मधेपुरा : भारतीय संस्कृति में सबों के बीच समन्वय स्थापित करने की अद्भुत क्षमता- प्रो डा प्रभु नारायण मंडल

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अमित कुमार अंशु
उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : भारतीय संस्कृति में अनेक संस्कृतियां घुल-मिल कर एक हो गई हैं। भारतीय संस्कृति ने अनेक संस्कृतियों को आत्मसात कर लिया है। भारतीय संस्कृति में सबों के बीच समन्वय स्थापित करने की अद्भुत क्षमता है। यही सामासिकता का मूल मंत्र है, जो भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है। जिस तरह भारत की संस्कृति भारत की पहचान है, उसी तरह सामासिकता भारतीय संस्कृति की पहचान है।

 यह बात तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर के दर्शनशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं बिहार दर्शन परिषद् के संरक्षक प्रो डा प्रभु नारायण मंडल ने कही। वे शुक्रवार को भारतीय दार्शनिक दिवस के उपलक्ष्य में बीएनएमयू नार्थ कैम्पस के विज्ञान संकाय सभागार में भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य विषयक व्याख्यान दे रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन बीएनएमयू स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग के तत्वावधान में किया गया था।

भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता की पोषक : उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता की पोषक है। भारत में आज जो कुछ भी है, उसके निर्माण में भारतीय जनता के सभी समूहों का योगदान रहा है। भारतीय संस्कृति का बहुरंगी ताना बाना अहिंसा, सत्य, सदाचार, वसुधैव कुटुंबकम् जैसे उद्दात मूल्यों से बुना है। उन्होंने बताया कि संस्कृति का अर्थ है उत्तम या सुधरी हुई अवस्था है। व्यक्तियों के किसी समूह विशेष की परिष्कृत जीवन-पद्धति को संस्कृति कहते हैं। यह किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है, जो समाज में सोचने-विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने-हंसने, कला-संगीत आदि में परिलक्षित होता है।

गांधी ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नैतिकता को स्थापित करने की कोशिश : इस अवसर पर दूसरा व्याख्यान तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर के दर्शनशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं शिक्षक नेता प्रो डा शंभु प्रसाद सिंह का हुआ। उन्होंने गांधी का नैतिक दर्शन विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि गांधी नैतिकता के प्रतिमूर्ति थे। उनकी कथनी एवं करनी में समानता थी। वे जिस बात को सही मानते थे, उसे अपने जीवन में उतारने का हरसंभव प्रयास करते थे। किसी बात को सही मानने पर उसे जीवन में उतारने की जिद ने ही साधारण से ‘मोहन’ को असाधारण ‘महात्मा’ बना दिया। उन्होंने कहा कि गांधी ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नैतिकता को स्थापित करने की कोशिश की। उन्होंने राजनीति में भी नैतिकता के उच्च प्रतिमान गढ़े। उन्होंने राजनीति को नैतिकता के उच्च आधारों पर खड़ा किया और इसके माध्यम से समाज के अंतिम व्यक्ति के विकास की कामना की। उन्होंने ऐसे भारत का सपना देखा, जिसमें गरीब से गरीब लोगों को भी यह अनुभव हो कि यह देश उनका है और इसके निर्माण में उनकी भागीदारी है।

गांधी को अपनाना दुनिया की मजबूरी : उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हमने नैतिकता से नाता तोड़ लिया है। भौतिक सुख-सुविधाओं की अंधदौर में हम सब कुछ भूल गए हैं. हमारा अस्तित्व दांव पर लग गया है। हमें अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पुनः नैतिकता एवं आध्यात्मिकता को अपने जीवन में उतारना होगा। हमें चाहे-अनचाहे गांधी की शरण में जाना होगा. गांधी को अपनाना और भारतीय संस्कृति की ओर लौटना आज हमारी मजबूरी है। सिंडीकेट सदस्य डा जवाहर पासवान ने कहा कि कहा कि इस कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात है। इसके लिए दर्शनशास्त्र विभाग की जितनी भी तारीफ की जाए, कम है।

धार्मिक एवं सांप्रदायिकता में अंतर है : मुख्य अतिथि के रूप में प्रति कुलपति प्रो डा फारूक अली ने कहा कि सभी धर्मों की मूल शिक्षा एक ही है। सभी धर्म एक ही सत्य तक पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हैं। जिस तरह सभी नदियां अलग-अलग रास्तों से चलकर एक ही समुद्र में मिलती हैं, वैसे ही सभी धर्म अलग-अलग पूजा पद्धति के जरिए एक ही ईश्वर तक पहुंचते हैं। सभी धर्मों का एक ही मकसद है, मानवता की सेवा. सांप्रदायिक की समस्या धर्मों की गलत व्याख्या के कारण पैदा हुई है। प्रति कुलपति ने कहा कि धर्मिकता और सांप्रदायिकता में अंतर है।

 सच्चा धार्मिक व्यक्ति कभी भी सांप्रदायिक नहीं हो सकता है। गांधी एक विशुद्ध धार्मिक व्यक्ति थे, लेकिन वे सांप्रदायिक नहीं थे। वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे. प्रति कुलपति ने कहा कि अपने विचारों एवं मान्यताओं को दूसरों पर थोपना ही सांप्रदायिकता है। जैसे हम अपनी आस्था का सम्मान करते हैं, हमें वैसे ही दूसरों की आस्थाओं एवं विश्वासों का भी सम्मान करना चाहिए। दूसरे लोगों पर अपनी भाषा, विचार, खानपान या संस्कृति थोपना गलत है। प्रति कुलपति ने कहा कि भारत हमेशा से धार्मिक सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभाव का समर्थक रहा है। भारत के लोगों ने हमेशा से विभिन्न मान्यताओं एवं विचारों के बीच समन्वय किया है। विरोधियों के बीच समन्वय और विविधता में एकता ही भारत की सबसे बङी विशेषता है।

