अंधभक्ति में लीन कर मंडल कमीशन से कैसे अलग रखा गया ओबीसी समाज को? भारत की राजनीति को समझना जरूरी है-  डॉ.जवाहर पासवान

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  1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी, जिसमें मोरारजी देसाई कट्टर मनुवादी थे, जिनको लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिऐ नामांकित किया था।

चुनाव में जाते समय जनता पार्टी ने अभिवचन दिया था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वे काका कालेलकर कमीशन लागू करेंगे। जब उनकी सरकार बनी तो OBC का एक प्रतिनिधिमंडल मोरारजी से मिला और काका कालेलकर कमीशन लागू करने के लिऐ मांग की, मगर मोरारजी ने कहा कि कालेलकर कमीशन की रिपोर्ट पुरानी हो चुकी है, इसलिए अब बदली हुई परिस्थिति में नयी रिपोर्ट की आवश्यकता है। यह एक शातिर मनुवादी के द्वारा OBC को ठगने की एक चाल थी।

प्रतिनिधिमडंल इस पर सहमत हो गया और B.P. Mandal जो बिहार के यादव थे, उनकी अध्यक्षता मेँ मंडल कमीशन बनाया गया। बी पी मंडल और उनके कमीशन ने पूरे देश में घूम-घूमकर 3743 जातियोँ को OBC के तौर पर पहचान किया जो 1931 की जाति आधारित जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 52% था। मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट मोरारजी सरकार को सौपते ही, पूरे देश में बवाल खड़ा हो गया। जनसंघ के 98 सांसद के समर्थन से बनी जनता पार्टी की सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो गयी। उधर अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में जनसंघ के सांसदों ने दबाव बनाया कि अगर मंडल कमीशन लागू करने की कोशिश की गयी तो वे सरकार गिरा देंगे। दूसरी तरफ OBC के नेताओँ ने दबाव बनाया । फलस्वरूप अटल बिहारी वाजपेयी ने मोरारजी की सहमति से जनता पार्टी की सरकार गिरा दी।

उसी दौरान भारत की राजनीति में  एक Silent revolution की भूमिका तैयार हो रही थी जिसका नेतृत्व आधुनिक भारत के महानतम् राजनीतिज्ञ कांशीराम जी कर रहे थे। कांशीराम साहब और डी के खापर्डे ने 6 दिसंबर 1978 में अपनी बौद्धिक बैंक बामसेफ की स्थापना की जिसके माध्यम से पूरे देश में OBC को मंडल कमीशन पर जागरण का कार्यक्रम चलाया। कांशीराम जी के जन जागरण अभियान के फलस्वरूप देश के OBC को मालूम पड़ा कि उनकी संख्या देश में 52% मगर शासन- प्रशासन में उनकी संख्या मात्र 2% है। जबकि 15% तथाकथित सवर्ण प्रशासन में  80% है। इस प्रकार सारे आंकड़े मण्डल की रिपोर्ट में थे जिसको जनता के बीच ले जाने का काम कांशीराम जी ने किया।

अब OBC जागृत हो रहा था। उधर अटल बिहारी वाजपेयी ने जनसंघ समाप्त करके BJP बना दी। 1980 के चुनाव में संघ ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया और इंन्दिरा गांधी जो पहले स्वयं भी चुनाव हार गयी थी 370 सीट जीतकर आयी। उसी दौरान गुजरात में आरक्षण के विरोध में प्रचंड आन्दोलन चला, मजे की बात तो यह थी कि इस आन्दोलन में बङी संख्या OBC सहभागी था, क्योँकि ब्राह्मण-बनिया “मीडिया” ने प्रचार किया कि जो आरक्षण SC,ST को पहले से मिल रहा है वह बढ़ने वाला है। गुजरात में अनुसूचित जाति के लोगों के घर जलाये गये। नरेन्द्र मोदी इसी आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता थे। कांशीराम जी अपने मिशन को दिन-दूनी रात-चौगुनी गति से बढ़ा रहे थे।

