वर्ष 2012 और 2016 के बाद इस वर्ष 2019 में मकर संक्रांति का पर्व 15 तारीख को मनेगी
मकर संक्रांति का त्योहार जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण का पर्व है। इसी माह के आगामी 15 जनवरी दिन मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन दान-पुण्य करने से उसका सौ गुना फल प्राप्त होता है। शुक्ल पक्ष नवमी मंगलवार को ही भगवान भास्कर का राशि परिवर्तन होगा। मकर संक्रांति पर गंगास्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।
सनातन धर्म में मकर संक्रांति की काफी महत्ता है। मान्यता है कि इसी तिथि पर भीष्म पितामह को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसके साथ ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाएंगे और खरमास समाप्त हो जाएगा। प्रयाग में कल्पवास भी मकर संक्रांति से शुरू होगी। इस दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है। आज के दिन तिल के दान का बड़ा महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन तिल से बनी सामग्री ग्रहण करने से कष्टदायक ग्रहों से छुटकारा मिलता है। गंगा स्नान और दान-पुण्य से परिवार में सुख और शन्ति बनी रहती है। इस दिन भगवान सूर्यदेव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात के तौर पर माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान, तप, जप, आदि का अत्यधिक महत्व है।
15 जनवरी को सर्वार्थ सिद्धियोग में मनेगी मकर संक्रांति
कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित राकेश झा शास्त्री ने बताया कि 14 जनवरी दिन सोमवार की मध्य रात्रि में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा। मंगलवार 15 जनवरी को दोपहर 12 बजे तक पुण्यकाल है। मंगलवार की सुबह से ही संक्रांति स्नान,दान शुरू हो जायेगा। कहा गया है कि सूर्यास्त से पहले सूर्य का संक्रमण हो तो उसी तिथि व दिन मकर संक्रांति मनाना शास्त्रसम्मत है। इसी तिथि पर स्नान,दान,तिल ग्रहण,कंबल दान करना अति शुभ है। पंडित झा ने बनारसी पंचांगों के हवाले से बताया कि 14 जनवरी की रात मध्य रात्रि 02 :19 बजे के बाद सूर्य का संक्रमण होने से मंगलवार को ही मकर संक्रांति मनाया जाएगा। उनके अनुसार इसके पूर्व में भी 12 और 13 जनवरी को मकर संक्रांति मनायी जाती रही है। स्वामी विवेकानंद के जन्म पर 12 जनवरी को मकर संक्रांति मनी थी। आने वाले 70 वर्षों में 16 -17 जनवरी को भी मकर संक्रांति होगी। पंडित झा ने कहा कि सूर्य के उत्तरायण होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। उदयकालीन तिथि के अनुसार 15 जनवरी को ही सूर्योदय काल से दोपहर 11.28 बजे तक मकर संक्रांति के पुण्य काल में स्नान दान किया जाना लाभदायक होगा।
पंडित झा के मुताबिक भगवान सूर्य शनिदेव के पिता हैं। सूर्य और शनि दोनों ही ग्रह पराक्रमी हैं। ऐसे में जब सूर्य देव मकर राशि में आते हैं तो शनि की प्रिय वस्तुओं के दान से भक्तों पर सूर्य की कृपा बरसती है। साथ ही मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है। मकर संक्रांति के दिन तिल निर्मित वस्तुओं का दान शनिदेव की विशेष कृपा को घर परिवार में लाता है। इसके अलावा गजक, रेवड़ी, दाल, चावल, अन्न, रजाई, वस्त्र आदि वस्तुओं के दान का विशेष महत्व है। ज्योतिषी राकेश झा के मुताबिक सूर्य मकर से मिथुन राशि तक उत्तरायण में और कर्क से धनु राशि तक दक्षिणायण रहते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायण को देवताओं का रात्रि कहा जाता है। यह भी मान्यता है कि दिवगंत आत्माएं भी उत्तर दिशा में हो जाती हैं जिससे उन्हें देवताओं का सानिध्य मिलता। भीष्म ने भी अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी।
