पटना/नालंदा/बिहार : भीड़तंत्र का न्याय देखिए साहब! क्या न्याय करता है। कहीं मैं भीड़तंत्र पर पढ़ रहा था जिसमे लिखता कि भीड़ की पथरीली आँखों से टपकता लाल रंग भावुकता का कतई नहीं हो सकता। ‘आहत’ भीड़ किसी ज़ोम्बी की तरह खून की प्यासी हो कर ‘न्याय’ करने निकलती है और अपना शिकार कर, सभ्यता का चोला पहन कर अगली बार आहत होने तक हमारी-आपकी तरह सभ्य समाज का हिस्सा बन जाती है। इसी की बानगी आज देखने को मिली।
सुबह में राजद नेता इंदल पासवान की हत्या की खबर मिली। स्पॉट पर गया तो पता चला कि मघड़ा गांव निवासी इंदल पासवान अन्य गांव में मंगलवार की रात किसी के श्राद्धकर्म में भोज खाकर लौट रहे थे। तभी गांव के ही समीप बदमाशों ने गोली मार दी। गोली उनके सीने में लगी थी। उनका शव खेत में फेंका मिला। कुछ दूरी पर उनकी बाइक भी थी। पता चला कि मौत की खबर फैलते ही सैंकड़ों की संख्या में लोग गांव के ही संटी मालाकार,रंजन यादव व चुन्नी लाल के घर में तोड़फोड़ की, संटी मालाकार,रंजन यादव को रॉड, ईंट व पत्थर से पीट पीटकर मार डाला व चुन्नी लाल के घर को आग के हवाले कर दिया। भीड़ ने दोनों की नींद ही चुरा ली। अब ये सदा के लिए सो गया। अब इसे जगाने के लिए ऊपर वाले यमराज से बात करनी होगी। नीचे वाले यमराज ने तो उसकी प्राण पहले ही ले ली थी।
कानून के खौफ का ढोल कौन पिटेगा। भीड़तंत्र के नाम पर किए इस हत्या के लिए कौन कौन जिम्मेबार है। जिन लोगों ने इसे पीटा, क्या वो भी सलाखों के पीछे जायेंगे। क्या हासिल हुआ ऐसे न्याय से,पता नहीं। माना कि दोनो पर संदेह था लेकिन इस तरह का इन्साफ करने का अधिकार आपको किसने दी है। इंसान के जीवन का कोई वैल्यू है कि नहीं साहब ? अगर दोनों ने हत्या की होती तो हत्यारा का कलंक लेकर घूमता अब आप भी घूमते रहिए हत्यारा बनकर। अगर कानून का खौफ अपराधियों में होना चाहिए तो क्या इस भीड़तंत्र को नहीं। डीआईजी साहब भी पहुंचे है, आदेश देकर चले गए। अब आगे कार्यवाई पर नजर रखिए।