मनुवादी अपनी रणनीति बनाते, पर उनकी हर रणनीति की काट कांशीराम जी के पास थी। कांशीराम ने वर्ष 1981 में DS4 ( DSSSS) नाम की “आन्दोलन करने वाली विंग” को बनाया। जिसका नारा था ‘ब्राह्मण बनिया ठाकुर छोङ बाकी सब हैं DS4!’ DS4 के माध्यम से ही कांशीराम जी ने एक और प्रसिद्ध नारा दिया “मंडल कमीशन लागु करो वरना सिँहासन खाली करो।’ इस प्रकार के नारो से पूरा भारत गूँजने लगा। 1981 में ही मान्यवर कांशीराम ने हरियाणा का विधानसभा चुनाव लड़ा, 1982 में ही उन्होने जम्मू- कश्मीर का विधान सभा का चुनाव लङा। अब कांशीराम जी की लोकप्रियता अत्यधिक बढ गयी थी ।

 ब्राह्मण-बनिया “मीडिया” ने उनको बदनाम करना शुरू कर दिया। उनकी बढती लोकप्रियता से इंन्दिरा गांधी घबरा गयीं। इंन्दिरा को लगा कि अभी-अभी जेपी के जिन्न से पीछा छूटा  कि अब ये कांशीराम तैयार हो गये। इंन्दिरा गांधी  जानती थी कांशीराम जी का उभार जेपी से कहीँ ज्यादा बड़ा खतरा मनुवादीयों के लिये था। उसने संघ के साथ मिलने की योजना बनाई। अशोक सिंघल की एकता यात्रा जब दिल्ली के सीमा पर पहुँची, तब इंन्दिरा गांधी स्वयं माला लेकर उनका स्वागत करने पहुंची। इस दौरान भारत में एक और बड़ी घटना घटी। भिंडरावाला जो खालिस्तान आंदोलन का नेता था, जिसको कांग्रेस ने अकाल तख्त का विरोध करने के लिए खङा किया था, उसने स्वर्णमंदिर पर कब्जा कर लिया।

RSS और कांग्रेस ने योजना बनाई अब मण्डल कमीशन आन्दोलन को भटकाने के लिऐ हिन्दुस्तान vs खालिस्थान का मामला खङा किया जाय।  इंन्दिरा गांधी आर्मी प्रमुख जनरल सिन्हा को हटा दिया और एक साऊथ के कट्टर मनुवादी को आर्मी प्रमुख बनाया। जनरल सिन्हा ने इस्तीफा दे दिया। आर्मी में भूचाल आ गया। नये आर्मी प्रमुख इंन्दिरा गांधी के कहने पर OPERATION BLUE STAR की योजना बनाई और स्वर्ण मंदिर के अन्दर टैँक घुसा दिया। पूरी आर्मी हिल गयी। पूरे सिक्ख समुदाय ने इसे अपना अपमान समझा और 31 Oct. 1984 को इंन्दिरा गांधी को उनके दो Personal guards बेअन्तसिह और सतवन्त सिँह, जो दोनो अनुसुचित जाति के थे, ने इंन्दिरा गांधी को गोलियों से छलनी कर दिया।

माओ अपनी किताब ‘ON CONTRADICTION’ में लिखते हैं कि शासक वर्ग किसी एक षडयंत्र को छुपाने के लिऐ दुसरा षडयंत्र करता है, पर वह नहीं जानता कि इससे वह अपने स्वयं के लिए कोई और संकट खड़ा कर देता है।’ माओकी यह बात भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में सटीक साबित होती है। मंडल कमीशन को दबाने वाले षडयंत्र का बदला शासक वर्ग ने ‘इंन्दिरा गांधी’ की जान देकर चुकाया।

इंन्दिरा गांधी की हत्या के तुरन्त बाद राजीव गांधी को नया प्रधानमंत्री मनोनीत कर दिया गया। जो आदमी 3 साल पहले पायलाॅट की नोकरी छोड़कर आया था, वो देश का ‘मुगले आजम’ बन गया। इंन्दिरा गांधी की अचानक हत्या से सारे देश में सिक्खों के विरूद्ध माहौल तैयार किया गया। दंगे हुए, अकेले दिल्ली में 3000 सिक्खो का कत्लेआम हुआ जिसमें तत्कालीन मंत्री भी थे। उस दौरान राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिँह का फोन तक प्रधानमंत्री मंत्री राजीव गांधी ने रिसीव नहीं किये। उधर कांशीराम जी अपना अभियान जारी रखे हुऐ थे। उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी BSP की स्थापना की और सारे देश में साईकिल यात्रा निकाली। कांशीराम जी ने एक नया नारा दिया “जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी ऊतनी हिस्सेदारी।

