सहरसा : अंधेरे में है बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था, आमलोगों की जिंदगी से हो रहा है खिलवाड़, सरकारी दावे की खुली पोल

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सहरसा से राजा कुमार की रिपोर्ट 

सहरसा/बिहार : बिहार सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक देश के आमलोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने के दावे करती है, लेकिन सरकारी दावे और सरजमीं पर उसकी हकीकत में काफी फर्क है। कहीं सरकारी अस्पताल की लचर व्यवस्था के कारण चूहे क़तर-क़तर कर नवजात बच्चे की जान ले लेती है, तो कहीं सरकारी डॉक्टरों और कर्मचारियों की मनमानी के कारण पुर्जा कटवा रही माँ की गोद में नवजात बच्चे की मौत हो जाती है। ये तो महज बस एक उदहारण है जबकि सरकारी अस्पतालों की लचर व्यवस्था और यहाँ के डॉक्टरों और कर्मचारियों की मनमानी के कारनामें की फेहरिस्त काफी लंबी है, बावजूद इसके इसमें सुधार लाने के ब्याज सरकार अपनी वाहवाही कराने में मशगुल है, जिसका परिणाम है कि आये दिन किसी ना किसी सरकारी अस्पताल की लचर व्यवस्था की खबर अख़बारों की सुर्खियाँ बनती रहती है और प्रशासनिक पदाधिकारी परंपरागत ब्यान के अनुसार, जांच कर करवाई की बात कर अपना पल्ला झाड लेते हैं और फिर थोड़े दिनों में  उस घटना को सभी भूल जाते हैं। लिहाजा ना व्यवस्था सुधरती है और ना ही दोषियों पर कारवाई होती है ।

ऐसा एक और शर्मनाक मामला आज सहरसा जिले में मंजर आम पर आया है, जहाँ सरकारी अस्पताल में मरीजों का इलाज मोबाईल टोर्च की रौशनी में किया जाता है । यह मामला सहरसा जिले के सिमरी बख्तियापुर अनुमंडल अस्पताल का है । हैरान करने वाली बात यह है कि यहाँ के अस्पताल की इतनी बदतर व्यवस्था है कि यहाँ दिन में ही रात जैसा माहौल रहता है, जो ना सिर्फ अस्पताल प्रशासन की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि सहरसा जिला स्वास्थ्य समित पर भी कई संगीन सवाल पैदा करती है । अगर अस्पताल प्रशासन या जिला स्वास्थ्य समिति, जिले के आमलोगों के स्वास्स्थ्य के प्रति थोडा भी सजग रहते तो यह मंजर देखने को नहीं मिलता, लेकिन शायद किसी ने भी अपनी जिम्मदारी को नहीं निभाया जिसका परिणाम है आज इस रूप में सामने आया है ।

जानकारी अनुसार यह नजारा रविवार के दिन अनुमंडल अस्पताल में देखने को मिला। जहां घायल अवस्था में 12 वर्षिय चंदन कुमार नामक बच्चे को भर्ती कराया गया था,  जिसका ईलाज मोबाईल टॉर्च की रौशनी में किया जा रहा था ।  लेकिन इस दौरान जैसे ही ईलाज कर रहे डॉक्टर की नजर कैमरे पर पड़ी तो जनाब आनन-फानन में मरीज को छोड़कर चलते बने। जब इस मामले में प्रभारी सिविल सर्जन सह  अपर चिकित्सा पदाधिकारी डॉ0 सुरेंद्र कुमार सिंह से पूछा गया तो उन्होंने परंपरागत ब्यान देते हुए जाँच कर कारवाई की बात कही और उन्होंने अपने ब्यान में ना सिर्फ अपनी जिम्मेदारी पर पर्दा  डाला बल्कि इलाज करने  वाले डॉक्टर को भी बेकसूर साबित करते नजर आये ।


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