मधेपुरा : दिनकर के जीवन-दृष्टि को अपनाने की जरूरत-कुलपति

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अमित कुमार अंशु
उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर एक संपूर्ण कवि एवं लेखक थे। उन्होंनेे जीवन एवं जगत के सभी आयामों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। समाज, धर्म, सभ्यता, संस्कृति एवं राजनीति सहित सभी क्षेत्रों की समस्याओं पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए हैं।

 यह बात बीएनएमयू कुलपति प्रो डा अवध किशोर राय ने कही। वे बुधवार को विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर के हिंदी विभाग के तत्वावधान में विज्ञान संकाय भवन में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे। संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय विद्वत परिषद् की बैठक में लिए गए निर्णय के आलोक में किया गया था और इसका विषय ‘राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर’ था।

दिनकर के जीवन-दृष्टि को अपनाने की जरूरत : कुलपति ने कहा कि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि एवं निबन्धकार थे। उनका  जन्म 23 सितंबर, 1908 को सिमरिया, बेगूसराय में हुआ था। वे तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के कुलपति और राज्य सभा के सदस्य भी रहे थे।

कुलपति ने कहा कि दिनकर जनता से संवाद करते थे। उन्होंने समाज के उपेक्षित, पीड़ित एवं वंचित वर्ग को आवाज दीं। उनके साहित्य से हमें रौशनी मिलती है. हमें उनकी जीवन-दृष्टि को अपनाने की जरूरत है। प्रति कुलपति प्रो डा फारूक अली ने कहा कि दिनकर जनपक्षधर कवि थे। उन्होंने बताया है कि तटस्थता अपराध है. उन्होंने साफ-साफ कहा है, “समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ है, समय लिखेगा, उसका भी अपराध. प्रति कुलपति ने कहा कि दिनकर ने स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों को अपनी रचनाओं में स्वर दिया। इन मूल्यों के लिए वे स्वतंत्रता के बाद भी संघर्ष करते रहे।

आंदोलन के गर्भ से दिनकर-साहित्य हुआ पैदा : जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के डा देवशंकर नवीन ने कहा कि दिनकर-साहित्य राष्ट्रीय रूपक है। इसे आज के सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश में राजनीति की तीन धाराएं सक्रिय हैं। इनमें से एक दिनकर को जानता नहीं है, दूसरा उन्हें  मानता नहीं है और तीसरा उन्हें पहचानता नहीं है।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के डा चंद्रभानु सिंह ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन भारतीय अस्मिता की तलाश है। इसी आंदोलन के गर्भ से दिनकर-साहित्य पैदा हुआ है। इनका पूरा साहित्य राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत है। उनकी राष्ट्रीयता में ओज एवं संघर्ष है। उन्होंने कहा कि भारतीय सभ्यता-संस्कृति सामासिक है. दिनकर-साहित्य इसी भारतीय सामासिकता की तलाश है।

दिनकर के साहित्य में वर्तमान भारत की समस्याओं का है समाधान : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के डा रामचंद्र ठाकुर ने कहा कि दिनकर जनता से जुड़े लेखक एवं कवि थे। वे बचपन से ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे। उनके साहित्य में वर्तमान भारत की समस्याओं का भी समाधान है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के पूर्व देश में दो समस्याएं थीं। एक, विदेशी शासन द्वारा देश का शोषण और दूसरा, सामंती ताकतों द्वारा आम जनता का शोषण।  दिनकर ने इन दोनों का विरोध किया।

 संगोष्ठी की अध्यक्षता हिंदी विभागाध्यक्ष डा सीताराम शर्मा ने की। संचालन एसोसिएट प्रोफेसर डा सिद्धेश्वर काश्यप ने किया।

 इस अवसर पर पूर्व विभागाध्यक्ष डा इंद्र नारायण यादव, बीएनमुस्टा के महासचिव डा नरेश कुमार, मधेपुरा कालेज मधेपुरा के प्रधानाचार्य डा अशोक कुमार, सिंडीकेट सदस्य डा जवाहर पासवान, पीआरओ डा सुधांशु शेखर, सुभाष झा, डा मनोरंजन प्रसाद, डा रीता सिंह, डा विनय कुमार चौधरी, डा वीर किशोर सिंह, डा वीणा कुमारी, डा शंकर कुमार मिश्र, सोनम सिंह, रश्मि कुमारी, कुमारी संगीता, प्रिंस कुमार, राहुल कुमार, विभिषण कुमार,  जयदीप मोनू, रुपेश कुमार, धीरज, मंटू  कुमार, बिकाश कुमार, हरिओम कुमार, प्रीति, रूपम, चांदनी, अर्चना, मंजू सोरेन, अनुज, जुगनु, निराकार, रागिनी राज आदि उपस्थित थे।


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