नालंदा/बिहार: देश में आज भी संप्रदायिक सौहार्द के कई मिसाल कायम है जिसमें नालंदा जिला में भी संप्रदायिक सौहार्द का एक बहुत बड़ा मिसाल देखने को मिल रहा है। जिला के बेन प्रखंड स्थित माड़ी गांव जहां 200 साल की एक पुरानी मस्जिद है जिसकी देखभाल साफ-सफाई हिंदू समाज के लोग करते हैं। बिहार शरीफ के 1981 में हुए सांप्रदायिक दंगे के वजह कर मुस्लिम समाज के लोग इस गांव से पलायन कर गए और यह गांव में कोई भी मुसलमान नहीं है लेकिन इस गांव में एक आलीशान मस्जिद और उसके सामने एक बहुत बड़े सूफी संत के मकबरा आज भी स्थित है मस्जिद की साफ-सफाई और इस मस्जिद में पेन ड्राइव के जरिए आजान दी जाती है ।
सुबह और शाम साफाई क्या जाता है। यह गांव गंगा जमुनी तहजीब की एक बहुत बड़ा उदाहरण पेश कर रहा है। पेन ड्राइव के जरिए आज़ान की जिम्मेवारी संभाल रहे संजय पासवान ने बताया कि इस गांव में मंदिर होने के बावजूद भी लोगों की आस्था इस मस्जिद और मकबरा पर बहुत ही ज्यादा है। मस्जिद के सामने ही हजरत इस्माइल रहमतुल्ला अलेह का मकबरा इस गांव में जो भी शादी ब्याह होता है सबसे पहले इस मकबरा पर ही लोग आकर अपने माथा टेकते और आशीर्वाद लेते हैं। बिहार शरीफ सदरे आलम मेमोरियल स्कूल के निदेशक मोहम्मद खालिद आलम भुट्टो के नाना बदरे आलम ने इस मस्जिद की तामीर 200 साल पूर्व कराई थी। यह अलीशान माड़ी गांव की माजिद अपनी बर्बादी के ऊपर अंशु वहा रहा है।