कांशीराम जी मंडल कमीशन का मुद्दा बड़ी जोर शोर से प्रचारित किया, जिससे उत्तर भारत के पिछड़े वर्ग में एक नयी तरह की सामाजिक, राजनीतिक चेतना जागृत हुई। इसी जागृति का परिणाम था कि पिछड़े वर्ग नया नेतृत्व जैसे कर्पुरी ठाकुर, लालु यादव एवं मुलायम सिंह यादव का उभार हुआ। अब कांशीराम शोषित, वंचित, समाज के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे। वही 1984 का चुनाव हुआ पर इस चुनाव में कांशीराम ने सक्रियता नहीं दिखाई । पर राजीव गांधी को सहानुभुति लहर का इतना फायदा हुआ कि राजीव गांधी 413 सांसद चुनवा कर लाये।जो राजीव जी के नाना जवाहर लाल नेहरू नहीं कर सके थे वह उन्होंने कर दिखाया। सरकार बनने के बाद फिर मण्डल का जिन्न जाग गया। OBC के सांसद, संसद में हंगामे शुरू कर दिये । शासक वर्ग फिर नयी व्युह रचना बनाने की सोची।

अब कांशीराम जी के अभियानो के कारण OBC जागृत हो चुका था। अब शासक वर्ग के लिऐ मंडल कमीशन का विरोध करना संभव नहीं था। 2000 साल के इतिहास मेँ शायद मनुवादीयों ने पहली बार कांशीराम जी के सामने असहाय महसूस किया। कोई भी राजनीतिक उदेश्य इन तीन साधनों से प्राप्त किया जा सकता है वह है-

1) शक्ति संगठन की

2) समर्थन जनता का और

3) दांवपेच नेता का

कांशीराम जी के पास तीनो कौशल थे और दांव-पेच के मामले में वे मनुवादीयों से 21थे। अब यह समय था जब कांग्रेस और संघ की सम्पूर्ण राजनीतिक केवल कांशीराम जी पर ही केन्द्रित हो गया। 1984 के चुनावों में बनवारी लाल पुरोहित ने मध्यस्थता कर राजीव गांधी और संघ का समझौता करवाया एवं इस चुनाव में संघ ने राजीव गांधी का समर्थन किया। गुप्त समझौता यह था कि राजीव गांधी राम मंदिर आन्दोलन का समर्थन करेगें और हम मिलकर रामभक्त OBC को मुर्ख बनाते है। राजीव गांधी ने ही बाबरी मस्जिद के ताले खुलवाये, उसके अन्दर राम के बाल्यकाल की मूर्ति भी रखवाईं । अब मनुवादी जानते थे अगर मण्डल कमीशन का विरोध करते है तो “राजनीतिक शक्ति” जायेगी, क्योकि 52% OBC के बल पर ही तो वे बार बार देश के राजा बन जाते थे, और समर्थन करते हैं तो कार्यपालिका में जो उन्होने स्थायी सरकार बना रखी थी वो छिन जाने खा खतरा था।

विरोध करें तो खतरा, समर्थन करें तो खतरा। आखिर करें तो क्या करें? तब कांग्रेस और संघ मिलकर OBC पर विहंगम दृष्टि डाली तो उनको पता चला कि पूरा OBC रामभक्त है। उन्होँने मंडल के आन्दोलन को कमंडल की तरफ मोड़ने का फैसला किया। सारे देश में राम मंदिर अभियान छेड़ दिया। बजरंग दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया जो पिछड़ा था। कल्याण सिंह, रितंभरा, ऊमा भारती, गोविन्दाचार्य आदि वो मुर्ख OBC थे जिनको संघ ने सेनापति बनाया। जिस प्रकार ये लोग हजारो सालो से ये पिछड़ो में विभीषण पैदा करते रहे इस बार भी इन्होंने ऐसा ही किया। वहीँ दूसरी तरफ अनियंत्रित राजीव गांधी ने खुद को अन्तर्राष्ट्रीय नेता बनाने एवं मंडल कमीशन का मुद्दा दबाने के लिऐ प्रभाकरण से समझौता किया तथा प्रभाकरण से वादा किया कि जिस प्रकार उसकी माँ (इंदिरागांधी) ने पाकिस्तान का विभाजन कर देश-दुनिया की राजनीति में अपनी धाक पैदा की वैसे वह भी श्रीलंका का विभाजन करवाकर प्रभाकरण को तमिल राष्ट्र बनवाकर देगा।

