विदेशी नीतियाँ से निपटने की पराधीन भारत (1947 के पूर्व) के समय की नीतियाँ

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सोमवार रात (15 – 16 जून) गलवान घाटी, लद्दाख (भारत) के सैनिकों पर अक्साई, चीन के सैनिकों के द्वारा हमला हुआ। हालांकि भारत और चीन के बीच इस तरह के गंभीर तनाव/वारदात करीब चार दशक के उपरांत हुआ है। इस हमलें में बीस भारतीय सैनिक शहीद हो गए, जो निःसंदेह हमारे लिए दुःखद है।

    हम आए दिनों पाक की हरकत को देखकर केवल उनकी आलोचनाओं में बयानबाजी करते रहें। परिस्थिति ऐसी हो चली है कि जो राष्ट्र हमारे हिमायती हुआ करते थे वो भी अब हमें आंख दिखाने को उतारू हो गए हैं। भारत में आए दिनों महीनों तक विभिन्न प्रकार के राष्ट्रीय समस्याओं को लेकर ट्विटर हेंड चलते रहते हैं। लेकिन परिणाम, जो होने को होता है, वही होता है। अर्थात राष्ट्रीय समस्याओं में सोशल अभियान से जरा भी फर्क नहीं पड़ता।

    इससे इनकार नहीं कि आज कई विकसित, सशक्त, समर्थपूर्ण देश भारत के पक्ष में है, जो भारत पर आए सभी मुसीबतों में साथ खड़े रहते हैं। लेकिन आज भारत को सभी राष्ट्रों को साथ लेकर अग्रणी राष्ट्र के रूप में उभरना है, जिसके लिए जरूरी है वर्षों से अच्छे संबंध रहे आपसी राष्ट्रों को अपने पाले में बनाएँ रखें।

    अपितु इसका यह अर्थ नहीं की हम किसी समझौता के बंधन में जकड़ कर किसी राष्ट्र की बर्बरता का माकूल जबाब ना दें, क्योंकि जो राष्ट्र हमारा गला घोटें उससे किसी भी तरह की समझौते और आगे किसी तरह की अपेक्षा अपनी मूर्खता सिद्ध करने से कम नहीं।

  हाल के महीनों में जहाँ नेपाल अपनी सीमा भारतीय सीमा के अंदर बता कर नक्शे जारी कर दिए तो वही चीन की नापाक हरकत भी सामने आ गई।पा क की हरकत से तो हम पहले ही वाकिफ थे।

  हालांकि चीन की इस निंदनीय कृत्य के बाद भारतीय सोशल मीडिया यूजर के द्वारा कई दिनों से चीनी सामानों के बहिष्कार का अभियान चलाया जा रहा है।

…और यह कोई पहली बार नहीं है, जब भारतीयों द्वारा अपने राष्ट्रहित के लिए किसी विदेशी चीज का बहिष्कार या विरोध किया गया हो।  इससे पूर्व भी पाक को पानी देने का विरोध, चीन को क्लोरोक्वीन दवाई देने, चीनी एप्प, स्टेचू बनाने में चीनी सामान लेने इत्यादि का विरोध हो चुका है।

   पराधीन भारत अर्थात 1947 से पूर्व भी भारतीय जन द्वारा विदेशी वस्तु का विरोध किया गया था।  सत्य, अहिंसा के पुजारी रहे गांधी जी और अन्य महापुरूषों (तिलक, गोखले जैसे महान विभूतियों) के द्वारा भी विदेशी वस्तुओं की होलिका जलाई गई थी। इन सबों में अग्रणी रहे आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जिन्होंने ना केवल स्वदेशी वस्तु बल्कि स्वभाषा, स्वधर्म और एक स्व-आदर्श राज्य की भावना व्यक्त की, जो जीवनभर इसके लिए सजग और कर्तव्यनिष्ठ बने रहें। इन्हीं की भावना को गाँधी जी ने आगे बढाया और खादी वस्त्र का उपयोग कर विदेशी वस्त्रों की होलिका जलाई।

  लेकिन आधुनिकता की आढ़ में आज भारतीय लोग विदेशी भाषा, वस्तु, असभ्य संस्कृति की दलदल में पुनः फंस चुके है। हालांकि उस दौर और इस दौर में अंतर है क्योंकि आज भारत सबसे बड़े लोकतंत्र वाला राष्ट्र है और उस समय एक पराधीन राष्ट्र था।  तथापि उस समय बिना जनजागृति के विदेशी नीतियों से पार पाया ना जा सकता था।

 …तो क्या हम आज भी पराधीन ही हैं जो जन – जागृति अर्थात जन-बहिष्कार के द्वारा चीन और अन्य आतंक, आलोच्य राष्ट्र को सबक सिखाने की मूर्खता में लगे हैं। क्या लोकतंत्र के सबसे बड़े राष्ट्र को राष्ट्रहित में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सार्थकता सिद्ध करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की दरकार नहीं ??

मनकेश्वर महाराज “भट्ट”

(हिन्दी लेखक)

रामपुर डेहरू, मधेपुरा, बिहार


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