बिहार में मुगलकालीन कई ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। इनमें औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर दूर दाउदनगर का खंडहरनुमा किला शामिल है। सोन नदी के तराई में पूर्वी भाग में बना दाऊद खां का किला पत्थरों की नकाशी के दम पर बना है। इसमें स्थापत्यकला का बेहतर प्रयोग किया गया है।
बताया जाता है कि दाउदनगर को 17वीं शताब्दी में दाऊद खां ने बसाया था। वह मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में बिहार का गवर्नर बना था, जिसने पलामू के चेर राजा को शिकस्त दी थी। बताया जाता है कि औरंगजेब को जब दाऊद खां के प्रभाव का पता चला तो उन्होंने उसे आसपास के जागीर को सौंप दिया। कहा जाता है कि दाऊद खां के शासनकाल में उसकी सेना में भारी संख्या में जाट सम्मिलित थे, जो बड़ी वीर, बहादुर व लड़का सैनिक थे। दाऊद खां से पूर्व आज का दाऊदनगर अनच्छा परगना का सिलौटा – बखौरा के नाम से जाना जाता था।
पटना से 3 अप्रैल 1660 को दाऊद खां जमींदारों, फ़ौजदारों, जागीरदारों की 60,000 भारी – भरकम फौज को लेकर पलामू किले पर चढ़ाई किया था। इससे पहले उसने गया जिले के कोठी किला पर कब्जा कब्जा जमाया था। फिर यहां से 32 किलोमीटर दूर कुंडा किला फतह किया था। बताते हैं कि कुंडा किला का मार्ग बड़ा दुर्गम था। जंगल, पहाड़ों, दर्रों को पार करता हुआ दाऊद खां ने 3 जून 1960 को इस किले पर कब्जा कर लिया। यहां बिना कोई लड़ाई लड़े बैगेर ही किले पर उसका अधिकार हो गया। कुंडा के शासक और उसके सैनिक पहले ही किला को छोड़कर भाग खड़े हुए थे।
कुंडा फतह के बाद दाऊद आगे बढ़ता रहा। वह पलामू की ओर बढ़ा। उस समय पलामू के चेर राजा अनंतराय थे। कहा जाता है कि अनंतराय ने बादशाह को मालगुजारी कर देने से मना कर दिया था। जब अनंत राय को शिकस्त मिला तो उन्होंने बादशाह को एक लाख रुपये तथा दाऊद को अलग से 50 हजार रुपए बिना आत्मसमर्पण करने का प्रस्ताव से कर दिया था। दाऊद 1659 से 1664 ईस्वी तक बिहार का गवर्नर या सूबेदार रहा। पलामू फतह के बाद बादशाह औरंगजेब ने इन्हें अनछा मनोरा व दाउदनगर परगना भेंट किया था। इसके बाद दाऊद खान ने दाऊदनगर में किले का निर्माण किया था।
आज खंडहर व भग्नावेश में मौजूद दाऊद का किला अपने ऐतिहासिक गाथा को प्रकट कर रहा है। हालांकि अब बिहार सरकार की नजर इस किले पर है। बिहार सरकार के पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित घोषित कर रखा है और किले के चारों ओर चारदीवारी का निर्माण किया गया है। इससे किले की स्थिति में काफी कुछ बदलाव हुआ है। किले का सौंदर्यीकरण करने से अब किले का स्वरूप थोड़ा बदल गया है। किला परिसर के दोनों तरफ गेट लगा दिए गए हैं। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार इस किले का निर्माण 17 वीं शताब्दी में किया गया था।
कहते हैं कि 1896 ईसवी तक इस किले की स्थिति काफी अच्छी थी। किले के दोनों दरवाजे बंद होते थे और खुलते थे। लेकिन बाद में उस दरवाजों को गायब कर दिया गया था। देखरेख के अभाव में यह किला खंडहरनुमा बन गया।
बताया जाता है कि 200 वर्ष पूर्व डॉ फ्रांसिस बुकानन ने दाऊदनगर का दौरा करने के बाद इसे उन्नतिशील नगर के रूप में प्रगति करते हुए देखा था। तब यहां कपड़ों एवं अफीम की कई फैक्ट्रियां थी। यह क्षेत्र तब धनी हुआ करता था। यहां से लगान भी खूब प्राप्त होता था। दाऊद खां के पलामू विजय के बाद कर्नल डाल्टन ने दाऊद के स्मृति चिन्ह को बनवाया था। स्मृति चिन्ह कपड़े पर बना था, जो संभवतः अब मौजूद नहीं है।
बताते हैं कि इस किले के नीचे सुरंग भी बनाया गया था, जो दूर दूर तक होकर निकलता था। इन सुरंगों के माध्यम से सैनिक लड़ाई लड़कर जीत फतह हासिल कर लेते थे। बादशाह की तरफ से दाऊद को एक सर्वोच्च सेनापति का भी उपाधि मिला था।