वहीं राजीव गांधी की सरकार में वी.पी. सिंह रक्षा मंत्री थे। बोफोर्स रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार राजीव गांधी की सहायता से किया गया जिसको उजागर किया गया। यह राजीव गांधी की साख पर बट्टा था। वीपी सिंह इसको मुद्दा बनाकर अलग जन मोर्चा बनाया। अब असली घमासान था। 1989 के चुनाव की लड़ाई दिलकश हो चली थी। पूरे उत्तर भारत में कांशीराम जी बहुजन समाज के नायक बनकर उभरे। उन्होने 13 जगहों पर चुनाव जीता जबकि 176 जगहों पर वे कांग्रेस का पत्ता साफ करने में  सफल हो गये। राजीव गांधी जो कल तक दिल्ली का मुगल था कांशीराम जी के कारण वह रोड मास्टर बन गया। कांग्रेस 413 से धङाम 196 पर आ गयी। वी पी सिंह के गठबनधन 144 सीटें मिली, जिसके कारण वी पी सिंह ने चुनाव में जाने की घोषणा की और कहा कि यदि उनकी सरकार बनी तो मंडल कमीशन लागू करेंगे।

चन्द्रशेखर व चौधरी देवीलाल के साथ मिलकर सरकार बनाने की योजना वी पी सिंह द्वारा बनायी गयी। चौधरी देवीलाल प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार थे पर योजना इस प्रकार से बनायी गयी थी कि संसदीय दल की बैठक में दल का नेता (प्रधानमंत्री) चुनने की माला चौ. देवीलाल के हाथ में दे दी जाए । चौ. देवीलाल (इस झूठे सम्मान से कि नेता चुनने का हक़ उनको दिया गया) माला वी पी के गले में डाल दिया। इस प्रकार वी पी सिंह नये प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनते ही OBC नेताओं ने मंडल कमीशन लागू करवाने का दबाव डाला। वी पी सिँह ने बहानेबाजी की पर अन्त में निर्णय करने के लिए चौ. देवीलाल की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी।

याद रहे कि मंडल कमीशन के चैयरमैन बी. पी. मंडल यादव थे, मंडल कमीशन की लिस्ट में यादव शामिल था मगर जाटों को शामिल नही थे।

चौधरी देवीलाल ने कहा कि इसमे जाटों को शामिल करो फिर लागू करो मगर ठाकुर वी पी सिँह इनकार कर दिया। चौधरी देवीलाल नाराज होकर कांशीराम जी के पास गये और पूरी कहानी सुनाकर बोले मुझे आपका साथ चाहिये। कांशीराम जी बोले कि ‘ताऊ तुझे जनता ने “Leader” बनाया मगर ठाकुर ने  “Ladder” (सीढी) बनाया। तेरे साथ अत्याचार हुआ और दुनिया में जिसके साथ अत्याचार होता है कांशीराम उसका साथ देता है।’ कांशीराम जी और देवीलाल ने वी पी सिंह के विरोध में एक विशाल रैली करने वाले थे। उसी दौरान शरद यादव,लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान ने वी पी सिंह से मुलाकात की। उन्होंने वी पी से कहा कि हमारे नेता आप नहीं बल्कि चौधरी देवीलाल है। अगर आप मंडल कमीशन लागू कर दे तो हम आपके साथ रहेंगे अन्यथा हम भी देवीलाल और कांशीराम का साथ देंगे।

