मुख्य कारण माना जा रहा है, हालांकि प्रशासन की ओर से इसकी पुष्टि नहीं की गई है।
विद्यालय की पोषण व्यवस्था पर सवाल : इस घटना के बाद विद्यालय की खान-पान व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। सरकार द्वारा आवासीय विद्यालयों के छात्रों के पोषण के लिए लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन फिर भी इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का एनीमिया से ग्रस्त होना चिंता का विषय है। स्थानीय अभिभावकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि बच्चों को पोषणयुक्त भोजन नहीं मिल रहा है, जिसके कारण उनकी सेहत प्रभावित हो रही है।
न्याय की मांग
बीएसपी जिला अध्यक्ष रविंद्र कुमार न्याय की मांग की वही उन्होंने कहा कि बच्चों के स्वास्थ्य की अनदेखी की जा रही है और विद्यालय प्रशासन पर भी लापरवाही के आरोप लगाए जा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से मांग की है कि बच्चों को पोषणयुक्त आहार उपलब्ध कराने के लिए विशेष योजना बनाई जाए और इसकी नियमित निगरानी की जाए।
सरकार को उठाने होंगे ठोस कदम : इस घटना ने सरकारी आवासीय विद्यालयों की स्वास्थ्य और पोषण संबंधी व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है। यदि समय रहते बच्चों के खान-पान और स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आगे भी ऐसी घटनाएँ हो सकती हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रशासन इस मामले में क्या ठोस कदम उठाता है और बच्चों के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए क्या सुधार किए जाते हैं।
मिथिलेश कुमार की रिपोर्ट