अलीनगर दरभंगा से मिथिलेश कुमार की रिपोर्ट
अलीनगर/दरभंगा/बिहार : अलीनगर प्रखंड क्षेत्र के जयन्तीपुर दाथ मे न्यु माँ भारती पुजा समिति सरस्वती जन्मोत्सवपर 251 कुवाँरी कन्याओं ने महिनाम घाट कमला नदी मे जल बोझ कर बाबा भुत नाथ मंदिर मे पूजा अर्चना की माँ सरस्वती ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं लोग। जिसको लेकर रविवार को मां सरस्वती की पूजा बड़े धूमधाम से किया जा रहा है।
जगह-जगह पंडाल तैयार कर सरस्वती मां प्रतिमा स्थापित कर मां की शक्ति की भक्ति में लोग लीन हो चुके हैं । जिसमें रखी मूर्तियां पर सर रख शक्ति की भक्ति में लोग लीन हो चुके हैं। सरस्वती पूजा को ले शहर से लेकर ग्रामीण इलाका भक्तिमय हो चुका है। खास कर बच्चों में कौतूहल और उत्साह ज्यादा है। भक्ति गीतों और सांस्कृतिक कार्यक्रम की होड़ है। सभी शक्ति की भक्ति में हर मां की मूर्तियों का दर्शन पाने की चाहत है ।
छात्र छात्राओं में शक्ति की देवी से ज्ञान प्राप्त करने की होड़ है। मूर्तियों के निकट पुस्तक डाल कर मां से आर्शीवाद प्राप्त कर रहे हैं। पुराणों में सरस्वती माता की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है कि। ब्रह्मा की तपस्या से वृक्षों के बीच से एक अद्भुत चतुर्भुजी स्त्री प्रकट हुई, जिनेके हाथों में वीणा, पुस्तक, माला और वर मुद्रा थी। जैसे ही उस स्त्री ने वीणा का नाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी, जलधारा को कोलाहल और हवा को सरसराहट मिल गई। ब्रह्मा ने उसे वाणी की देवी को सरस्वती कहा। वसंत पंचमी का दिन हम सभी देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। सरस्वती की पूजा वस्तुतः आर्य सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, गीत-संगीत और धर्म-अध्यात्म के कई क्षेत्रों में विलुप्त सरस्वती नदी की भूमिका के प्रति हमारी कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है।
प्राचीन आर्य सभ्यता और संस्कृति का केंद्र उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत हुआ करता था। आज की तिथि में विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी तब इस क्षेत्र की मुख्य नदी हुआ करती थी। तत्कालीन आर्य-सभ्यता के सारे गढ़, नगर और व्यावसायिक केंद्र सरस्वती के किनारे बसे थे।तमाम ऋषियों और आचार्यों के आश्रम सरस्वती के तट पर स्थित थे।ये आश्रम अध्यात्म, धर्म, संगीत और विज्ञान की शिक्षा और अनुसंधान के केंद्र थे।
वेदों, उपनिषदों और ज्यादातर स्मृति-ग्रंथों की रचना इन्हीं आश्रमों में हुई थी। सरस्वती को ज्ञान के लिए उर्वर अत्यंत पवित्र नदी माना जाती थी।ऋग्वेद में इसी रूप में इस नदी के प्रति श्रद्धा निवेदन किया गया है। कई हजार साल पहले सरस्वती में आई प्रलयंकर बाढ़ और विनाश-लीला के बाद अधिकांश नगर और आश्रम जब नष्ट हुए तो आर्य सभ्यता क्रमशः गंगा और जमुना के किनारों पर स्थानांतरित हो गई ।
मौके पर उपस्थित पुजा समिति के अध्यक्ष प्रभु चौपाल, जितेंद्र चौपाल, कृष्ण कुमार चौधरी, सचिव मो० अनवर लहेरी इत्यादि कार्यकर्ता उपस्थित थे।