ठाकुर वी पी सिँह की कुर्सी संकट से घिर गयी। कुर्सी बचाने के डर से वी पी सिंह ने मंडल कमीशन लागू करने की घोषणा कर दी। सारे देश में बवाल खड़ा हो गया। Mr. Clean से Mr. Corrupt बन चुके राजीव गांधी ने बिना पानी पिये संसद में 4 घंटे तक मंडल के विरोध में भाषण दिया। जो व्यक्ति 10 मिनिट तक संसद में ठीक से बोल नहीं सकता था, उसने OBC का विरोध अपनी पूरी ऊर्जा से पानी पी-पी कर किया और 4 घंटे तक बोला। वी पी सिंह सरकार गिरा दी गयी। चुनाव घोषणा क्या हुई , और एम नागराज नाम के मनुवादी ने उच्चतम न्यायालय में मंडल कमीशन (आरक्षण) के विरोध में मुकदमा (केश) कर दिया । इधर राजीव गांधी ने जो प्रभाकरण से वादा किया था वो पूरा नहीं कर सके थे, बल्कि UNO के दबाव मे उन्होंने शांति- सेना श्रीलंका भेज दी थी। राजीव गांधी के कहने पर प्रभाकरण के साथी कानाशिवरामन को BOMB बनाने की ट्रेनिँग दी गयी थी। जब प्रभाकरण को लगा कि राजीव गाँधी ने धोखा किया। उसने काना शिवरामन को राजीव गांधी की हत्या कर देने का आदेश दिया और मई 1991 मे राजीव गांधी को मानव बम द्वारा उड़ा दिया गया। एक बार फिर माओ का कथन सत्य सिद्ध हुआ,और मंडल के भूत ने राजीव गांधी की जान ले ली।

राजीव गांधी हत्या का फायदा कांग्रेस को हुआ। कांग्रेस के 271 सांसद चुनकर आये। शिबु सोरेन व एक अन्य को खरीदकर कांग्रेस ने सरकार बनायी। वी पी नरसिंम्हराव दक्षिण के मनुवादी प्रधानमंत्री बने। दूसरी तरफ मंडल कमीशन के विरोध मे Supreme court के 31 आला ब्राह्मण वकील सुप्रीम कोर्ट पहुँच गये। लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे, पटना से दिल्ली आये। सारे ब्राह्मण-बनिया वकीलों से मिले। कोई भी वकील पैसा लेकर भी मंडल कमीशन के समर्थन में लड़ने के लिये तैयार नहीं था। लालू यादव ने रामजेठमलानी से निवेदन किया मगर जेठमलानी Criminal Lawyer थे जबकि यह संविधान का मामला था, फिर भी रामजेठमलानी ने यह केस लड़ा। मगर SUPREME COURT ने 4 बड़े फैसले OBC के खिलाफ दिये।

  1. केवल 1800 जातियों को OBC माना।

  2. 52% OBC को 52% देने की बजाय, संविधान के विरोध में जाकर 27% ही आरक्षण होगा।

  3. OBC को आरक्षण होगा पर प्रमोशन में आरक्षण नहीं होगा।

  4. क्रीमीलेयर होगा अर्थात् जिस OBC का INCOME 1 लाख होगा उसे आरक्षण नहीं मिलेगा।

इसका एक आशय यह था कि जिस OBC का लड़का महाविद्यालय में पढ़ रहा है उसे आरक्षण नहीं मिलेगा बल्कि जो OBC गांव में गाय भैंस चरा रहा है उसे आरक्षण मिलेगा। यह तो वही बात हो गई कि दांत वाले से चना छीन लिया और बिना दांत वाले को चना देने कि बात करता है ताकि किसी को आरक्षण का लाभ न मिले।

ये चार बड़े फैसले सुप्रीम कोर्ट के सेठ जी एवं भट्टजी ने OBC के विरोध में दिये। दुनिया की हर COURT में न्याय मिलता है जबकि भारत की SUPREME COURT ने 52% OBC के हक और अधिकारों के विरोध का फैसला दिया। भारत के शासक वर्ग अपने हित के लिऐ सुप्रीम कोर्ट जैसी महान् न्यायिक संस्था का दुरूपयोग किया। मंडल को रोकने के लिऐ कई हथकंडे अपनाऐ हुऐ थे जिसमें राम मंदिर आन्दोलन बहुत बड़ा हथकंडा था। उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने मजबूरी में कल्याण सिंह लोधी जाति थे उनको मुख्यमंत्री बनाया।

