मधेपुरा/बिहार : लोक कलाकार सुरेन्द्र बाबू के असामयिक निधन पर समाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था ‘सृजन दर्पण’ ने उनके पैतृक गांव साहुगढ़, में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में ग्रामीण जन, सगे-संबंधी एवं कलाप्रेमी मौजूद थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ‘सृजन दर्पण’ के अध्यक्ष डॉ.ओम प्रकाश ओम ने कहा की लोक कलाकारों में प्रबुद्ध लोगों से लेकर अशिक्षित सीधे-साधे लोगों तक से सफल संवाद करने की अद्भुत क्षमता होती है इसलिए संस्कृति की जीवंतता के लिए लोककला एक सशक्त साधन रही है। उन्होंने कहा कि कलाकार स्वभाव से सहृदय होते हैं इस कारण उसमें परकाया प्रवेश की कला आ जाती है और दूसरे के दुख- सुख को मंच पर विश्वसनीयता के साथ दिखा पाने में सफल होते हैं। यही विशेषता सुरेन्द्र बाबू मे थी।
संस्था सचिव रंगकर्मी विकास कुमार ने कहा एक समर्पित कलाकार का जीवन बहुत ही संघर्ष से भरा होता है, क्योंकि वह अपनी वास्तविक जिंदगी के सुख-दुख के साथ औरों के जीवन को जीते हैं, खुद हृदयगतभाव को छुपाकर औरों के भाव संसार को अभिनय के जरिए आम लोगों के बीच लाते हैं। इसी कला के जरिए जीवन भर सुरेंद्र बाबू दर्शक, श्रोताओं को आनंदित करते रहे। सचिव ने नम आंखो से पुष्प अर्पण करते हुए कहा हम सब ने एक समर्पित लोक कलाकार को खो दिया।
वही श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए साहुगढ़ पंचायत के जनप्रिय मुखिया अरविंद यादव ने कहा कि होश संभालने के साथ में सुरेंद्र भाई को जानता हूं। लोककला के माध्यम से इन्होंने गांँव,जिला का नाम राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया। वे कई वाद्ययंत्र और विधाओं के जानकर थे। जिसमें बांसुरी, हारमोनियम, नाल, मृदंग ,और आल्हा, नारदी, भगैत जैसे लोकगाथा एवं लोकनाट्य प्रमुख है। हम सबों को इन पर गर्व है। इनके जाने से हम सभी काफी दुखी हैं। प्रो.अनिल कुमार ने कहा मुफलिसी की जिंदगी जीने के बावजूद किसी भी लोगों के अंदर छिपी कला प्रतिभा को तराशने में तत्पर रहते थे, सुरेंद्र यादव। ग्रामीण परिवेश एवं गरीबी के बीच से निकले लोक कलाकार सुरेंद्र यादव ने जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में लोककला का परचम लहराया। वे कई सम्मान पाये, सुदूर शहरों में जाकर विलुप्ती के कगार पर खड़े लोकगाथा की जीवंत प्रस्तुति आजीवन देते रहे। विगत दिनों वे संसार के विराट् रंगमंच को छोड़ चले गये। अपने पीछे छोड़ गये पत्नी के साथ दो लड़के दो लड़कियाँ । यही कोई 50- 55 की उम्र रही होगी जिसमें अभी बहुत संभावनाएं बाकी थी, यूं चले जाना उन्हें जानने, चाहने एवं उनसे कला की शिक्षा लेने वाले को बहुत मर्माहत किया।
इस दौरान बड़ी संख्या में मौजूद लोगों ने उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पण करके श्रद्धांजलि दी।