नालंदा / बिहार : जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दूर अस्थाबाॅ प्रखंड का देशना गांव जहां विशाल पुस्तकालय आज भी मौजूद है। गांव की युवा पीढ़ी को नहीं पता है कि उनके आंगन में ही रखा है ज्ञान का भंडार।
एक समय में जिले का यह गांव सबसे शिक्षित गांव का दर्जा प्राप्त था । आज यहां की आबादी लगभग 200 घरों से भी ज्यादा है । इस गांव के बीचो बीच अवस्थित अल-इस्लाह उर्दू लाइब्रेरी है। जहां कई वर्षों से दरवाजा में ताला लटका हुआ। इस लाइब्रेरी को देखने के लिए देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी यह गांव पहुंचे थे ।
इस लाइब्रेरी में कभी 10 हजार पुस्तकें मौजूद रहती थी। इस लाइब्रेरी में हाथ से लिखी कुरान शरीफ की भी पुस्तक मौजूद थी, इस लाइब्रेरी को देखने के लिए डॉक्टर जाकिर हुसैन भी देशना गांव पहुंचे थे। उनकी नजर जो हाथ से लिखित इस किताब पर पड़ी तो सुरक्षित रहने के दृष्टिकोण से खुदा बख्श लाइब्रेरी पटना भेज दिया । 1952 ईस्वी में लगभग 9 बैलगाड़ी से हजारों पुस्तकें खुदा बख्श लाइब्रेरी पटना में ले जाया गया। लेकिन आज भी बेश कीमती पुस्तकें यहां मौजूद है । जो पढ़ने वाला कोई भी नहीं है। जब बाहर के लोग इस गांव में आते हैं तो कभी-कभार यह पुस्तकालय खुलती है।
अल-इस्लाह उर्दू लाइब्रेरी देशना के इंचार्ज सैयद मोहम्मद नैयर इमाम कहते हैं इस लाइब्रेरी को कोई देखने वाला नहीं है। एक समय में राजेंद्र प्रसाद इसको देखने के लिए आए थे । गौरवशाली अतीत पर जमती जा रही है काली छाया । सरकार व समाज की अनदेखी नजर है। इस पुस्तकालय में बचपन पीढ़ी से लेकर युवा साहित्यकारों की पुस्तकें आज भी उपस्थित है। लगभग 2 डिसमिल में भवन मौजूद हैं । 3 डिसमिल बाउंड्री वाल ओपन मैदान भी है। जहां जाड़े में लोग पुस्तके पढ़ते थे। आज भी 10 बड़ी बड़ी अलमारी किताब से भरी हुई । किताबें मौजूद पड़ा है। इस लाइब्रेरी में सात कमरे एक बड़ा बीचो-बीच हॉल मौजूद है । यह अल-इस्लाह उर्दू लाइब्रेरी अपनी बदहाली का आंसू बहा रहा है । यह वही गांव देशना है जहां एशिया के सबसे बड़े इस्लामिक स्कॉलर सैयद मोहम्मद सुलेमान नदवी ने पैदा हुए थे। जिन्होंने पाकिस्तान का संविधान कानून बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। उनका घर आज जर्जर अवस्था में अपना बर्बादी का आंसू बहा रहा जिसे देखने वाला कोई भी नहीं।