दरभंगा/बिहार : मिथिला में उर्दू की तरक्की के लिए फिक्रमंद डॉ अकील सिद्दीकी ने एक बयान जारी करके कहा है कि उर्दू जबान की तरक्की सिर्फ नारों से नहीं दूर की जा सकती बल्कि इस मीठी ज़बान को जिंदा रखने के लिए पढ़ना, लिखना और बोलना जरूरी है। हर कौम के लिए हर कौम की अपनी एक ज़बान और एक तहजीब होती है जिसकी बुनियाद पर वह दूसरी कौमो से अलग होती है। उससे उसकी मुकम्मल पहचान होती है।
उन्होंने कहा कि उर्दू जबान को पहचान की जरूरत नहीं बल्कि उसके हुकूक के लिए एक होकर काम करने की जरूरत है। अकील सिद्दीकी ने कहा कि उर्दू हमारी जबान ही नहीं बल्कि यह हमारी तहजीब भी है। उर्दू को जिंदा रखने के लिए उसे राजनीतिक मुद्दा न बनाकर उसे हर घर तक पहुंचाने के लिए सामूहिक कोशिश करें। उन्होंने कहा कि हकीकत तो यह है कि इस ज़बान को ज्यादा खतरा अपनों से ही पहुंचा है। इस ज़बान को ज़िंदा रखने के लिए हमें आने वाली नस्ल को तैयार करना होगा।
उन्होंने कहा कि उर्दू का किरदार जंगे आजादी में महत्वपूर्ण रहा है और यह गंगा जमुनी तहजीब की एक पहचान है। मैथिली के शायर विद्यापति ने मिथिला में इस जबान की तरक्की के लिए जो कारनामा अंजाम दिए वह काबिले तारीफ है। उन्होंने उर्दू दाँ से अपील की कि वह अपने बच्चों को रश्मि नहीं बल्कि हर हाल में उर्दू जबान की तालीम दे।