मधेपुरा : विश्वविद्यालय को मां मानकर इसकी सेवा करें- कुलपति

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अमित कुमार
उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : महामना भूपेन्द्र नारायण मंडल समतामूलक समाज के हिमायती थे। वे गाड़ीवान एवं विद्वान दोनों को एक समान मानते थे। हमारा यह सौभाग्य है कि हमारा विश्वविद्यालय उनके नाम पर स्थापित है।

यह बात बीएनएमयू कुलपति प्रो डा अवध किशोर राय ने कही। वे उच्च शिक्षा के बदलते परिदृश्य एवं चुनौतियांं विषयक राष्ट्रीय सेमिनार में उद्घाटनकर्ता सह अध्यक्ष के रूप में बोल रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन बीएन मंडल विश्वविद्यालय के रजत जयंती समारोह के अंतर्गत विश्वविद्यालय प्रेक्षागृह में किया गया था।

इस अवसर पर कुलपति ने पुनः दुहराया कि रजत जयंती समारोह पूरे वर्ष भर चलेगा। इसके अंतर्गत विभिन्न महाविद्यालयों एवं विभागों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंंगे। प्रत्येक तीन माह पर विशेष आयोजन होगा और फरवरी 2020 में इसका भव्य समापन समारोह आयोजित किया जाएगा।

कोचिंग नहीं हो सकता है महाविद्यालय का विकल्प : कुलपति ने कहा कि जो भी शिक्षक एवं कर्मचारी विश्वविद्यालय में काम कर रहे हैं। वे विश्वविद्यालय को मांं मानकर इसकी सेवा करें।  विश्वविद्यालय को अपना सर्वोत्तम योगदान दें। कुलपति ने कहा कि शिक्षा सबसे बड़ा अस्त्र है। शिक्षा के बिना हम जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते हैं। यह शिक्षा हमें गुरु के माध्यम से ही मिल सकती है। इसलिए सभी छात्र – छात्रा अपने-अपने महाविद्यालयों एवं विभागों की कक्षाओं में आएं। कोचिंग कभी भी काॅलेज या विभाग का विकल्प नहीं हो सकता है।

कुलपति ने कहा कि सीमित संसाधनों के बावजूद वे विश्वविद्यालय के समग्र विकास हेतु प्रयासरत हैं. इसके लिए वे शिक्षक, कर्मचारी, विद्यार्थी एवं अभिभावक सबों को साथ लेकर काम कर रहे हैं।

हम विश्वगुरू थे और आज काफी पीछे हैं : विषय प्रवर्तन करते हुए प्रति कुलपति प्रो डा फारूक अली ने कहा कि हमारी प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था लचर है। इस कमजोर बुनियाद पर बुलंद इमारत नहीं खड़ी की जा सकती है। प्रति कुलपति ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में संसाधनों का समान बटबारा होना चाहिए। जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का सिद्धांत लागू हो। प्रति कुलपति ने कहा कि शिक्षा को मानव संसाधन बनाने से नुकसान हुआ है। कभी हम विश्वगुरू थे और आज काफी पीछे हो गए हैं, देश के श्रेष्ठ सौ विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि संस्थापक कुलपति डा आरके यादव रवि ने कहा कि यह विश्वविद्यालय महामना भूपेन्द्र बाबू के नाम पर है। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व बेमिशाल है। उनका चरित्र व्यक्तिगत, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का आदर्श है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में विकास हुआ है। साक्षरता बढ़ी है और उच्च शिक्षा का भी विकास हुआ है। इस बीच हमारे विश्वविद्यालय की यात्रा शून्य से शिखर तक जारी है। हमारा वर्तमान अतीत से बेहतर है और हम उज्ज्वल भविष्य के प्रति हम आशान्वित हैं। वर्तमान कुलपति के नेतृत्व में विश्वविद्यालय में सकारात्मक माहौल बना है।

यदि चरित्र नहीं हो, तो ज्ञान व्यर्थ : विशिष्ट अतिथि पूर्व प्रति कुलपति डा केके मंडल ने कहा कि आज छात्र-छात्राओं का आकर्षण रोजगारपरक शिक्षा की ओर है। पारंपरिक विषय हाशिए पर चले गए हैं। गांंधी का कहना था कि यदि चरित्र नहीं हो, तो ज्ञान व्यर्थ है। कौशिकी के सचिव डा भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि भारत के तक्षशिला, नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय की दुनिया में ख्याति थी। उस समय यूरोप-अमेरिका में विश्वविद्यालय की कल्पना भी नहीं थी। उन्होंने कहा कि शिक्षक वही बनें, जिनकी इच्छाएंं बहुत कम हों। लेकिन जो शिक्षक कभी विद्यादानी हुआ करते थे, वे आज व्यसनी हो गए हैं।

 इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत सभी अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर किया। पुनः भूपेन्द्र नारायण मंडल के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित की गई। अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम् एवं पुष्प गुच्छ देकर किया गया। रमेश झा महिला महाविद्यालय, सहरसा की छात्राओं ने कुलगीत, सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत प्रस्तुत किया। कुलगीत लेखन हेतु डा रेणु सिंह को विशेष रूप से सम्मानित किया गया।

