कदाचित समस्त जीवधारियों में परिंदा अर्थात पंछी ही ऐसा जीव है जो जात -पात और धर्म – सम्प्रदाय से मुक्त है । परिंदों का गुण किसी इंसान में आ जाए , यह सिर्फ कल्पना ही किया जा सकता है । लेकिन हमारे प्यारे देश भारत में एक ऐसा भी समाज बसता है जिसके कन – कन में परिंदों सी मासूमियत बसती है । उस समाज में न तो जातियों की बेड़ी है, न तो धर्म की दीवार । समाज का बच्चा -बच्चा एक दूसरे की मुहब्बत में सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहता है । ऐसे खूबसूरत और धर्मनिरपेक्ष समाज का पवित्र नाम है #चौसा”।
#चौसा , हमारे महान देश भारत के गौरवशाली प्रदेश बिहार अंतर्गत मधेपुरा जिला में अवस्थित एक सुदूरवर्ती प्रखंड है । यहाँ प्रत्येक वर्ष लगाया जाने वाला दशहरा और मुहर्रम मेला सुविख्यात है । दोनों मेला हिन्दू और मुसलमान को एक सूत्र में पिरोए रखने का बहाना है । यहाँ दशहरा और मुहर्रम के अवसर पर जाति – धर्म और सम्प्रदाय की दीवारें धाराशाई हो जाती हैं । दशकों से यहाँ ताजिया का निर्माण हिन्दू समुदाय के द्वारा किया जाता रहा है, जबकि विजयादशमी के बाद देवी दुर्गा के प्रतिमा विसर्जन में मुस्लिम समुदाय के लोग काँधा देते रहे हैं । चौसा के समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द और मानवों के प्रति मुहब्बत की कशिश इतनी है कि आसपास के क्षेत्रों में साम्प्रदायिक तनाव की खबर सुनकर भी यहाँ के महान और शांतिप्रिय नागरिक विचलित नहीं होते । क्या हिन्दू – क्या मुसलमान सभी एक-दूसरे की रक्षा के लिए खड़े हो जाते हैं ।
#मुहर्रम मेला समिति, चौसा के अध्यक्ष मनौवर आलम बताते हैं कि चौसा की गंगा-यमुनी तहजीब दशकों पुरानी है । यहाँ दशकों तक स्वर्गीय तिवारी पासवान मुहर्रम जुलूस के खलीफा रहे और वे जीवन पर्यंत अपने हाथों से ताजिया का निर्माण करते रहे । चौसा के दलित समुदाय के लोग जब इमाम हुसैन की याद में मरशिया ( शोकगीत) गाते हुए झडनी खेलते हैं तो कलेजा फट पडता है । यहाँ के जंगियों और जुलूसों आधे से अधिक हमारे हिन्दू भाई शामिल रहते हैं । उन्होंने बताया कि तिवारी पासवान के मृत्यु के बाद उनकी परंपरा को उनके पुत्र श्री मदन पासवान आगे बढ़ा रहे हैं । अक्सर श्री मदन पासवान के नेतृत्व में श्री गुलो दास , श्री उपेंद्र शर्मा और सलामत हुसैन ताजिया का निर्माण करते रहे हैं । हालांकि इस वर्ष उनकी सेवा से महरूम रह गए ।
श्री आलम ने यह भी बताया कि प्रत्येक 33 वर्षों के बाद लगातार तीन वर्षों तक दशहरा और मुहर्रम के आयोजन का एक साथ संयोग बनता है । यह अवसर चौसा के लिए महत्वपूर्ण होता है । चौसा के लोग बिना खौफ और डर के इस अवसर की प्रतिक्षा किया करते हैं । इस दौरान यहाँ हिन्दू-मुस्लिम का भेद मिट जाता है और दशहरा और मुहर्रम मेला मानव मेला में तब्दील हो जाता है । उन्होंने बताया कि 33 वर्षों के बाद 2015,2016 और 2017 में स्थानीय जनता उच्च विद्यालय, चौसा के मैदान में दशहरा और मुहर्रम मेला एक साथ शांतिपूर्ण आयोजित किया गया था ।यह आयोजन अद्भुत था।
उक्त बाबत दुर्गा पूजा समिति, चौसा के अध्यक्ष श्री अनिल मुनका , सचिव श्री सूर्य कुमार पटवे और कोषाध्यक्ष श्री पुरूषोत्तम अग्रवाल ने बताया कि हम चौसा के लोग दशहरा और मुहर्रम मेला को धरोहर मानते हैं । हम अपने पूर्वजों द्वारा गढी गई परंपरा को हर पल जीते हैं। उन्होंने बताया कि दशहरा मेला के दौरान हरपल हमारे मुस्लिम भाईयों का सहयोग मिलता रहा है । प्रतिमा विसर्जन के दौरान हम मुस्लिम भाईयों के सर पर #जय_मातादी की पट्टी बांध कर उन्हें तिलक लगाते हैं और वे भी श्रद्धा से प्रतिमा विसर्जन में साथ रहते हैं।
ज्ञातव्य है कि आज तथाकथित कारणों से पूरी दुनिया में जाति और धर्म के नाम पर झगड़े बढे हैं । आज आदमी – आदमी को गाजर – मूली की तरह काट रहा है । सर्वत्र हिंसा, आतंक तथा भय व्याप्त है । ऐसे दौर में
चौसा की उक्त सामाजिक परंपरा सचमुच देश और दुनिया के लिए नजीर है । अगर सद्भाव के समुद्र में गोते लगाना हो तो आईए हमारे #चौसा। आज लगेगा *#मानव_मेला।