विशेष ध्यान:-

आपको बताता चलूं की कांशीराम जी के उदय के पश्चात् ब्राह्मणोँ ने लगभग हर राज्य में OBC मुख्यमंत्री बनाना शुरू किया, ताकि OBC का जुड़ाव कांशीराम जी के साथ न हो। इसी वजह से पिछड़े वर्ग के लोधी समाज को मुख्यमंत्री बनाया गया। आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली। नरेन्द्र मोदी आडवाणी के हनुमान बने। याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने मंडल विरोधी निर्णय 16 नवम्बर 1992 को दिया और शासक वर्ग ने 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गयी। बाबरी मस्जिद गिराने में कांग्रेस ने बीजेपी का पूरा साथ दिया। इस प्रकार सुप्रिम कोर्ट के निर्णय के बारे में OBC जागृत न हो सके, इसीलिए बाबरी मस्जिद गिराई गयी।

शासक वर्ग ने तीर मुसलमानों पर चलाया पर निशाना OBC थे। जब भी उन पर संकट आता है वे हिन्दु और मुसलमान का मामला खड़ा करते हैं। बाबरी मस्जिद गिराने के बाद कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त कर दी गयी। दूसरी तरफ कांशीराम जी UP के गांव गांव जाकर षडयंत्र का पर्दाफाश कर रहे थे। उनका मुलायम सिंह से समझौता हुआ। विधानसभा चुनाव हुए कांशीराम जी की 67 सीट एवं मुलायम सिँह को 120 सीटें मिली। बसपा के सहयोग से मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने।

UP के OBC और SC के लोगों ने मिलकर नारा लगाया “मिले मुलायम कांशीराम हवा में उड़ गये जय श्री राम।”

शासक जाति को खासकर ब्राह्मणवादी सत्ता को इस गठबन्धन से और ज्यादा डर लगने लगा। इंडिया टुडे ने कांशीराम भारत के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं ऐसा ब्राह्मणोँ को सतर्क करने वाला लेख लिखा। इसके बाद शासक वर्ग अपनी राजनीतिक रणनीति में बदलाव किया। लगभग हर राज्य का मुख्यमंत्री ऊन्होनेँ शूद्र(OBC) को बनाना शुरू कर दिये। साथ ही उन्होने दलीय अनुशासन को कठोरता से लागू किया ताकि निर्णय करते वक्त वे स्वतंत्र रहें। 1996 के चुनावों में  कांग्रेस फिर हार गयी और दो तीन अल्पमत वाली सरकारें बनी। यह गठबन्धन की सरकारें थी। इन सरकारों में सबसे महत्वपुर्ण सरकार H.D. देवेगौङा (OBC) की सरकार थी जिनके कैबिनेट में एक भी ब्राह्मण मंत्री नहीं था।

आजाद भारत के इतिहास मे पहली बार ऐसा हुआ जब किसी प्रधानमंत्री के केबिनेट मे एक भी ब्राह्मण मंत्री नहीं था। इस सरकार ने बहुत ही क्रांतिकारी फैसला लिया। वह फैसला था OBC की गिनती करने का फैसला जो मंडल की दूसरी योजना थी, क्योँकि 1931 के आंकङे बहुत पुराने हो चुके थे। OBC की गिनती अगर होती तो देश मे OBC की सामाजिक, आर्थिक स्थिति क्या है और उसके सारे आंकड़े का पता चल जाता। इतना ही नही 52% ,OBC अपनी संख्या का उपयोग राजनीतिक ऊद्देश्य के लिऐ करता तो आने वाली सारी सरकारें OBC की ही बनती। शासक वर्ग के समर्थन से बनी देवेगोङा की सरकार फिर गिरा दी गयी। शासक वर्ग जानता है कि जब तक OBC धार्मिक रूप से जागृत रहेगा तब तक हमारे जाल में फँसता रहेगा जैसे 2014 में फंसा। शायद जाति आधारित गिनती ओबीसी की करने का निर्णय देवेगौङा सरकार ने नहीं किया होता तो शायद उनकी सरकार नहीं गिरायी जाती।