भारतीय संस्कृति में है समाधान : इस अवसर पर कुलपति प्रो डा अवध किशोर राय का लिखित अध्यक्षीय अभिभाषण प्रस्तुत किया गया। कुलपति ने कहा कि भारतीय दर्शन एवं संस्कृति में एकत्व की भावना है। यह न केवल सभी मनुष्यों, वरन्  संपूर्ण चराचर जगत को एक मानता है। यही सत्य एवं अहिंसा का रास्ता है. इसी रास्ते पर चलकर देश-दुनिया का कल्याण हो सकता है। भारतीय दर्शन एवं संस्कृति में ही आतंकवाद, पर्यावरण संकट, बेरोजगारी, विषमता, अनैतिकता आदि समस्याओं का समाधान है. कुलपति ने कहा कि भारतीय संस्कृति एक महासमुद्र की तरह है। इसमें कई संस्कृतियां आकर इसमें विलीन हो गईं। दुनिया के कई देशों के लोग भारत में आए और यहीं के होकर रह गये। हमने विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों एवं विचारों के बीच समन्वय स्थापित किया और दुनिया को जीने की नई राह दिखाई। भारत की यह विशेषत विश्व को उसकी अनमोल देन है। आज पूरी दुनिया भारतीय दर्शन एवं संस्कृति की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है। यदि दुनिया को बचाना है, तो हमें भारतीय दर्शन एवं संस्कृति को अपने जीवन में आत्मसात करना ही होगा।

भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से ओतप्रोत : अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवेश दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष सह मनविकी संकायाध्यक्ष प्रो डा ज्ञानंजय द्विवेदी ने किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से ओतप्रोत है। हम सभी चराचर जगत के कल्याण की कामना से कार्य करते हैं। धन्यवाद ज्ञापन बीएनमुस्टा के महासचिव प्रो डा नरेश कुमार ने किया। उन्होंने बताया कि इस आयोजन हेतु मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली द्वारा 20 हजार रुपए अनुदान प्राप्त हुआ है। परिषद् ने वर्ष 2019 में देश के कुल 28 संस्थानों को अनुदान हेतु चयनित किया है। इसमें बिहार से एकमात्र बीएनएमयू का चयन हुआ है. यह हमारे लिए गर्व की बात है। कार्यक्रम के आयोजन सचिव असिस्टेंट प्रोफेसर दर्शनशास्त्र सह जनसंपर्क पदाधिकारी डा सुधांशु शेखर ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया। उन्होंने बताया कि भारतीय दार्शनिक दिवस आदि शंकराचार्य की याद में मनाया जाता है। वे अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक थे. उन्होंने भारतीय धर्म-दर्शन को देश-दुनिया में स्थापित करने में महती भूमिका निभाई थी। आदि शंकराचार्य ने वेद-वेदांतो के ज्ञान को देश-दुनिया में फैलाया। वे यहां महेसी, सहरसा में सुप्रसिद्ध दार्शनिक मंडन मिश्र एवं उनकी पत्नी भारती  के साथ शास्त्रार्थ किया था।

दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की विधिवत शुरूआत : इसके पूर्व अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की विधिवत शुरूआत की। अतिथियों का अंगवस्त्रम् एवं पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया। टीपी काॅलेज के एनसीसी कैडेटों ने गार्ड आॅफ आॅनर दिया। शिक्षाशास्त्र विभाग की छात्र-छात्राओं ने कुलगीत एवं स्वागत गान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में कई विभागाध्यक्ष, शिक्षक, शोधार्थी एवं सैकड़ों की संख्या में विद्यार्थी उपस्थिति थे। खास बात यह कि भीषण गर्मी में भी सौ से अधिक प्रतिभागी लगभग तीन घंटे तक हाॅल के बाहर खड़े होकर वक्ताओं को सुनते रहे. यह अपने-अपने एक अभूतपूर्व दृश्य था। तीन सौ से अधिक प्रतिभागियों को निःशुल्क प्रमाण पत्र वितरित किया गया।

इस अवसर पर सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष डा एचएलएस जौहरी, मैथिली के पूर्व विभागाध्यक्ष डा अमोल राय, संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डा डीएन झा, दर्शनशास्त्र के वरीय शिक्षक डा शिवशंकर कुमार, सीसीडीसी डा भावानंद झा, डा सीपी सिंह, डा बीएन विवेका, डा गणेश प्रसाद, डा विमल सागर, खेल सचिव डा अबुल फजल, डा सुनील कुमार, डा राधाकांत दास, डा अशोक कुमार, डा ललन प्रकाश साहनी, डा पूजा कुमारी, डा विनय कुमार, डा दीपक कुमार राणा, डा गुड्डू कुमार, सीनेटर रंजन यादव, डा रूद्र किंकर, बिमल कुमार, दिलीप कुमार दिल, सारंग तनय, हर्षवर्धन सिंह राठौर, राजकुमार रजक, मो वसीमुद्दीन, राहुल पासवान, डेविड यादव, सोनम सिंह, जयश्री कुमारी, पल्लवी, स्मिता, शिल्पी, अर्चना कुमारी आदि उपस्थित थे। 


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