मधेपुरा/बिहार : जिला मुख्यालय स्थित टीपी कॉलेज के राजकीय अम्बेडकर कल्याण छात्रावास में शंत शिरोमणि रविदास जयंती का आयोजन किया गया।
मौके पर उपस्थित छात्रावास अधीक्षक सह बीएनएमयू सीनेट एवं सिंडीकेट सदस्य डॉ जवाहर पासवान ने कहा कि डॉ आंबेडकर ने अपनी किताब प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति में लिखा है कि भारत का इतिहास क्रांति और प्रतिक्रांतियों का इतिहास है। यहां निरंतर मनुवाद और दलित-बहुजन परंपरा के बीच संघर्ष चलता रहा है। प्राचीनकाल में बुद्ध ने मनुवाद को चुनौती दी। मध्यकाल में उत्तर भारत में कबीर और रैदास ने मनुवाद को चुनौती दी। रैदास ने जन्म के आधार पर श्रेष्ठता की अवधारणा को पूरी तरह खारिज कर दिया।
रैदास स्वयं भी श्रम करके जीवन-यापन करते थे। वे चर्मकार का काम करते थे और श्रम करके जीने को सबसे बड़ा मूल्य मानते हैं। घर-बार छोड़कर वन जाने या सन्यास लेने को ढोंग-पाखण्ड मानते थे। रैदास ने भी ऊंच-नीच अवधारणा और पैमाने को पूरी तरह उलट दिया। वे कहते हैं कि जन्म के आधार पर कोई नीच नहीं होता है, बल्कि वह व्यक्ति नीच होता है, जिसके हृदय में संवेदना और करुणा नहीं है। उनका मानना है कि व्यक्ति का आदर और सम्मान उसके कर्म के आधार पर करना चाहिए, जन्म के आधार पर कोई पूज्यनीय नहीं होता है।
बुद्ध, कबीर, फुले, आंबेडकर और पेरियार की तरह रैदास भी साफ कहते हैं कि कोई ऊंच या नीच अपने मानवीय कर्मों से होता है, जन्म के आधार पर नहीं। अंबेडकर की तरह रैदास का भी कहना है कि जाति एक ऐसा रोग है, जिसने भारतीयों की मनुष्यता का नाश कर दिया है। जाति इंसान को इंसान नहीं रहने देती, उसे ऊंच-नीच में बांट देती है। एक जाति का आदमी दूसरे जाति के आदमी को अपने ही तरह का इंसान मानने की जगह ऊंच या नीच मानता है। रैदास का कहना है कि जब तक जाति का खात्मा नहीं होता, तब तक लोगों में इंसानियत जन्म नहीं ले सकती।
मौके पर महबूब आलम, दीपक कुमार, मनोज, विकास कुमार पासवान हरिमोहन, मूलचंद, मनीष, नयन रंजन उर्फ हीरा बाबू, बीरबल, चन्दन कुमार सहित अन्य उपस्थित थे।