मकर संक्रांति पर प्रसन्ना सिंह राठौर की कलम से ✍️✍️

Spread the news

    अलाव के पास बैठकर आराम, हवा में फैली धुएं की खुशबू, आसमान में बलखाती रंग बिरंगी पतंगे, तिल के मीठे मीठे लड्डू, दही चूड़ा के संग साग …… यही तो है मकर संक्रांति का जादू.
परिवार, परम्परा, पकवानो और नवीकरण के वादे रूपी धागों से बँधा यह प्राचीन त्यौहार सूर्य के एक नई आकाशीय कक्षा में जाने को दर्शाता है. जो सर्दियों की आखिरी ठंड को सलामी देकर बेहतर रौशनी की उम्मीद लिए प्रकाशवान दिन के शुभारम्भ को परिलक्षित करता है.
मकर संक्रांति त्यौहार का इतिहास सदियों पुराना है. एक कथा के अनुसार भगीरथ के तप के बाद पृथ्वी पर उतरी गंगा ने ऋषि के शापसे भस्म हुएमहाराज सगर के साठ हजार पुत्रों को तारने के बाद कपिल मुनि के आश्रम से होते हुएइसी तिथि को सागर में प्रवेश किया था.
वैज्ञानिक दृष्टि से यह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है जो सर्दियों के अंत और लम्बे दिनों की शुरुआत का द्योतक है. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को अगर तलाशें तो विशेषतया क़ृषि समुदायो में इस खगोलिय घटना का बहुत महत्व था जो भरपूर फ़सल का वादा करती थी. भारत में यह खगोलीय घटना से कहीं अधिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व से ओत प्रोत है. मकर संक्रांति हमें हमारी संस्कृतियों की विविधता की याद दिलाती है जो सामूहिक रूप से पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओ में निहित भारत को अद्वितीय बनाती है..
प्रत्येक राज्य मकर संक्रांति को अनोखे रीति रिवाजों से मनाती है यथा पंजाब*में यह *लोहड़ी के रूप में प्रचलित है जहाँ रात में अलाव जलाकर सारे लोग इकटठे होते हैं, गीत गाते हैं और गुड़ तिल एक दूसरे में बाँटते हैं. तमिलनाडु में यह फ़सल उत्सव पोंगल के रूप में मनाया जाता है जो चार दिवसीय उत्सव होता है. जहाँ नए कटे चचावल से व्यंजन तैयार किया जाता है. असम में इसे बिहू के नाम से मनाया जाता है जिसमें ताजी कटी हुई फ़सल से व्यंजन तैयार किया जाता है. पीठा लारू वगैरह बनाकर त्यौहार को अलग स्वाद दिया जाता है.महाराष्ट्र में गुड़ी पावड़ा के रूप में मनाया जाता है. तिल गुल घ्या, गोड गोड बोला पारम्परिक राग के साथ तिल गुड़ दिया जाता है. बिहार में यह तिला संक्रांत या खिचड़ी के नाम से प्रसिद्ध है. यहाँ दही चूड़ा, गुड़,साग, सब्जी, कच्ची हरी मिर्च के साथ तिलकुट खाने की परंपरा है. तिले तिल बहबअ पारम्परिक राग के साथ अपने से छोटे को तिल गुड़ दिया जाता है. साथ में खिचड़ी बनाने की भी परम्परा है.

गुजरात में पतंगबाजी की मनमोहक छटा आसमान को कैनवास में बदल देती है. आध्यात्म से जुड़े लोग पवित्र नदियों मे डुबकी लगाकर अपने पाप धुलते है. मध्यकालीन मुग़लकाल के दौरान शुरू की गईपतंग उडाने की परम्परा नकारात्मकता को दूर कर आशा और सकारात्मक ऊर्जा से भरा वतावरण बनाती है. मकर संक्रांति क़ृषि और खगोलिय चक्रो को दर्शाते हुए पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक प्रार्थओ के लचीलेपन को दर्शाता है जो अतीत को वर्तमान से जोड़ता है.

Sark International School
प्रसन्ना सिंह राठौर
अतिथि संपादक

Spread the news