पिता से लिया जिंदगी का सबक, बना बेसहारों का सहारा
अपनी कमाई का 30 फिसदी हिस्सा, गरीबों और मिसकीनों में करते हैं तकसीम
प्रत्येक जुमा (शुक्रवार) कोसी के तीनों जिलों से आये जरुरतमंदों की करते हैं मदद
मधेपुरा/बिहार : देश और दुनिया में डॉक्टर तो बहुत हैं लेकिन इनमें कुछ ही ऐसे हैं जिनका दिल बहुत बड़ा है और उसमें गरीबों के लिए बेशुमार जगह है। डॉक्टर, अल्हाज परवेज अख्तर एक ऐसे ही डॉक्टर हैं जिनका दिल गरीबों के लिए धड़कता है। वे गरीबों के दुःख-दर्द को अपना दुःख-दर्द मानते हैं। अपने दिलोदिमाग को समाज-सेवा के प्रति संकल्पनिष्ट बनाये रखने में उन्हें अपने पिता से मिले अच्छे संस्कार ही सहायक सिद्ध हो रहे हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे डॉ अल्हाज परवेज अख्तर को समाज-सेवा, दया-गुण और परोपकार की भावना अपने पिता से विरासत में मिली। त्याग करने की ताकत अपनी माँ से मिली। अलग-अलग मौकों पर अपने पिता से डॉक्टरी जीवन के असली मकसद को जानने-समझने का मौका मिला। अपनी काबिलियत और अपने अनुभव को गरीबों और ज़रूरतमंद लोगों की सेवा में समर्पित कर चुके डॉक्टर अल्हाज परवेज अखतर की जिंदगी प्रेरणादायक है । जो लोगों को कामयाब बनने के लिए ज़रूरी कई सारी अच्छी और बड़ी बातें बताती है, इंसानी ज़िंदगी के असली मकसद को समझती है।
मधेपुरा जिला मुख्यालय स्थित, मस्जिद चौक, वार्ड न० -13 निवासी चर्म रोग विशेषज्ञ अल्हाज डॉ परवेज अख्तर (पिता मरहूम डॉ मो० रफीकउद्दीन) जो अपने वालिद मरहूम के नक्शे कदम पर चलकर विगत कई वर्षों से हर साल अपनी कमाई का 30 फिसदी हिस्सा गरीबों और मिसकीनों की मदद में खर्च करते हैं। इनके दरयादिली का आलम यह है कि मधेपुरा ही नहीं बल्कि सहरसा और सुपौल जिले से भी प्रत्येक जुमा (शुक्रवार) को काफी तादाद में गरीब मिस्कीन इनके आवास पर पहुँचते है जहाँ सभी जरुरतमंदों को मदद की जाती है ।
आज शुक्रवार के दिन डॉ परवेज अख्तर के आवास के सामने काफी संख्यां गरीब मिसकीनों की भीड़ देखी गई, मालुम करने पर पता चला कि पत्येक जुमा ऐसी भीड़ यहाँ जमा होती है और सभी को जरुरत के मुताबिक हर मुमकिन मदद की जाती है ।
इस बारे में जब डॉ श्री अख्तर से जानने की कोशिश की गई तो पहले तो उन्होंने मिडिया के सामने अपने इस नेक काम को जाहिर करने से इनकार कर दिया लेकिन बाद में मिडियाकर्मियों के कहने पर उन्होंने बताया कि समाज-सेवा, दया-गुण और परोपकार की भावना उन्हें उनके मरहूम पिता डॉ रफीकुद्दीन से विरासत में मिली है । उन्होंने बताया कि उनके पिता अपने हयात (जिंदगी) में हमेशा इसी तरह गरीब मिसकीनों की मदद किया करते थे और उस दौरान वे मुझे अपने साथ रखते थे, ताकि जीवन के असली मकसद को जानने-समझने का मौका मुझे मिल सके । उन्होंने बताया कि पिता के गुजर जाने के बाद इस नेक काम को करने का मौका मुझे हासिल हुआ, जिसे करके मेरे दिल को काफी सकून मिलता है, और जिस तरह मेरे वालिद मरहूम की दिली ख्वाहिश थी कि उनके नहीं रहने पर उनकी औलाद इस काम को जारी रखे, उसी तरह मेरी भी दिली ख्वाहिश है की मेरे बाद इस नेक काम को मेरी औलाद जारी रखे, और मुझे उम्मीद है मेरे बाद मेरे बच्चे अपने इस विरासत को जारी रखेंगे और गरीबों और बेसहारों की हर मुमकिन मदद करते रहेंगे ।
बहरहाल काफी संख्यां में कोसी के तीनों जिलों से आये गरीब मिसकीनों के बीज श्री अखतर ने MBBS की डिग्री हासिल कर चुके अपने पुत्र डॉ दानिश अख्तर के हाथों से मौसम के मद्देनजर उनी कंबल वितरण करवाकर सभी को आर्थिक मदद भी किया।
ख्वाइशों का सिलसिला बेशक बढ़ा ले जाएगा , सोचता हूँ इंसान दुनिया से क्या ले जाएगा
तुम किसी की खामियों का क्यों लगाते हो हिसाब ,वो अपनी करनी का हिसाब खुदबखुद ले जाएगा