छातापुर/सुपौल/बिहार : छातापुर मुख्यालय बाजार स्थित महर्षिमेहिं योगाश्रम सह सत्संग स्थल परिसर में बुधवार को व्याहूत कलवार समाज के कुल देवता बलभद्र भगवान का पुजनोत्सव उमंग व उत्साह के माहौल मे मनाया गया। इस पावन अवसर पर उनकी प्रतिमा स्थापित कर विधि विधान पूर्वक पुजन किया गया। पुजन पश्चात पुष्पांजलि व आरती की गई जिसमे सैकडों स्वजातीय सामिल हुए। तत्पश्चात मंत्र्योचारण के बीच पांच जनों के द्वारा बलभद्र भगवान को विविध व्ययंजनों का महाभोग लगाया गया। व्याहूत कलवार समास सह बलभद्र पुजा समिति छातापुर के अध्यक्ष गौरीशंकर भगत के नेतृत्व मे कमेटी के सदस्य व यूवा पुरे तत्परता के साथ आयोजन को सफल बनाने में जूटे हुए थे। पुजनोत्सव में प्रखंड क्षेत्र के सैकड़ो स्वजातीय लोग सामिल हुए। वहीं भीमपुर, ठूंठी, जीवछपुर, भागवतपुर, महद्दीपुर, रामपुर, कैनजारा, ग्वालपाडा, मोहनपुर सहित आसपास के प्रखंड के लोगों ने भी हिस्सा लिया। जिसमे खासकर बच्चों और महिलाओं के बीच खासा उत्साह दिख रहा था। आयोजन के मौके पर भोज भंडारा का भी आयोजन किया गया जिसमे सैकड़ो लोगों ने महा प्रसाद ग्रहण किया।
इस मौके पर सुकदेव भगत, राजकुमार भगत, उपेंद्र भगत, अशोक भगत, अध्यक्ष गौरीशंकर भगत सहित कई वरिष्ठ स्वजातीय ने कहा कि यह समाज सदियों से बलभद्र भगवान को कुलदेवता के रूप में पुजते आये हैं, साथ ही बलभद्र भगवान के महत्व व महिमा के संदर्भ में लोगों को बताया गया। वहीं व्याहूत कलवार समाज की एकजुटता तथा शैक्षणिक व आर्थिक उन्नति को लेकर भी अपने विचार व्यक्त किये। पुजनोत्सव को सफल बनाने मे प्रदीप कुमार भगत, अरविंद भगत, संजय भगत, उपाध्यक्ष जयकुमार भगत, भोगानंद राजा, रामटहल भगत, गुड्डू भगत सहित यूवाओं का सराहनीय योगदान रहा। मौके पर अनारचंद भगत, गोपालजी भगत, विंदेश्वरी प्रसाद भगत, पूर्व मुखिया जयकुमार भगत, कमलेश्वरी भगत, प्रमोद भगत, बिनोद कुमार भगत, जगदीश भगत, सुरेश भगत, सुरज चंद्र प्रकाश, संजय भगत, मोहन भगत, बबलु भगत, गुंजन भगत, अजय कुमार मोती, जयप्रकाश भगत, मनीष भगत, मिट्ठू भगत, रवि भगत, छोटू भगत आदि थे।
श्रीकृष्ण जी विष्णु तो बलरामजी शेषावतार थे, दोनों के मातायें अलग अलग पर पिता एक ही थे
बताया जाता है कि जब कंस ने देवकी व वासुदेव के छह पुत्रों को एक एक कर मार डाला तो देवकी के गर्भ मे शेषावतार भगवान बलराम जी पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षित करके नंद बाबा के यहां निवास कर रही रोहिणी के गर्भ मे पहूंचा दिया। जबकि विष्णु अवतार श्री कृष्ण जी देवकी के आठवें पुत्र के रूप में प्रगट हुए। भले ही श्री कृष्ण व बलराम जी कि मातायें अलग अलग थी परंतु पिता वासुदेव ही हैं। बलभद्र भगवान को कई नामों से जाना जाता है। बलराम, दाऊ, बलदाऊ, हलधर, संकर्षण आदि प्रमुख हैं। बलवानों मे श्रेष्ठ रहने के कारण उन्हे बलभद्र कहा जाता है। द्वापर युग मे श्रीकृष्ण विष्णु अवतार तो बलभद्रजी ( बलराम) शेषावतार थे। त्रेता यूग में ठीक इसके उलट हुआ। वह इसलिए कि त्रेता में विष्णु अवतार श्रीराम बडे भाई हुए और लक्ष्मणजी शेषावतार छोटे भाई के रूप में थे। बलराम जी बडे भाई रहने के कारण श्रीकृष्ण जी उन्हें दाऊजी कहकर संबोधित करते थे। बलभद्र जी का विवाह रेवती से हुआ था। इनके नाम से मथूरा मे दाऊजी का प्रसिद्ध मंदिर भी है। वे गदा धारण करते हैं। बलराम जी ने ही भीम व दूर्योधन दोनों को गदा सिखलाई थी। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक विष्णु भगवान के साथ शेषनाग हमेशा ही साये की तरह साथ साथ रहते हैं।