रजत जयंती समारोह के संयोजक सह बीएनमुस्टा के महासचिव डा नरेश कुमार अतिथियों का स्वागत किया। संचालन डा अबुल फजल ने किया। धन्यवाद ज्ञापन अध्यक्ष छात्र कल्याण डा शिवमुनि यादव ने किया।

इस अवसर पर सिंडीकेट सदस्य द्वय डा परमानंद यादव एवं डा जवाहर पासवान, मानविकी संकायाध्यक्ष डा ज्ञानंजय द्विवेदी, वाणिज्य संकायाध्यक्ष डा अरुण, डा लम्बोदर मिश्र, डा केपी यादव, डा अनिल कान्त मिश्र, डा राजाराम प्रसाद, डा केएस ओझा, डा सीताराम शर्मा, डा रीता सिंह, डा एमआई रहमान, डा मोहित कुमार घोष, डा पीएन सिंह, डा रीता कुमारी, डा शंकर कुमार मिश्र, पीआरओ डा सुधांशु शेखर आदि उपस्थित थे।

स्मारिका का किया गया लोकार्पण : प्रथम सत्र में स्मारिका का लोकार्पण किया गया। स्मारिका में हिंदी एवं अंग्रेजी में लगभग दो दर्जन आलेखों का प्रकाशन किया गया है।  साथ ही महामहिम राज्यपाल सह कुलाधिपति लालजी टंडन, उर्जा मंत्री विजेन्द्र प्रसाद यादव एवं राज्यपाल सह कुलाधिपति के प्रधान सचिव विवेक कुमार सिंह का शुभकामना संदेश भी प्रकाशित हुआ है। इसके अलावा विश्वविद्यालय की विभिन्न गतिविधियों से संबंधित कई रंगीन चित्रों को भी प्रकाशित किया गया है।

अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डा आरकेपी रमण, हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा विनय कुमार चौधरी एवं मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डा एमआई रहमान को संपादक मंडल में स्थान दिया गया है। विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा सिद्धेश्वर काश्यप एवं पीआरओ डा सुधांशु शेखर ने संपादक की जिम्मेदारी निभाई है।

शिक्षा जीवन की जवाहरात है : विमर्श सत्र में लगभग दर्जन भर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए. प्रथम वक्ता जेपी यादव ने कहा की शिक्षा जीवन की जवाहरात है। लेकिन आज हम शिक्षा का मूल्य नहीं समझ पा रहे हैं। उन्होंने उच्च शिक्षा के बदलते परिवेश पर चिंता जतायी। दुसरे वक्ता डा आलोक कुमार ने कहा की पहले शिक्षा सेवा की माध्यम थी, लेकिन आज वह व्यापार बन गई है। तीसरे वक्ता डा सिद्वेश्वर काश्यप ने कहा की शिक्षा निति ने भारतीय जीवन परंपरा को नुकसान पहुचाया है। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोग रंग से तो भारतीय होते हैं, लेकिन वे व्यवहार में अंग्रेज बन जाते हैं। डा एमआई रहमान ने मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने पर जोड़ दिया। उन्होंने कहा की हमें दुनिया की सभी भाषाओ की श्रेष्ठ पुस्तिकाओ का हिंदी में अनुवाद करना चाहिए। सत्र की अध्यक्षता बीएनएमभी काॅलेज के पूर्व प्रधानाचार्य डा श्यामल किशोर यादव ने की. रेपोर्टियर की भूमिका पीआरओ डा सुधांशु शेखर ने निभाई।

छात्र प्रतिनिधियों ने किया हर्ष व्यक्त : बीएन मंडल विश्वविद्यालय के रजत जयंती समारोह को लेकर छात्र प्रतिनिधि ने विश्वविद्यालय प्रशासन के प्रति उत्साह व्यक्त किया। विश्वविद्यालय कौन सी मेंबर दिलीप कुमार दिल ने कहा कि बीएनएमयू में आज 27 साल के बाद रजत जयंती समारोह का आयोजन सफलतापूर्वक मना रहा है। ये काफी खुशि की बात है। बीएनएमयू की स्थापना 1992 में हुई थी। विश्वविद्यालय अपने स्थापना के 27 बसंत देख चुका है. रजत जयंती मना के बीएनएमयू कुलपति प्रो डॉ अवध किशोर राय ने अच्छी पहल की शुरुआत की है।

कुलपति को एनएएसी, प्रीपीएचडी सहित हायर एजुकेशन को बढ़ावा देने पर बल देना होगा। इसके लिए कुलपति, प्रतिकुलपति सहित विश्वविद्यालय परिवार को ढेर सारी शुभकामना एवं बधाई। वहीं एसएफआई विश्वविद्यालय प्रभारी सारंग तनय ने कहा कि बीएनएमयू की स्थापना 1992 को की गई थी। 27 साल के लंबे सफर में बीएनएमयू ने अपने जीवन के काफी उतार-चढ़ाव का दौर देखा है। किसी भी विश्वविद्यालय की सिल्वर जुबली अर्थात रजत जयंती तक पहुंचना काफी यादगार पल होता है और इस खास पल को बीएनएमयू आज सफलतापूर्वक मना रहा है। इसके लिए कुलपति, प्रति कुलपति सहित बीएनएमयू परिवार को बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।


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