बिहार : जलमग्न पटना से आ रही खबरें हमें चिंता में डूबो देती है। छात्र बता रहे हैं कि पूरा पटना पानी पानी है पर पीने को साफ पानी नहीं है । खाना बनाने के लिए पानी चाहिए पर क्या करें बिस्किट चूड़ा आदि से पेट को तसल्ली दे रहे हैं। सरकार पर डिजिटिलाइजेशन का भूत इतना सर चढ़कर बोल रहा है कि सबकुछ उसी के भरोसे किया जा रहा है पर उस जिद्दी सरकार को कौन समझाए कि बिजली गुल हुई तो सारी होशियारी गुम हो जाएगी। सामान खरीदने के लिए पैसा चाहिए लेकिन एटीएम बंद है। मोबाइल बैंकिंग काम नहीं कर रहा क्योंकि मोबाइल स्वीच आफ हो गया है। कुछ लोगों के मोबाइल का बैलेंस भी खत्म हो गया है। ऐसे में करें तो क्या करें बच्चे बता रहे हैं कि हाथ में सौ पचास नगद है पर उसे कल के लिए बचाकर रख रहे हैं। मम्मी से मुश्किल से बात हुई तो बोले कि पापा पैसा भेज दिए हैं उसी भरोसे दुकान वाले अंकल से सामान उधार ले रहे हैं।” सड़कों पर नाव चली ” वाली पहेली बुझते थे पर आज हकीकत में देख रहे हैं। दिल चाहता है कि घर चले जाएँ पर ट्रेन बाधित है। मीठापुर पहूँचने में भी परेशानी है संभवतः बस परिचालन भी ठप्प हो। समय पर होनी वाली परीक्षाएँ बाधित हैं । परीक्षाओं की तिथियों में बदलाव समय की जरूरत है। अस्पताल में मरीजों के बेड के नीचे कीचड़ भरे जल लबालब हैं अस्पताल प्रशासन और डॉक्टर्स इंफेक्शन का नाम तो भूल ही गए होंगे। आपदा प्रबंधन के अधिकारियों और वालिंटियर्स अपनी सुख चैन त्याग कर मानवता की सेवा में तत्पर होंगे।
स्मार्ट सिटी का दावा करने वाली केंद्र सरकार और सुशासन बाबु की बिहार सरकार क्या कर रही है इसका मुझे तो पता नहीं पर हाँ सरकार की नाकामी पर कोई पोस्ट देख कर तिलमिलाने वाले भय्या (पार्टी के फैन/अंधभक्त) आज चुपचाप दुबके पड़े हैं क्योंकि जब विकट परिस्थिति आती है तो मुँह देखकर नहीं आती और उस समय सबको मिलकर ही झेलना पड़ता है।
हमें यह खुब अच्छी तरह समझनी चाहिए कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव नहीं करती और प्रकृति के आगे इंसान बौना हो जाता है।विपत्तियों से घबराने के बजाय डटकर मुकाबला करने का साहस होना जरूरी है परंतु जान बूझकर विपत्तियों को मोल लेना भी उचित नहीं है। हम सबने प्रकृति के साथ भी खिलवाड़ किया है। आधुनिकता की बेपनाह चाह ने हमारे जीवनशैली में बदलाव तो ला दिया पर जब प्रकृति ने अपने रुप दिखाने शुरू किए तो फिर हम उनके सामने नतमस्तक हैं।