चौसा/मधेपुरा/ बिहार : दीपावली के अवसर पर जुआ खेलने का रिवाज पुराना है। जुआ जैसी सामाजिक बुराई को लोग धर्म और आस्था से जोड़कर खुलेआम खेलते हैं।लिहाजा दीपावली के अवसर पर शहर से लेकर गांव तक गली-गली में लोग जुआ खेलते नज़र आ रहे हैं । बड़े तो बड़े बच्चे भी ठाट से जुआ खेलते देखे जा सकते हैं। बावजूद इसके प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है ।
क्या कहते हैं लोग
लोगों का कहना है कि दीपावली के अवसर पर जुआ खेलने की परंपरा सतयुग से रही है । लोगों का कहना है कि शास्त्र के अनुसार दीपावली के अवसर पर भगवान शंकर ने माता पार्वती के साथ जुआ खेला था , जिसमें भोलेनाथ पराजित हो गए थे । तब से भाग्य की परीक्षा के लिए दीपावली के अवसर पर जुआ खेलने की परंपरा है । हालांकि कुछ लोग इस प्रसंग की पुष्टि नहीं करते और कहते हैं कि हमें शास्त्रों बताए गए अच्छी बातों का अनुकरण करना चाहिए । जुआ एक सामाजिक बुराई है तथा बुराई से दूर रहने में ही भलाई है ।
जुआ और कानून
भारत और खासकर बिहार में जुआ खेलने पर कानूनी प्रतिबंध है।क्योंकि जुआ एक ऐसा खेल है जिससे इंसान तो क्या भगवान को भी कई बार मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। जुआ सामाजिक बुराई है । बावजूद इसके यह भारतीय मानस में गहरी पैठ बनाए हुए है।कानूनी प्रतिबंध के बावजूद आज चौसा प्रखंड के कई चौक- चौराहे पर खुलेेेआम जुआ खेला जा रहा है । बड़े तो बड़े बच्चे भी इसमें बेखौफ दाव आजमा रहे हैं। बावजूद इसके प्रशासन मौन है ।