मकर संक्रांति में तिल और खिचड़ी की महत्ता
ज्योतिषी पंडित झा के अनुसार मकर राशि के स्वामी शनि और सूर्य के विरोधी राहू होने के कारण दोनों के विपरीत फल के निवारण के लिए तिल का खास प्रयोग किया जाता है। उत्तरायण में सूर्य की रोशनी में और प्रखरता आ जाती है। तिल से शारीरिक, मानसिक और धार्मिक उपलब्धियां हासिल होती हैं। तिल विष्णु को अत्यंत प्रिय है और यह गर्म भी होता है। तिल के दान और खिचड़ी खाने से बैकुंठ पद की प्राप्ति होती है। ठंड के बाद गर्म होने से चर्म रोग होने की संभावना से तिल का सेवन किया जाता है I तिल तैलीय होने के कारण शरीर को निरोग रखता है I
गंगा स्नान से पंच अमृत तत्व की प्राप्ति
पंडित राकेश झा ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है I पंडित झा ने मान्यताओं के हवाले से बताया कि मकर संक्रांति के दिन ही महर्षि प्रवहण को प्रयाग के तट पर गंगा स्नान से सूर्य भगवान से पांच अमृत तत्वों की प्राप्ति हुई थी। ये तत्व हैं-अन्नमय कोष की वृद्धि, प्राण तत्व की वृद्धि, मनोमय तत्व यानी इंद्रीय को वश में करने की शक्ति में वृद्धि, अमृत रस की वृद्धि यानी पुरुषार्थ की वृद्धि, विज्ञानमय कोष की वृद्धि यानी तेजस्विता और भगवत प्राप्ति का आनंद।
राशि के अनुसार करे दान-पुण्य, होगी उन्नति
मेष- जल में पीले पुष्प, हल्दी, तिल मिलाकर अर्घ्य दें। तिल-गुड़ का दान दें। उच्च पद की प्राप्ति होगी।
वृष- जल में सफेद चंदन, दुग्ध, श्वेत पुष्प, तिल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी।
मिथुन- जल में तिल, दूर्वा तथा पुष्प मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। गाय को हरा चारा दें। मूंग की दाल की खिचड़ी दान दें। ऐश्वर्य प्राप्ति होगी।
कर्क- जल में दुग्ध, चावल, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। चावल-मिश्री-तिल का दान दें। कलह-संघर्ष, व्यवधानों पर विराम लगेगा।
सिंह- जल में कुमकुम तथा रक्त पुष्प, तिल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। तिल, गुड़, गेहूं, सोना दान दें। नई उपलब्धि होगी।
कन्या- जल में तिल, दूर्वा, पुष्प डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। मूंग की दाल की खिचड़ी दान दें। गाय को चारा दें। शुभ समाचार मिलेगा।
तुला- सफेद चंदन, दुग्ध, चावल, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। चावल का दान दें। व्यवसाय में बाहरी संबंधों से लाभ तथा शत्रु अनुकूल होंगे।
वृश्चिक- जल में कुमकुम, रक्तपुष्प तथा तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। गुड़ दान दें। विदेशी कार्यों से लाभ, विदेश यात्रा होगी।
धनु- जल में हल्दी, केसर, पीले पुष्प तथा मिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। चारों-ओर विजय होगी।
मकर- जल में काले-नीले पुष्प, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। गरीब-अपंगों को भोजन दान दें। अधिकार प्राप्ति होगी।
कुंभ- जल में नीले-काले पुष्प, काले उड़द, सरसों का तेल-तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। तेल-तिल का दान दें। विरोधी परास्त होंगे।
मीन- हल्दी, केसर, पीत पुष्प, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। सरसों, केसर का दान दें। सम्मान, यश बढ़ेगा।