“मनुवादी अपनी सत्ता बचाने के लिये हरसंभव प्रयत्न में लगे रहे। वे जानते थे कि अगर यही हालात बने रहे तो मनुवादीयों की राजनीतिक सत्ता छीन ली जायेगी”। जो लोग सोनिया को कांग्रेस का नेता नहीं बनाना चाहते थे वे भी अब सोनिया को स्वीकार करने लगे। कांग्रेस वर्किग कमेटी में जब शरद पवार ने सोनिया के विदेशी होने का मुद्दा उठाया तो आर.के. धवन नामक ब्राह्मण ने थप्पड़ मारा था । पी ऐ संगमा, शरद पवार, राजेश पायलट, सीताराम केसरी, सबको ठिकाने लगा दिया। शासक वर्ग ने गठबन्धन की राजनीति स्वीकार ली।

उधर अटल बिहारी वाजपेयी, कश्मीर पर गीत गाते गाते 1999 में फिर प्रधानमंत्री हुऐ। अगर कारगिल युद्ध नहीं हुआ होता तो अटल फिर शायद चुनकर नहीं आते। “सरकार बनाते ही अटल बिहारी ने संविधान समीक्षा आयोग बनाने का निर्णय लिया”। अरूण शौरी ने बाबासाहब अम्बेडकर को अपमानित करने वाली किताब ‘Worship of false gods’ लिखी। इसके विरोध में सभी संगठनो ने विरोध किया। विशेषकर बामसेफ के नेतृत्व में 1000 कार्यक्रम सारे देश में आयोजित किये गये। अटल सरकार ने अपना फैसला वापस (पीछे) ले लिया। ये भी नया हथकंडा था वास्तविक मुद्दो को दबाने का। फिर 2011 में जनगणना होनी थी। मगर OBC की जनगणना नहीं करने का फैसला किया गया। जिसपर कोई बड़ा आन्दोलन नहीं हुआ। इसलिए “भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में संख्याबल के हिसाब से शासक बनने वाला ओबीसी अपना नुकसान तो कर ही रहा है साथ ही साथ अपने दलित भाइयो का भी नुकसान हो रहा है” l

 पुनः 2014 में साजिश के तहत तथाकथित OBC को संघ और BJP ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया क्योंकि 2009 में मनुवादी आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर देख चुका था। देश की अवाम नकार दिया था। इसलिए संध अपने मुखोटा मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में सफलत रहा। इसका मूल कारण यह था कि स्वतंत्र भारत में पहली वार कोई OBC घोषित प्रधानमंत्री पद के नाम पर चुनाव हुआ  और साड़ा बहुजन दीवाना हो गया और मोदी को प्रधानमंत्री बना दिया। तब संघ बहुत ही शातिराना ढ़ंग से बहुजन के सारे संवेधानिक अधिकार को धीरे-धीरे समाप्त करते रहे। फिर 2019 के चुनाव में भी संघ पुरानी तरकीब का फायदा उठाने में सफल रहे और तथाकथित OBC प्रधानमंत्री के माध्यम से OBC,SC & ST के सारे बचे अधिकार को समाप्त कर रहे हैं और देश के बहुजन मूक बधीर बने हुए हैं। क्योंकि बहुजन को जो धर्मांधता की घूंट पिलाई गई है उसका नशा फटता ही नहीं है। सच्चाई को और अपनो पर हो रही गहरी साज़िश को ना समझना OBC, और उनके भाइयों SC,ST,अनूसूचित जाति और जनजाति को देश का शासक  बनने से रोक रहा है।

अब फैसला OBC, को करना है, कि उसे अपनों के साथ रहना है या गैरों के साथ रहकर उनका हुक्का भरने का काम करना है। अब समय आ गया है  OBC, अपना कर्त्तव्य समझे, जिससे उनकी आंख खुल सके, कि हम कहां गलती कर रहे हैं। धन्यवाद।

डॉ. जवाहर पासवान

एसोसिएट प्रोफेसर सह विभागाध्यक्ष स्नातकोत्तर

,राजनीति विज्ञान विभाग, टी.पी.कालेज मधेपुरा, बिहार सह

सीनेट एवं सिंडीकेट सदस्य भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय लालूनगर मधेपुरा बिहार ।


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